गाज़ियाबाद. ये बात उस वक़्त की है जब देश आजाद नहीं था और अंग्रेजों के जुल्म का हर हिंदुस्तानी शिकार हो रहा था. यूं तो आजादी की लड़ाई के कई किस्से और कहानियां आपने सुनी ही होंगी. लेकिन आज हम आपको बता रहें है, एक ऐसी बेटी की कहानी जो आजादी की लड़ाई में योगदान देने के लिए अपने पिता के भी खिलाफ चली गई. यहां जानें पूरी कहानी खुद उनकी जुबानी.
88 वर्षीय इंद्रा चौधरी गाज़ियाबाद के दुहाई स्थित वृद्ध आश्रम में रहती हैं. पुराने किस्से को याद करते हुए इंद्रा बताती हैं उनके पिता ब्रिटिश पुलिस में थे और उनका काम ऐसे भारतीयों को पकड़ना था जो अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बना रहे हों. इंद्रा बताती हैं अंग्रेजों का बहुत जुल्म भारतीयों ने सहा. उस वक़्त भारतीय नागरिकों और अंग्रेजों में काफी अंतर रहता था. हिन्दुस्तानियों को काफी कमजोर समझा जाता था.
पिता की नौकरी पर उठाए सवाल
अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का माहौल उफान पर था. नेता जी ने इंडियन नेशनल आर्मी (आईएनए ) बनाई. उस वक़्त युवाओं में काफी आक्रोश था और वो इस फौज में शामिल होना चाहते थे. मैं भी फौज की किताबें लेकर आयी, तब मेरे पिता जी ने सभी किताबें छुपा दीं. क्योंकि मेरे पिता जी ब्रिटिश पुलिस में नौकरी करते थे. मैंने उन्हें कहा आप क्यों उन लोगों को पकड़ते हैं, जो आजादी की लड़ाई लड़ रहे है. तब पिता जी कहते थे ये मेरी नौकरी है. मैं मजबूर हूं. इस बात पर उस वक्त की युवा इंद्रा ने कहा क्या फायदा ऐसी रोटी खाने का, जो गुलामी से मिलती हो.
लड़कों को भेजीं चूड़ी
इंद्रा बताती हैं-बरेली कॉलेज के लड़के उस वक़्त काफी शांत रहते थे. वो स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा नहीं ले रहे थे. इसलिए बनारस और फिरोजाबाद से बरेली कॉलेज में चूड़ी भेजी गयी थीं. एक संदेश भी. जिसमें लिखा था अगर तुम कुछ नहीं कर सकते तो चूड़ी पहनो. ये किस्सा उस वक़्त काफी ज्यादा चर्चित हुआ था.