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इजराइल में मिली ऐतिहासिक कंघी, इस कॉम्बिनेशन पर रिसर्च कर रहे वैज्ञानिक

इजरायल से एक दिलचस्प खबर सामने आई है. यहां इजरायल और अमेरिका के पुरातत्‍वविदों की एक टीम को दक्षिणी इजरायल में हाथी के दांत से बनी एक कंघी मिली है. यह कंघी 3700 साल पुरानी बताई जा रही है. इस कंघी पर कनानी लिपि में एक वाक्‍य भी लिखा है. एक्सपर्ट बताते हैं कि यह कैनिनिट या कनानी भाषा के सीक्रेट को बताता है. इस कंघी पर इस भाषा में पूरा एक वाक्‍य लिखा हुआ है

इसलिए यूज होती थी ये कंघी : कनानी भाषा के जानकार बताते हैं कि इस कंघी पर लिखा है कि यह बालों और दाढ़ी की जूं को जड़ से खत्म कर सकता है. इस वाक्य में 17 अक्षर हैं. इस ऐतिहासिक कंघी के मिलने से वैज्ञानिकों की टीम काफी उत्साहित है और अब वहां कुछ और ऐसे ही प्रोडक्ट की तलाश में लग गई है.

कंघी पर जूं होने के भी सूक्ष्म सबूत मिले : विशेषज्ञों का कहना है कि इस कंघी की खोज से कनानी वर्णमाला के शुरुआती प्रयोग के बारे में नई जानकारी मिलती है जिसका आविष्कार ईसा पूर्व 1800 साल के आसपास हुआ था. इसके बाद हिब्रू, अरबी, यूनानी, लैटिन आदि वर्णमाला प्रणालियों की नींव पड़ी थी. वहीं, इससे अलग कंघी पर लिखे वाक्य से पता लगता है कि उस वक्त लोगों के सामने जूं की बड़ी समस्या थी. पुरातत्वविदों का कहना है कि उन्हें कंघी पर जूं होने के सूक्ष्म सबूत भी मिले हैं.

कनानी भाषा में पहली बार मिला कुछ : 2021 में इजरायल की हिब्रू यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने कंघी पर खुदे हुए छोटे शब्दों को देखा. इस खोज के बारे में बुधवार को यरूशलम जर्नल ऑफ आर्कियोलॉजी में एक आर्टिकल भी छपा है. इस पूरी खोज में हिब्रू यूनिवर्सिटी के अलावा अमेरिका की एडवेनस्टि यूनिवर्सिटी की टीम की भूमिका अहम रही है. हिब्रू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर योसेफ गारफिंकेल का कहना है कि पहली बार है जब कनानी भाषा में कोई वाक्‍य इजरायल में मिला है. सीरिया के गारिट में कनानी लोग हैं, लेकिन वे एक अलग लिपि में लिखते हैं, न कि उस वर्णमाला में जो आज चलन में है. कनानी शहरों का जिक्र मिस्र के दस्तावेजों, अक्कादियन में लिखे गए अमरना चिट्ठियों और हिब्रू बाइबिल में किया गया है. कंघी शिलालेख लगभग 3700 साल पहले रोजमर्रा के कामों में वर्णमाला के प्रयोग का जीता-जागता सबूत है.

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