वाराणसी: शहर के ऐतिहासिक घाटों को हर कोई निहारना चाहता है. हर दिन घाटों की खूबसूरती देखने हजारों लोग यहां आते हैं. लेकिन, वाराणसी के घाटों पर इन दिनों जोशी मठ जैसा खतरा मंडरा रहा है. ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं, क्योंकि एक्सपर्ट का ऐसा कहना है कि गंगा के पूर्वी छोर पर बालू के टीलों के कारण नदी का दबाव घाटों की ओर है. इससे कई घाटों के नीचे कटान हो गया है. घाटों के दरकने के साथ उसके बैठने का खतरा भी बढ़ा है. दरअसल, बीते 31 दिसंबर को वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर गंगा आरती के दौरान घाट के प्लेटफार्म का एक हिस्सा अचानक धंस गया था. इसके अलावा राजा मान सिंह घाट, मीरघाट पर भी सीढ़ियां बैठ गईं हैं तो दूसरे कई घाटों पर दरारें दिख रही हैं. घाटों की इस दुर्दशा ने भू-गर्भ वैज्ञानिकों के साथ गंगा वैज्ञानिकों की चिंता को बढ़ा दिया है. ऐसे में उनका अनुमान है कि यहां के घाटों पर जोशी मठ जैसा संकट खड़ा हो सकता है.
बाढ़ के करंट से हो रहा कटाव
बीएचयू के भू-गर्भ वैज्ञानिक प्रोफेसर यूके शुक्ला ने बताया कि गंगा कभी रेत की तरफ तो कभी शहर की तरफ शिफ्ट होती रहती हैं. 10 साल पहले तक गंगा का बहाव रामनगर की तरफ ज्यादा था. लेकिन, वर्तमान में नदी का प्रवाह शहर की तरफ शिफ्ट हो रहा है. बाढ़ के वक्त गंगा के करंट के कारण घाटों के नीचे की मिट्टी भी कट जाती है. इस कारण अब कुछ घाट नीचे की तरफ बैठ रहे हैं. हालांकि, अभी ठीक ठीक आकलन नहीं किया जा सकता की इससे घाटों को कितना नुकसान हुआ है, लेकिन भविष्य के लिए ये खतरे की घंटी तो है ही.
बालू के टीलों ने किया बड़ा नुकसान
गंगा पर रिसर्च करने वाले गंगा बेसिन अथॉरिटी के सदस्य प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी ने बताया कि पूर्व में गंगा के दूसरे छोर पर कछुआ सेंचुरी के कारण बने बालू के टीलों ने घाटों को बड़ा नुकसान पहुंचाया था. बालू के टीलों की वजह से गंगा का दबाव शहर के घाटों की तरफ बढ़ गया था. इससे कई घाटों के नीचे मिट्टी कट गई और दरारें आ गईं. बाद में कुछ घाटों की रिपेयरिंग भी हुई, लेकिन वर्तमान में कितने घाट जर्जर स्थिति में हैं, इसके लिए सर्वे कराना जरूरी है. यदि सर्वे होकर इन घाटों की मरम्मत नहीं हुई तो भविष्य में वाराणसी के घाटों को बड़ा नुकसान हो सकता है.