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Jaunpur News : नहीं मिला आवास तो शौचालय बना सहारा

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खून की इस बीमारी से बचने के लिए ना खाएं शाकाहारी खाना, वरना हो सकता है जान को खतरा!

थैलेसीमिया एक आनुवांशिक रोग है जो माता-पिता से बच्चों को होता है. थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों में सामान्य लोगों की तुलना में हीमोग्लोबीन की मात्रा कम होती है. हीमोग्लोबीन शरीर के लिए सबसे जरूरी प्रोटीन में से एक है जो ब्लड सेल में होता है. इसके जरिये ऑक्सीजन को शरीर के अलग-अलग हिस्सों तक पहुंचाया जाता है. शरीर में हीमोग्लोबीन सही मात्रा में नहीं होने पर रेड ब्लड सेल अच्छी तरह से काम नहीं करते, जिससे एनीमिया की समस्या हो जाती है.

न्यूट्रीशनिस्ट और हेल्थ एक्सपर्ट यशवर्धन स्वामी बताते हैं कि थैलेसीमिया के कारणों में शरीर में आयरन की कमी है जिससे थकान, सांस लेने में दिक्कत, कमजोरी आ जाती है और हाथ, पैर ठंडे पड़ जाते हैं. उन्होंने बताया, आयरन एक ऐसा मिनरल है, जिसकी जरुरत ग्रोथ, डेवलपमेंट और हीमोग्लोबीन बनाने में होती है. यह हॉर्मोन के मेटाबोलिज्म के लिए जरुरी है. थैलेसीमिया दो तरह के होते हैं और इसका इलाज इनके प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करता है. इसका प्रभाव माइल्ड से गंभीर और कुछ मामलों में जानलेवा हो सकता है. एक्सपर्ट के मुताबिक, भारतीयों में आयरन की कमी आम है क्योंकि यहां अधिकतर लोग शाकाहारी हैं. हम में से अधिकतर शाकाहारी हैं और शाकाहारी खाना नॉन-हेम होता है. उन्होंने बताया, नॉन-हेम आयरन स्रोत शरीर में सही तरीके से एब्जॉर्ब नहीं होते इसलिए हमें हमारी डाइट में अधिक आयरन लेना चाहिए, विशेष रूप से जब हम शाकाहारी नॉन-हेम आयरन स्रोत पर निर्भर हो. उन्होंने सुझाव दिया कि एब्सॉर्ब और बायो-एवेलेबिलिटी में सुधार के लिए नॉन-हेम आयरन स्रोत के साथ विटामीन सी खाना चाहिए. नॉन-हेम आयरन स्रोत में अनाज, नट्स, सीड और हरी पत्तियां शामिल हैं. हेम आयरन सोर्स में बायो-एवेलेबिलिटी अधिक होती है. इनमें ऑर्गन मीट, पॉल्ट्री और चुनिंदा सीफूड जैसे प्रोटीन शामिल हैं. उनका कहना है कि अगर किसी को ब्लड ट्रांसफ्यूजन की समस्या आ रही है तो संभावना है कि शरीर में आयरन की मात्रा अधिक है इसलिए इन मामलों में आयरन की खपत हेल्थ के लिए खतरा हो सकती है. ऐसे मामलों में एक्सपर्ट से सलाह लेने की जरूरत है क्योंकि शरीर में आयरन की मात्रा अधिक होने से टॉक्सिटी बढ़ सकती है जो हेल्थ के लिए सही नहीं होगी. ऐसा अनुमान है कि दुनियाभर में 27 करोड़ लोग ऐसे हैं, जो इस ब्लड डिसऑर्डर से जूझ रहे हैं. हाल ही में हुए एक सर्वे से पता चला कि इस गंभीर बीमारी से हर साल तीन लाख से चार लाख बच्चों का जन्म होता है और इनमें से 90 फीसदी बच्चों का जन्म कम या मध्य आय वाले देशों में होता है.

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