रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस साल भारत आ सकते हैं. राष्ट्रपति भवन क्रेमलिन ने सोमवार को बताया कि वह रूसी राष्ट्रपति पुतिन के नई दिल्ली में 9-10 सितंबर को आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार नहीं कर रहा है. पुतिन लगातार दो सालों से जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा नहीं ले रहे हैं लेकिन अब वे भारत में आयोजित शिखर सम्मेलन में आ सकते हैं.
क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव से पत्रकारों ने पूछा कि क्या पुतिन भारत में आयोजित जी-20 में हिस्सा लेंगे? जवाब में उन्होंने कहा, ‘इससे इनकार नहीं किया जा सकता. रूस ने जी-20 के फ्रेमवर्क में पूरी तरह से हिस्सा लेना जारी रखा है. रूस का आगे भी यही इरादा है. लेकिन फिलहाल कोई फैसला नहीं लिया गया है. हर साल रूस के व्लादिवोस्तोक में आयोजित होने वाले ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम की तारीख को आगे बढ़ा दिया गया है, जिससे भी यह संकेत मिल रहा है कि पुतिन जी-20 में हिस्सा ले सकते हैं. ब्रिटेन के अखबार, द इंडिपेंडेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुतिन के सलाहकार और EEF आयोजन समिति के कार्यकारी सचिव एंटोन कोबायाकोव ने एक बयान जारी कर EEF के तारीखों में बदलाव की पुष्टि की है. उन्होंने कहा है कि EEF की वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक 12-15 सितंबर के बीच होगी. उन्होंने कहा, ‘ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम की तारीखों में बदलाव का फैसला अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों से जुड़ा हुआ है. हम विदेशी नेताओं और उच्च-स्तरीय मेहमानों की भागीदारी की उम्मीद कर रहे हैं. आर्थिक मंच के तारीखों में बदलाव से भारत और चीन के वरिष्ठ अधिकारियों के भी फोरम में भाग लेने की संभावना बढ़ेगी.24 फरवरी को यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद पिछले साल का शिखर सम्मेलन G-20 नेताओं का पहला जमावड़ा था. इंडोनेशिया के बाली में आयोजित शिखर सम्मेलन में पुतिन ने हिस्सा नहीं लिया था. इस सम्मेलन में यूक्रेन पर रूसी आक्रमण सबसे बड़ा मुद्दा था. बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि अधिकांश देशों ने यूक्रेन पर रूसी हमले की कटु आलोचना की है. बैठक में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस आदि पश्चिमी देशों ने रूस की कड़ी निंदा की थी. साल 2021 में भी पुतिन रोम में आयोजित जी-20 सम्मेलन में शामिल नहीं हुए थे. कोविड को देखते हुए वो सम्मेलन में वीडियो लिंक के माध्यम से जुड़े थे.भारत ने अभी तक रूसी हमले की निंदा नहीं की और अब भी वो अपने रुख पर कायम है. भारत कहता रहा है कि रूस-यूक्रेन मसले का हल कूटनीति के जरिए शांतिपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिए. फरवरी में आयोजित जी-20 देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की बेंगलुरु बैठक से पहले भारत ने रूस-यूक्रन युद्ध को युद्ध कहकर संबोधित करने पर आपत्ति जताई थी. आधिकारिक सूत्रों ने कहा था कि मेजबान भारत सदस्य देशों को इस बात पर राजी करने की कोशिश कर रहा है कि जी-20 की बैठकों में रूस-यूक्रेन संघर्ष को युद्ध कहने के बजाए चुनौती या संकट कहकर संबोधित किया जाए. हालांकि, सदस्य देशों ने इस पर आपत्ति जताई जिसके बाद कोई सहमति नहीं बन पाई. भारत यह भी नहीं चाहता था कि जी-20 की बैठकों में यूक्रेन संकट और रूस पर प्रतिबंधों की चर्चा हो. लेकिन जी-20 की बेंगलुरु बैठक में यूक्रेन का मुद्दा हावी रहा.बैठक के बाद भारत रूस और चीन के विरोध के चलते कोई साझा बयान जारी करने में असफल रहा. भारत को इसके बाद एक चेयर्स समरी जारी करनी पड़ी जिसमें कहा गया कि यूक्रेन संकट और रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों को लेकर देशों के अलग-अलग आकलन हैं. समरी के फूटनोट में कहा गया कि बयान के दो पैराग्राफ, जो युद्ध के बारे में संक्षिप्त रूप से बताते हैं, उन पर रूस और चीन को आपत्ति थी. ये दो पैराग्राफ पिछले साल नवंबर में बाली में आयोजित जी-20 की घोषणापत्र से लिए गए थे. रूस ने बेंगलुरु बैठक के बाद भारत की मेजबानी की तारीफ की और कहा कि पश्चिमी देशों ने जी-20 को अस्थिर कर दिया है. रूसी विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि भारत ने सभी देशों के हितों को देखते हुए निष्पक्ष विचार करने की कोशिश की है. रूस ने कहा कि पश्चिमी देशों के कारण जी-20 की बैठक बिना किसी संयुक्त बयान के समाप्त हो गई. रूस ने आरोप लगाया कि अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों ने एक आर्थिक मंच को सुरक्षा के क्षेत्र में घसीटने की कोशिश की है. इसके बाद 1-2 मार्च को भारत ने जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों के बैठक की नई दिल्ली में मेजबानी की. इस बैठक के बाद भी कोई साझा बयान जारी नहीं हो पाया. भारत ने कहा कि इस बार भी रूस और चीन युद्ध के बारे में बताने वाले पैराग्राफ पर असमहत थे, जिस कारण साझा बयान जारी नहीं हो पाया. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस बात को स्वीकार किया कि यूक्रेन संघर्ष के कारण जी-20 देशों को एक टेबल पर लाने के लिए जूझना पड़ रहा है.पुतिन अगर जी-20 में हिस्सा लेने के लिए भारत आते हैं तो यह भारत के लिए कूटनीतिक तौर पर एक बड़ी जीत होगी. इस सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, यूरोपीय संघ की प्रेसिडेंट उर्सुला वॉन जैसे दिग्गज नेता शामिल होंगे. युद्ध के बाद से ही पुतिन का पश्चिमी देशों के इन नेताओं से सामना नहीं हुआ है. ऐसे में अगर भारत पश्चिमी देशों के दुश्मन पुतिन को जी-20 के मंच पर लाने में सफल होता हो तो इसकी महत्ता और बढ़ जाएगी. भारत जो कि खुद को ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों के लिए इस्तेमाल होने वाला टर्म) का लीडर मानता है, उसका यह दावा और मजबूत होगा. हालांकि, पुतिन अगर जी-20 में शामिल होते हैं तो सदस्य देशों के बीच का तनाव और अधिक बढ़ने की संभावना है.