Become a member

Get the best offers and updates relating to Liberty Case News.

― Advertisement ―

spot_img
Homeदेशजेल में बंद नवलखा की नजरबंद करने की याचिका मंजूर

जेल में बंद नवलखा की नजरबंद करने की याचिका मंजूर

एल्गार परिषद-माओवादी संबंध मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा को जेल से देर शाम तक रिहा नहीं किया गया क्योंकि सरकारी फॉर्मेलिटी पूरी नहीं हो सकी थीं. सुप्रीम कोर्ट ने जेल में बंद नवलखा की एक महीने के लिए घर में नजरबंद करने संबंधी याचिका को गुरुवार को मंजूर कर लिया. नवलखा (70) की सहयोगी सहबा हुसैन ने कहा कि वह (नवलखा) गुरुवार (10 नवंबर) को नवी मुंबई स्थित तलोजा जेल से बाहर नहीं निकल पाएंगे. उन्होंने कहा, ‘‘सुप्रीम कोर्ट ने (आदेश को लागू करने के लिए) 48 घंटे का समय दिया है. शीर्ष अदालत के निर्देशानुसार मुचलका भरने और जमा राशि सहित कई कागजी कार्रवाई की जानी है. नवलखा के एक वकील ने कहा कि अगर औपचारिकताएं पूरी हो जाती हैं तो वह शुक्रवार (11 नवंबर) को जेल से बाहर निकल सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खुश हैं

सहबा हुसैन ने कहा, “एक महीने के फैसले के लिए भी हम खुश हैं. आदेश में कहा गया है कि उन्हें मुंबई में रहना होगा. हमने कुछ जगहें देखे हैं, लेकिन हमने अभी तक स्थान चिन्हित नहीं किया हैं. हमें अभी इंतजाम करना है.” नवलखा को एल्गार परिषद-माओवादी के मामले में अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था. नवलखा गिरफ्तारी के बाद से जेल में बंद हैं. शीर्ष अदालत ने घर में नजरबंद रखने के नवलखा के अनुरोध को गुरुवार को मंजूर कर लिया और कहा, “उनकी मेडिकल रिपोर्ट खारिज करने की कोई वजह नहीं है”.

अदालत ने कई शर्तें लगाईं

जज के एम जोसेफ और ऋषिकेश रॉय की बेंच ने कहा, “नवलखा को घर में नजरबंद करने के आदेश को 48 घंटे के भीतर अमल में लाया जाए.” इसके साथ ही अदालत ने कई शर्तें भी लगाईं. हुसैन ने दावा किया कि अक्टूबर 2021 में, नवलखा को हाई सिक्योरिटी बैरक में शिफ्ट कर दिया गया था और तब से उन्हें एकांत कारावास में रखा गया है. सुप्रीम कोर्ट ने नवलखा को NIA को 2.4 लाख रुपये जमा कराने का भी निर्देश दिया. NIA ने पुलिस कर्मी उपलब्ध कराने के लिए ये खर्च आने का दावा किया था. कोर्ट ने ये भी कहा, “नवलखा को एक महीने के लिए घर में नजरबंद करने के दौरान कम्प्यूटर तथा इंटरनेट इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं होगी.”

31 दिसंबर, 2017  का मामला

ये मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित एल्गार परिषद में कथित भड़काऊ भाषणों से संबंधित है, जिसके बारे में पुलिस ने दावा किया कि उसके अगले दिन कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई. पुणे पुलिस ने यह भी आरोप लगाया कि सम्मेलन के कुछ आयोजकों के माओवादियों से संबंध थे, बाद में इस मामले की जांच की जिम्मेदारी NIA ने संभाली.

Share Now...