जौनपुर धारा,जौनपुर। पूर्वांचल विश्वविद्यालय से जनसंचार में मास्टर डिग्री और वकालत की पढ़ाई करने वाले मनीष पांडेय ने सांसारिक जीवन को त्यागकर संन्यास का मार्ग अपना लिया है। कभी अखबारों के ब्यूरो प्रमुख रहे मनीष अब श्रीश्री1008 श्री दंडीस्वामी मनीष आश्रम महाराज के नाम से विख्यात हैं और वामन विष्णु मठ, सीखड़ मिर्जापुर के महंत हैं। कुंभ मेले में अपने शिविर में उपदेश देते हुए उन्होंने कहा, ‘नारायण नाम का जाप ही सत्य है, यह संसार मात्र एक स्वप्न है। मनीष पांडेय का सफर प्रेरणादायक है। जनसंचार और वकालत जैसे आधुनिक पेशों से लेकर संन्यास और आध्यात्मिक मार्गदर्शन तक की यात्रा ने उन्हें अनूठी पहचान दिलाई है। उनका मानना है, ‘उमा कहहुँ मै अनुभव अपना, सत हरि भजन जगत सब सपना। उनकी यह आध्यात्मिक यात्रा समाज के लिए शांति और भक्ति का संदेश लेकर आई है। बतादें कि स्वामी मनीष आश्रम महाराज ने दंडी संन्यासी परम्परा से हैं जो कि दशनामी नागा सन्यासी सन्यासियों मे से एक है। यही दंडी सन्यासी स्वाध्याय करते करते जब ज्ञानवान हो जाता है तो शास्तरार्थ करके शंकराचार्य की घोषणा कर उपाधि प्राप्त करता है। स्वामीजी ने व्यावसायिक शिक्षा के रूप में एमजेएमसी (मास्टर इन जर्नलिस्म एण्ड मास कम्युनिकेशन) और वकालत जैसे डिग्रियां हासिल कर प्रैक्टिस किया और सफलता हासिल कर अपने कनिष्ठ अधिवक्ताओं को सौप दिया। सन्यास पश्चात उनका ज्यादातर समय हिमालय और काशी में व्यतीत होता रहा। उनका जीवन व्यसनहीन(नशामुक्त) रहा। चौबीस घंटे मे एक बार ही भोजन भिक्षा ग्रहण करते हैं। पालनहार नारायण पर और दण्ड सन्यास परम्परा पर इतना विश्वास करते हैं कि अपने हाथ से भोजन नहीं बनाते हैं।
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