- परमात्मा के दर्शन करने से ही होता है भक्ति का आरम्भ
जौनपुर धारा, जौनपुर। प्रभु परमात्मा को जिस किसी भी नाम से पुकारा जायें पर ब्रह्मज्ञान द्वारा इसके दर्शन करने से ही वास्तविक भक्ति का आरंभ होता है।
महाराष्ट्र के 57वें वार्षिक निरंकारी संत समागम के सतगुरु माता सुदीक्षा जी महराज के पावन संदेशो को बताते हुए स्थानीय मीडिया सहायक उदय नारायण जायसवाल ने कहा। सतगुरु माता जी एवं निरंकारी राजपिता जी के पावन सानिध्य में नागपुर के मिहान एसईजेड़ इलाके में आयोजित इस तीन दिवसीय सन्त समागम में देश-विदेश से लाखों का जन परिवार सम्मिलित हुआ और सभी ने सतगुरु के दिव्य दर्शन एवं पावन प्रवचनों का आनंद प्राप्त किया। सतगुरु माता जी ने अपने आशीर्वचनों में कहा कि निराकार परमात्मा जो सर्वत्र समाया हुआ है, समूचे ब्रह्माण्ड का कण कण जिसमें निहित है, जो स्थिर अनंत एवं सर्वव्यापी है। ऐसे परमात्मा का बोध होने के उपरांत जब हम इससे भावरुप में इकमिक हो जाते हैं। तब हमारे अंदर मानवीय गुणों का स्वत: ही समावेश हो जाता है। तभी हम समस्त संसार एक परिवार की भावना से युक्त होकर जीवन जीते चले जाते हैं। सतगुरु माता ने आगे समझाया कि हमारी जीव आत्मा इस परमपिता परमात्मा का ही अंश है जो इससे उभरकर अंत में इसी में समाहित हो जाती है। ब्रह्मानुभूति से हमें यह जब बोध हो जाता है कि हमारी वास्तविक पहचान यह शरीर नहीं अपितु हमारी आत्मा है जो इस परमात्मा से ही उत्पन्न हुई है। तो हमारी मुक्ती का मार्ग सहज ही सुलभ हो जाता है। इस समागम में सेवादल रैली, निरंकारी प्रदर्शनी आकर्षण का केन्द्र रहा। इसके अतिरिक्त शारीरिक स्वास्थ्य, पर्यावरण संतुलन, युवा एवं महिला सशक्तीकरण की दिशा में मिशन द्वारा किए जा रहे कार्यों को दर्शाने वाली समाज कल्याण प्रदर्शनी को भी जनसाधारण द्वारा सराहा जा रहा है।