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Jaunpur Dhara News : नवरात्र के सातवें दिन पूजी हई माँ कालरात्रि़, पण्डाल रहे गुलजार

  • आकर्षण का केन्द्र बन रहा कन्हईपुर का भव्य पंडाल

जौनपुर धारा, जौनपुर। नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में नवरात्र के 7वें दिन नवदुर्गा के कालरात्रि रूप की पूजा की गई। नगर के कन्हईपुर में हिन्दू रीति पर आधारित जन्म से मृत्यु तक के जीवन काल को दर्शाया गया, जो लोगों के लिये आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। वहीं उर्दू बाजार गल्लामंडी में जय माता दी बाल संस्था तथा रोडवेज तिराहा स्थित जय मां अंबे दुर्गा पूजा समिति के पण्डालों में भव्य सजावट ने भक्तों का मन मोह लिया।

रोडवेज तिराहे पर बीती रात्रि जागरण व गरबा कार्यक्रम आयोजित किया गया। तैसा की नवरात्र में दुर्गा के वनों रूपों की अराधरा विधि-विधान से किया जाता है। सातवें दिन माँ के सातवें रूप कालरात्रि का पूजन अर्चन किया जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार मां दुर्गा ने पृथ्वी को बुरी शक्तियों से बचाने के लिए और पाप को फैलने से रोकने के लिए अपने तेज से इस रूप को उत्पन्न किया था। इनका रंग काला होने के कारण कालरात्रि कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से समस्त सिद्धियां प्राप्त होती हैं। माता कालरात्रि तंत्र साधना करने वालों के बीच बेहद प्रसिद्ध हैं। माना जाता है कि मां की पूजा करने से दुष्टों का नाश होता है और ग्रह बाधाएं दूर हो जाती हैं। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन सहस्रार चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है। देवी कालरात्रि को व्यापक रूप से माता देवी दृ काली महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृत्यू.रुद्राणी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री, धूम्रवर्णा कालरात्रि मां के अन्य कम प्रसिद्ध नामों में हैं। मां काली और कालरात्रि का उपयोग एक दूसरे के परिपूरक है।

माँ कालरात्रि के तीन नेत्र है और इनके श्वास से अग्नि निकलती है। कालरात्रि का वाहन गर्दभ है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, राक्षस शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोक में हाहाकार मचा रखा था। यह देखकर सभी देवतागण भगवान शिव के पास पहुंचे। भगवान शिव ने देवताओं की बात सुनकर देवी पार्वती से राक्षसों का वध कर भक्तजन की रक्षा करने को कहा। इसके बाद देवी पार्वती ने दुर्गा का स्वरूप धारण किया और दैत्य शुंभ-निशुंभ का वध कर दिया। शुंभ-निशुंभ का वध करने के बाद मां दुर्गा रक्तबीज को मारा, तो उसके शरीर से निकले रक्त से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हो गए। इसके बाद मां कालरात्रि ने रक्तबीज को मारा और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को अपने मुख में भर लिया। इस तरह मां ने सबका गला काटते हुए रक्तबीज का वध किया। नवरात्रि के सप्तमी तिथि के दिन मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा की जाती है। माँ कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं, दानव, दैत्य, राक्षस, भूत, प्रेत आदि इनके स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। ये ग्रह-बाधाओं को भी दूर करने वाली हैं।

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