गुलजार साहब ने अपने करियर में शानदार गाने तो लिखे ही, साथ ही उन्होंने कुछ फिल्में भी बनाईं। उनकी कुछ फिल्में खास मुद्दे को उठाती नजर आईं तो कुछ फिल्में उन्होंने अपनी सृजनात्मकता को हवा देते हुए बनाईं। लोfकन उनकी अधिकतर फिल्मों में एक ये कॉमन बात थी कि वे रिश्तों की एहमियत और उसके रुहानी ताल्लुकात को दिखाती हैं।
बॉलीवुड में कई ऐसे कलाकार हुए जो एक सीमित समय के लिए इंडस्ट्री में आए और उनका रुतबा रहा। लेकिन कुछ कलाकार ऐसे भी रहे जिन्होंने कई पीढ़ियों को एक सेतु की तरह अपनी कला के माध्यम से जोड़े रखा और ऐसे ही एक कलाकार गुलजार हैं। उन्हें कुछ समय पहले ही ज्ञानपीठ अवॉर्ड देने की घोषणा की गई। गुलजार ने अपनी लेखनी और सिनेमाई समझ से हर मौके पर बॉलीवुड को उपहार दिया। कभी उन्होंने अपने लिरिक्स के जरिए गानों को अमर कर दिया तो कभी उन्होंने फिल्मों में संवाद दिए।

अफसोस कि पिछले 25 सालों में गुलजार साहब ने कोई फिल्म डायरेक्ट नहीं की लेकिन जितनी फिल्में उन्होंने डायरेक्ट की हैं वो अपने आप में ही एक जागीर हैं। उनकी हर फिल्म में एक मैसेज है। जो एक लाइन में जीवन का दर्शन दे सकता है वो एक फिल्म के जरिए कितना संदेश दे सकता है इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। गुलजार ने अपने करियर में यूं तो दर्जन भर फिल्में डायरेक्ट की होंगी। लेकिन हर फिल्म का अपना फ्लेवर है। उनकी कुछ फिल्में उनके सिनेमाई क्राफ्ट और सृजनात्मकता का भी परिचय देती हैं और उन्हें एक सफल डायरेक्टर बनाती हैं। गुलजार ने अपने पूरे करियर के दौरान रिश्तों पर बहुत काम किया. उनके गानों में भी आप ये चीज पाएंगे और फिल्मों में भी। अजनबी पराए नहीं हुआ करते, आखिर सब इंसान एक से हैं, बस हालात, माहौल और परिस्थितियां उसका व्यक्तित्व तय करती हैं। परिचय शब्द का इस्तेमाल किसी पहचानवाले के लिए किया जाता है। जब तक परिचय नहीं होगा जान-पहचान कैसे होगी। रिश्ते के आभाव को महीनता से दिखाती गुलजार की ये फिल्म किसी दर्शन से कम नहीं। एक मास्टर एक बड़े घर में बच्चों को पढ़ाने जाता है। वो आलीशान घर में बिना मां-बाप के पल रहे छोटे-छोटे बच्चों से रूबरू होता है।

उसे जीवन एक अलग ही रूप में नजर आता है। वहीं मौसम फिल्म गुलजार ने टाइम लैप को दिखाती एक बेहद शानदार फिल्म है। रिश्तों का सीधा संबंध कुदरत से है। कायनात में जो लिखा है उसे भला कौन टाल सका है। फिल्म में ऐसे ही दो अजनबियों की कहानी दिखाई गई है जो आपस में मिलते तो हैं लेकिन बिछड़ने के लिए। ये बिछड़न रिश्ते की राह पर कई निशान छोड़ जाते हैं. हमेशा मौसम वैसा नहीं रहता।किताब फिल्म में एक 12-14 साल का लड़का अपने माता-पिता के कटु संबंध से प्रभावित है। रिश्तों में अगर आत्मीयता न हो तो एक वक्त के बाद रिश्ते घुटन बन जाते हैं। ऐसा ही वो लड़का भी मेहसूस करता है और एक दिन अकेले घर से निकल पड़ता है। अब इस नाजुक उम्र में वो कैसे अकेले सर्वाइव करेगा ये अपने आप में सोचनीय है। तभी उसे एक फकीर मिलता है। वो उसे पनाह देता है। अब यहां भी फकीर का उस लड़के से कोई ताल्लुकात नहीं लेकिन यही तो रिश्तों की खासियत है। नमकीन हर एक शख्स के जीवन में रिश्तों की एहमियत है। रिश्तों का आभाव इंसान को तन्हा कर जाता है। नमकीन फिल्म में भी ऐसे ही आभाव को एक अजनबी भरता है। संजीव कुमार का किरदार काम के सिलसिले से दूर के एक गांव में जाता है जहां 1 महिला अपनी 3 बेटियों के साथ रहती है। घर में कोई भी पुरुष नहीं। वहां संजीव कुमार का किरदार उनके लिए अजनबी होते हुए भी सहारा बनता है। संजीव कुमार और जया बच्चन के जबरदस्त अभिनय से सजी फिल्म ‘कोशिश’ रिश्तों के करिश्मे पर है। रिश्ते कभी जबरदस्ती नहीं बनते, रिश्ते इत्तेफाक से बनते हैं। इस फिल्म में दो मूक बधिर आपस में टकराते हैं। दोनों में वैसे तो कोई रिश्ता नहीं लेकिन उनके जीवन का आभाव जब आपस में जा मिलता है तो एक रिश्ता पनपता है।