- आखिर कब तक चलती रहेगी टिकट की कालाबाजारी का खेल?
- सीजन के समय काउंटरों पर आसानी से नहीं मिल पाता रिजर्वेशन व तत्काल टिकट
- महंगे दामों पर टिकट खरीदने के लिए मजबूर हो रहे हैं यात्री
जौनपुर धारा, सिकरारा। जी हां, इस समय हमारे देश का रेलवे विभाग भ्रष्टाचार की गिरफ्त में तेजी के साथ जकड़ा हुआ है। इस बात की भनक शायद रेलवे मंत्रालय व उनके जिम्मेदार अफसरों को भले ही ना हो, लेकिन यह सच भी है कि इधर टिकट की कालाबाजारी में आम जरूरतमंद लोगों के जेब पर डाका डाला जा रहा है।
वह भी आम जनमानस व मध्यम वर्गीय परिवार, जो लोग आए दिन किसी न किसी काम से अपने गांव से परदेश, व परदेश से गांव का सफर करना चाहते हैं। टिकट की कालाबाजारी में गरीब वर्ग से लेकर मध्यम वर्गीय पिरवार तक इसकी गिरफ्त में आकर पिसने के लिए मजबूर हो रहा है। हमारे देश के राजनेतागण विकास का हौव्वा खड़ा कर जनता को झूठे विकास की घुट्टी पिला रहे है। उन्हें शायद आज रेलवे का सबसे बड़ा भ्रष्टाचार दिखाई व सुनाई नहीं दे रहा है। जिसकी जलालत में जनता विगत कई सालों से जल रही है। रेलवे विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की इस समस्या पर पूर्ववर्ती सरकारों ने तो ध्यान नहीं दिया, लेकिन वर्तमान में केंद्र की सत्ता में काबिज भाजपा सरकार भी रेलवे के इस बड़े भ्रष्टाचार से बेखबर है। क्योंकि चुनाव के पहले यही भारतीय जनता पार्टी, भ्रष्टाचार के खिलाफ होने का दम्भ भर रही थी, लेकिन सत्ता में काबिज होने के बाद आज उसके दावे हवा हवाई साबित होते दिखाई पड़ रहे हैं। यात्रियों के आने जाने के लिए कंफर्म टिकट देने के नाम पर अब रेलवे विभाग के टिकट काउंटर पर भ्रष्ट दलालों ने डेरा डाल दिया है। इसके अलावा रेलवे विभाग से अटैच प्रâेंचाइजी चला रहे। अधिकांश दुकानदार भी टिकट की कालाबाजारी का गोरख धंधा शुरू कर रखे हैं।
बता दें कि इनका यह धंधा आज से नहीं बल्कि विगत कई सालों से चल रहा है। विश्वस्त सूत्रों की अगर मानें तो इस गोरख धंधे में रेलवे विभाग के कर्मचारी भी मिले रहते हैं, वह भी उनसे हर महीने एक मोटी रकम खाकर इस कार्य को बढ़ावा दे रहे हैं। ज्ञातव्य हो कि उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिलों से लोग रोजी-रोटी की तलाश में विभिन्न महानगरों मुंबई, नागपुर, दिल्ली, पुणे, गुजरात आदि जगहों पर लोग भारी मात्रा में रहते हैं। सूत्रों के अनुसार सबसे बड़ी समस्या सामने तब आती है, जब गांव आवश्यकता पड़ने पर जाने के लिए आसानी से टिकट नहीं मिल पाता है। बताया जाता है कि शादी विवाह के सीजन व शुभ प्रसंग के समय में टिकट की कालाबाजारी दलालों द्वारा व्यापक पैमाने पर की जाती है। उस समय रेलवे विभाग वह उसके अफसर चिर निद्रा में सोते रहते हैं। बताते हैं कि अगर रूपये 700 का टिकट है तो उनसे 1000.. 1200 रुपए एक टिकट पर एक्स्ट्रा रिजर्वेशन के नाम पर लिया जाता है। इस दौरान काउंटर पर भीड़ की वजह से उन्हें टिकट नहीं मिल पाता। इसके अलावा जो लाइन में लगकर तत्काल टिकट निकालना चाहते हैं, उनको भी बहुत कम मात्रा में लोगों को कंफर्म टिकट मिल पाता है। बाकी के लोगों को वेटिंग बताकर लौटा दिया जाता है। जबकि दलालों के पास वही टिकट उसी डेट पर ज्यादा दाम देने पर कंफर्म मिल जाता है। अब यहां सवाल यह खड़ा होता है कि जो टिकट रेलवे विभाग के काउंटर पर उस दिन का कंफर्म नहीं मिल सका, वह टिकट दलालों के पास से कंफर्म कैसे हो जाते हैं। टिकट की कालाबाजारी का यह खेल जौनपुर से लेकर देश भर के कोने-कोने तक फैला हुआ है। जिस पर रेलवे विभाग व उसके जिम्मेदार अफसर लगाम लगाने में विफल साबित होते दिख रहे हैं। इधर आमजनमानस व यात्री, त्राहि त्राहि कर रेलवे विभाग को उनकी विफलता पर कोस रहा है।