सनातन धर्म में हर पर्व हर त्योहार का अपना अलग महत्व होता है. लेकिन जब करवा चौथ का व्रत हो तो उसका महत्व और अधिक होता है. सनातन धर्म को मानने वाली सुहागिन महिलाएं करवा चौथ के व्रत का इंतजार बेसब्री से करती है. हर वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ का व्रत रखा जाता है. धार्मिक मान्यता के मुताबिक इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की कामना के लिए निराचल का व्रत रखती है. इस दिन 16 श्रृंगार कर अपने पति की लंबी आयु की कामना के लिए मां करवा की पूजा आराधना करती है. इस दिन विशेष रूप से चांद को छलनी से देखने के भी परंपरा है. करवा चौथ की पूजा में चंद्र देवता को अर्घ दिया जाता है.
अयोध्या की ज्योतिषी पंडित कल्कि राम बताते हैं कि करवा चौथ को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. जिसमें कहा जाता है करवा नाम की एक स्त्री जो भद्रा नदी के पास रहती थी तो एक बार उसके पति भद्रा नदी में स्नान कर रहे थे और उसके पति को मगरमच्छ ने खींच रहा था. तो उस दौरान करवा अपने पति की रक्षा के लिए यमराज से प्रार्थना की. जिसके बाद यमराज प्रसन्न हुए और कहा इस दिन जो महिलाएं तुम्हारे नाम का व्रत रखेंगी . उन्हे अपने पति की लंबी आयु का वरदान मिलेगा. साथ ही सौभाग्य की प्राप्ति होगी. इतना ही नहीं धार्मिक ग्रंथो के अनुसार करवा चौथ में भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा है. इस दिन माता पार्वती के साथ भगवान कार्तिकेय की पूजा आराधना की जाती है और शाम के समय में चंद्रमा को छलनी से देखकर अर्घ दिया जाता है. छलनी को चंद्रमा का देखने से आशय है कि तमाम विसंगतियों से मुक्ति मिलती है.