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गोरखपुर में दो बेटियों के साथ क्यों फंदे से लटक गया पिता?

गोरखपुर जिले से तीन लोगों की आत्महत्या से सनसनीखेज फैल गई है। यहां शाहपुर इलाके में गीता वाटिका स्थित घोसीपुरवा में पिता और दो बेटियों ने दुपट्टे के सहारे फंदा बनाकर खुदकुशी कर ली। सूचना पर एसपी सिटी और फॉरेंसिक टीम जांच पड़ताल करने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। जांच में पता चला कि बच्चियों की फीस पांच महीने से बकाया थी।जानकारी के मुताबिक, शाहपुर इलाके के गीता वाटिका स्थित घोसीपुरवा निवासी ओमप्रकाश श्रीवास्तव के दो बेटे हैं। दोनों अलग बगल के मकान में रहते हैं। ओमप्रकाश मूल रूप से बिहार के गुठनी थाना क्षेत्र सिवान के रहने वाले हैं। घोसीपुरवा में तीस साल से मकान बनवा कर रहते हैं। ओम प्रकाश के बड़े बेटे जितेंद्र श्रीवास्तव (45) अपनी दो बेटियों और पिता के साथ रहते थे। जितेंद्र श्रीवास्तव घर में ही सिलाई का काम करते थे। गांव से आते समय मैरवा स्टेशन पर 1999 में ट्रेन से गोरखपुर आते समय एक पैर कट गया था। कृत्रिम पैर के सहारे घर में ही सिलाई का काम करते थे जबकि उनकी पत्नी सिम्मी की दो साल पहले कैंसर से मौत हो गई थी। उनकी दोनों बेटियां मान्या श्रीवास्तव (16) और मानवी श्रीवास्तव (14) आवास विकास स्थित सेन्ट्रल एकेडमी में कक्षा नौ और सात में पढ़ती थीं। मृतक के पिता ओमप्रकाश प्राइवेट गार्ड का काम करते हैं। सोमवार की रात शहर में ड्यूटी पर गए थे। सुबह मकान पहुंचे तो एक कमरे में बेटा और दूसरे कमरे में दो बेटियों के शव दुपट्टे के सहारे लटकता मिला। सूचना पर पहुंची पुलिस ने जांच पड़ताल करने के बाद शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। घर से मिले दो मोबाइल फोन और सुसाइड नोट की पुलिस जांच कर रही है। दोनों बच्चियों की पांच-पांच महीने की स्कूल फीस बकाया थी। मगर, स्कूल प्रबंधन का दावा है कि स्कूल फीस को लेकर उनके द्वारा कोई दबाव अभिभावकों पर या बच्चियों पर नहीं बनाया गया था। दोनों छात्राएं पढ़ने में भी अच्छी थीं। खासकर मान्या पढ़ने के साथ गैर शैक्षणिक गतिविधियों में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती थी। स्कूल प्रबंधन की ओर से बाल दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में भी मान्या ने हिस्सा लिया था। साथियों और शिक्षकों का कहना है कि किसी भी प्रकार का दबाव बच्ची के ऊपर नजर नहीं आ रहा था। स्कूल प्रबंधन का कहना है कि बच्चियों की आर्थिक स्थिति से उनके पिता द्वारा अवगत कराया गया था। बच्चियों के पढ़ाई में ठीक होने की वजह से स्कूल प्रबंधन की ओर से फीस को लेकर कोई दबाव नहीं बनाया जाता था।

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