ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा सबसे पवित्र और शुभ मानी जाती है. इस बार वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत 03 जून यानी आज ही रखा जा रहा है. इस दिन स्नान-दान करना सबसे फलदायी भी माना जाता है. साथ ही इस दिन वट वृक्ष की पूजा भी की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यदि कोई भी व्यक्ति इस दिन गंगा स्नान कर पूजा-अर्चना के पश्चात दान दक्षिणा करता है तो उस व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं. साथ ही आज से ही भगवान भोलेनाथ के दर्शन हेतु अमरनाथ की यात्रा के लिए गंगाजल लेकर आने की शुरुआत आज के दिन से ही आरंभ होती हैं.
वट सावित्री पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 03 जून यानी आज सुबह 11 बजकर 16 मिनट से होगी और पूर्णिमा तिथि का समापन 04 जून यानी कल सुबह 09 बजकर 11 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, वट सावित्री पूर्णिमा का व्रत 03 जून यानी आज ही रखा जा रहा है. वहीं आज 3 शुभ योग यानी रवि योग, शिव योग और सिद्ध योग का निर्माण भी होने जा रहा है. रवि योग आज सुबह 05 बजकर 23 मिनट से 06 बजकर 16 मिनट तक रहेगा. शिव योग की शुरुआत 02 जून यानी कल शाम 05 बजकर 10 मिनट पर हो चुकी है और इसका समापन 03 जून यानी आज दोपहर 02 बजकर 48 मिनट पर होगा. वहीं, सिद्ध योग आज दोपहर 02 बजकर 48 मिनट से 04 जून यानी कल सुबह 11 बजकर 59 मिनट तक रहेगा. पूजा का शुभ मुहूर्त- 3 जून यानी आज सुबह 07 बजकर 07 मिनट से सुबह 08 बजकर 51 मिनट तक
दोपहर में पूजा का मुहूर्त- आज दोपहर 12 बजकर 19 मिनट से शाम 05 बजकर 31 मिनट तक
लाभ-उन्नति मुहूर्त – आज दोपहर 02 बजकर 03 बजे से दोपहर 03 बजकर 47 मिनट तक
अमृत-सर्वोत्तम मुहूर्त- आज दोपहर 03 बजकर 47 बजे से शाम 05 बजकर 31 मिनट तक
इस दिन महिलाओं को सुबह जल्दी उठकर स्नान करके नए वस्त्र और सोलह श्रंगार करना चाहिए. शाम के समय वट सावित्री की पूजा के लिए व्रती सुहागनों को बरगद के पेड़ के नीचे सच्चे मन से सावित्री देवी की पूजा करनी चाहिए. पूजा के लिए महिलाओं को एक टोकरी में पूजन की सारी सामग्री रख कर पेड़ के नीचे जाना होता है और पेड़ की जड़ो में जल चढ़ाना होता है. इसके बाद वृक्ष को प्रसाद का भोग लगाकर उसे धूप-दीपक दिखाना चाहिए. इस दौरान हाथ पंखे से वट वृक्ष की हवा कर मां सवित्री से आशीर्वाद प्राप्ति के लिए उनकी आराधना करें. इस प्रक्रिया के पश्चात सुहागनों को अपने पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए वट वृक्ष के चारों ओर कच्चे धागे या मोली को 7 बार बांधना चाहिए. अंत में वट वृक्ष के नीचे ही सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें. इसके बाद घर आकर उसी पंखें से अपने पति को हवा करें और उनका आशीर्वाद लें. फिर प्रसाद में चढ़े फल आदि को ग्रहण कर शाम में मीठा भोजन से अपना व्रत खोले.