जिला मुख्यालय से 12 किमी की दूरी परकुस्मही जंगल है. उसी जंगल के बीच में स्थित है बुढ़िया माता का मंदिर. यह मंदिर पूर्वांचल के धरोहरों में शामिल है. इस मंदिर की मान्यता ऐसी है कि देश ही नहीं विदेशों से भी श्रद्धालु माता के दर्शन करने के लिये आते हैं. बुढ़िया माता मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि जो भक्त सच्चे हृदय से यहां आकर माता की पूजा करता है, उसकी कभी भी असमय मौत नहीं होती है. माता अपने भक्तों की हमेशा रक्षा करती हैं.
बुढ़िया माई मंदिर के बारे में कहा जाता है कि लाठी का सहारा लेकर चलने वाली एक चमत्कारी श्वेत वस्त्रधारी वृद्धा के सम्मान में बनाया गया है. मान्यता है कि पहले जंगल के उस क्षेत्र में थारु जाति के लोग रहते थे. वे जंगल में ही तीन पिंड बनाकर वनदेवी की पूजा-अर्चना करते थे. थारुओं को अक्सर पिंड के आस-पास एक बूढ़ी महिला दिखाई देती थी, हालांकि वह कुछ ही पल में आंखों से ओझल हो जाती थी. जंगल के बीच से गुजरने वाले तुर्रा नाले पर बने काठ के पुल से एक बारात जा रही थी. जिसपर नर्तकी सवार थी. पुल पार करने से पहले बुढ़िया माई ने नर्तकी से नृत्य करने को कहा. जिसपर बरातियों ने देर होने की बात कहते हुई उनका उपहास उड़ाकर वहां से आगे बढ़ गए. वहीं बरात में शामिल एक जोकर ने नृत्य कर उन्हें दिखा दिया. इसलिए बुढ़िया माई ने उसे आगाह कर दिया कि पुल पर बरातियों के साथ मत चढ़ना. उसके बाद जैसे ही बरातियों से भरा वाहन पुल पर चढ़ा. वह पुल टूट गया. दूल्हा सहित सभी बाराती नाले में गिरकर मर गए.
जोकर की बच गई थी जान
जिस जोकर ने उस बूढ़ी महिला को नृत्य करके दिखाया था.उसकी जान बच गई. इसके बाद वह बूढ़ी महिला अदृश्य हो गईं. काल की गाल में जाने से बचे जोकर ने यह बात गांव वालों को बताई .तभी से नाले के दोनों तरफ का स्थान बुढ़िया माई के नाम से जाना जाता है. बुढ़िया माई का मंदिर नाले के दोनों तरफ बना है. इन दोनों मंदिरों के बीच के नाले को नाव से पार किया जाता है.
जिस रूप में देखा उसी रूप की मूर्ति स्थापित
विजहरा गांव के निवासी जोखू सोखा की मौत के बाद परिजनों ने उन्हें तुर्रा नाले में प्रवाहित कर दिया. शव थारुओं की तीन पिंडी तक पहुंचा. बुढ़िया माई अवतरित हुईं और उन्होंने जोखू को जिंदा कर दिया.जोखू ने उसके बाद वहीं पूजा शुरू कर दी और माई को जिस रूप में देखा था, उसी रूप में मूर्ति स्थापित कर मंदिर बनवा दिया.
नवरात्रि में लगती है भक्तों की भारी भीड़
जंगल के बीच होने के बावजूद बुढ़िया माई मंदिर में नवरात्र के दौरान मेले जैसा माहौल रहता है. यहां भारी संख्या में भक्त पहुंचते हैं और पुजन- अर्चन कर मन्नत मांगते हैं. इस धरोहर के संरक्षण को लेकर शासन भी गंभीर है. पर्यटन विभाग को इसके संरक्षण और सुंदरीकरण की जिम्मेदारी दी गई है.
मंदिर तक पहुंचने का मार्ग
ऐसे पहुंचें मंदिर – बुढ़िया माई मंदिर गोरखपुर जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर कुसम्ही जंगल में स्थित है. यहां जाने के लिए शहर के मोहद्दीपुर चौराहे से ऑटो या जीप जैसे वाहन का सहारा ले सकते हैं. वाहन आपको एयरपोर्ट होते हुए कुसम्ही जंगल पहुंचाएगी है. यहीं पर बुढ़िया माता का मंदिर स्थित है.
सीएम बनने पर मंदिर पहुंचे योगी
बुढ़िया माता मंदिर के पुजारी बृजेश पांडे ने न्यूज 18 लोकल की टीम से बात करते हुए बताया कि हमें लगभग 25 वर्ष हो गए हैं यहां पर रहकर माता जी की सेवा करते हुए. यहां पर जो भी श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और सच्चे मन से अपनी मन्नत मांगते हैं. माता रानी उनकी मनोकामना जरूर पूर्ण करती हैं और इसी के साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि सूबे के मुखिया योगी आदित्यनाथ जी भी सीएम बनने के बाद माता जी के दर्शन के लिए आ चुके हैं. आगे उन्होंने माताजी की महिमा का जिक्र करते हुए कहा कि नवमी और दशमी के दिन माता जी के मंदिर पर सवा मन का हवन किया जाता है और चैत्र रामनवमी व शारदीय नवरात्रि को यहां पर भारी संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं. माता जानी को हलवा और पूरी का भोग लगाते हैं.
माता जी की महिमा का श्रद्धालुओं ने किया बखान
मंदिर में दर्शन करने आई महिला श्रद्धालु ममता ने बताया कि मैं मूल रूप से विंध्याचल मिर्जापुर जिले की रहने वाली हूं और गोरखपुर शहर में रहती हूं. तो मैंने माताजी की महिमा के बारे में काफी कुछ सुन रखा था. इसीलिए मेरे मन में लालसा हुई कि क्यों ना एक बार माताजी के दर्शन किए जाएं. इसी को लेकर मैं आज माताजी के दर्शन करने आई हूं.