- सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा का तृतीय दिवस
जौनपुर धारा, जौनपुर। मनुष्यों का क्या कर्तव्य है इसका बोध भागवत सुनकर ही होता है। विडंबना ये है कि मृत्यु निश्चित होने के बाद भी हम उसे स्वीकार नहीं करते हैं। निष्काम भाव से प्रभु का स्मरण करने वाले लोग अपना जन्म और मरण दोनों सुधार लेते हैं। उक्त बातें काशी से पधारे पंडित श्री आचार्य प्रमोद त्रिवेदी महाराज के मुखारबिंदु से श्रोताजनों को कथा के तृतीय दिवस को श्रवण कराया गया।
उन्होंने कहा कि प्रभु जब अवतार लेते हैं तो माया के साथ आते हैं। साधारण मनुष्य माया को शाश्वत मान लेता है और अपने शरीर को प्रधान मान लेता है। जबकि शरीर नश्वर है। उन्होंने कहा कि भागवत बताता है कि कर्म ऐसा करो जो निष्काम हो वहीं सच्ची भक्ति है। श्रीमद्भागवत कथा जीवन के सत्य का ज्ञान कराने के साथ ही धर्म और अधर्म के बीच के फवार को बताती है। भागवत महापुराण ही ऐसा ग्रंथ है जो की मुक्ति के लिए गर्जना करता है इसमें प्रमाण है। एकम भागवतम शास्त्रम मुक्ति दानेन गर्जति एक ऐसा शास्त्र है जिसको श्रवण करने मात्र से मुक्ति मिल जाती। राजा परीक्षित को सात दिन में मृत्युदंड का श्राप मिला जो कि सुखदेव भगवान के द्वारा साप्ताहिक श्रीमद भागवत महापुराण की कथा श्रवण करने से उनको मुक्ति मिल गई। कथा आरंभ के पूर्व मुख्य यजमान पंडित दुबरी पत्नी आरती चौबे के द्वारा आचार्य रामलखन तिवारी पंडित रजनीश पाठक मृतुंजय पांडेय सुनिल के द्वारा व्यासपीठ का पूजन कर आरंभ किया गया। श्रोताजनो को दुपट्टा भेंटकर रविशंकर, हरिशंकर, रमेश, धर्मेंद्र, रितेश चौबे ने स्वागत किया। इस मौके पर भारी संख्या में श्रोता मौजूद रहे।