नई दिल्ली। भारत और चीन के बीच लगभग साढे़ तीन हजार किलोमीटर लंबी सीमा है। इसे दुनिया की सबसे लंबी विवादित सीमा भी कहा जाता है। हाल ही में भारत और चीन के बीच समझौता हुआ है, जिसके बाद लद्दाख में जून 2020 से पहले की स्थिति बहाल हो गई है। हालांकि, अब भी लाखों वर्ग किमी की जमीन ऐसी है, जिस पर दोनों के बीच विवाद बना हुआ है। भारत और चीन के बीच अब टेंशन थोड़ा कम होने लगा है। कुछ दिन पहले ही हुए एक समझौते के बाद अब एलएसी पर डिसइंगेजमेंट की प्रोसेस शुरू हो गई है। दोनों ही देशों के सैनिकों ने बॉर्डर पर जो अस्थायी टेंट और स्ट्रक्चर बनाए थे, उन्हें अब हटाया जाने लगा है। इस समझौते के बाद एलएसी पर फिर सबकुछ वैसा ही हो जाएगा, जैसा जून 2020 से पहले था। जून 2020 में गलवान घाटी में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प के बाद से यहां तनाव बना हुआ था। कई जगह ऐसी थीं, जहां पेट्रोलिंग रुक गई थी। विदेश मंत्री एस.जयशंकर में एक कार्यक्रम में कहा था कि 2020 के बाद कई ऐसे इलाके थे, जहां उन्होंने हमे ब्लॉक कर दिया था और हमने उन्हें। लेकिन अब पेट्रोलिंग को लेकर समझौता हो गया है। अब हम वहां तक पेट्रोलिंग कर सकेंगे, जहां 2020 तक करते आ रहे थे। भारत और चीन के रिश्तों के लिहाज से ये समझौता काफी अहम है। ये समझौता कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर हुई बातचीत का नतीजा है कि भारत और चीन के बीच एलएसी पर पांच जगहों-देपसांग, डेमचोक, गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो और गोगरा हॉट स्प्रिंग में संघर्ष था। 2020 के बाद कई दौर की बातचीत के बाद गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो और गोगरा हॉट स्प्रिंग से दोनों देशों की सेनाएं पीछे हट गई थीं। हालांकि, देपसांग और डेमचोक में सेनाएं तैनात रहने से टकराव का खतरा बना हुआ था। लेकिन अब समझौते के बाद पांच जगहों से भारत और चीन की सेनाएं हट जाएंगी और यहां पहले की तरह पेट्रोलिंग कर सकेंगी। इससे सीमा पर शांति रहेगी। देपसांग में पेट्रोलिंग करना भारत के लिहाज से इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि काराकोरम दर्रे के पास दौलत बेग ओल्डी पोस्ट से 30 किलोमीटर दूर है। पहाड़ियों के बीच ये सपाट इलाका भी है, जिसका इस्तेमाल सैन्य गतिविधि में किया जा सकता है।वहीं, डेमचोक सिंधु नदी के पास पड़ता है। अगर यहां पर चीन का नियंत्रण होता है तो इससे उत्तर भारत के राज्यों में पानी की आपूर्ति पर असर पड़ने का खतरा था।
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seal of agreement : भारत-चीन के बीच समझौते पर लगी मुहर
