रूस में वोल्गा और कजानका नदी के मुहाने पर बसा कजान शहर इस समय सत्ता का केंद्र बना हुआ है। यूक्रेन युद्ध के बाद से अमेरिका और यूरोप को ठेंगा दिखाते रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मेजबानी में कई देशों के राष्ट्रप्रमुख कजान में जुटे हैं। लेकिन सबकी नजरें एशिया की दो बड़ी पावर चीन और भारत पर टिकी हुई हैं। लेकिन 2020 में गलवान की घटना के बाद नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग का एक साथ एक छत के नीचे होना यकीनन बड़ी खबर है। चीन के विदेश मंत्री और पोलित ब्यूरो के सदस्य वांग यी को चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बाद दूसरा सबसे ताकतवार नेता माना जाता है। इस साल जुलाई में कजाकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक से अलग विदेश मंत्री जयशंकर ने चीन के विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की थी, मुद्दा एलएसी सैन्य गतिरोध को सुलझाना था। इस दौरान सिर्फ जयशंकर ने ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने भी वांग से मुलाकात की थी। कई रिपोर्ट्स में कहा गया कि बेशक उस समय इन मुलाकातों को सामान्य बैठकों के तौर पर देखा गया, लेकिन दोनों देश सैन्य गतिरोध सुलझाने की दिशा में काम कर रहे थे। ये भी कहा गया कि दोनों देशों के बीच इस पेट्रोलिंग एग्रीमेंट में पुतिन ने एक बड़ी भूमिका निभाई। इस मुलाकात के बारे में आधिकारिक तौर पर कहा गया कि पीएम मोदी के यूक्रेन दौरे के दौरान हुई बातचीत और निष्कर्षों से पुतिन को वाकिफ कराने के लिए डोभाल उनसे मिले थे। लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि पुतिन से डोभाल की मुलाकात की असली वजह चीन के साथ भारत के सैन्य गतिरोध को खत्म करना था। डोभाल ने पुतिन से मुलाकात के बाद चीन के विदेश मंत्री वांग यी से भी मुलाकात की थी। लेकिन भारत और चीन के बीच हुए इस एग्रीमेंट में पुतिन की कितनी बड़ी भूमिका थी? इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 12 सितंबर को जब एनएसए अजीत डोभाल ने पुतिन से मुलाकात की थी। उसके ठीक बाद चीन के विदेश मंत्री वांग यी भी पुतिन से मिले थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस बीच अलग-थलग पड़े पुतिन ने ग्लोबल साउथ पर जोर दिया। इसके लिए उन्होंने ब्रिक्स को उ-7 के वर्चस्व को चुनौती देने वाले विकल्प के तौर पर पेश करने की कवायद शुरू कर दी। लेकिन इसमें कोई दोराय नहीं है कि ब्रिक्स की मजबूती पूरी तरह से भारत और चीन से जुड़ी हुई है। ऐसे में पुतिन ने दोनों देशों के बीच चल रहे सैन्य गतिरोध को खत्म करने में दिलचस्पी दिखाई। इसके लिए सिलसिलेवार तरीके से कभी जयशंकर तो कभी डोभाल तो कभी वांग यी से मुलाकातों का दौर शुरू किया गया।
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