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हां, मैं हाउस हसबैंड हूं

जितना मुश्किल किसी स्त्री के लिए समाज की गैर बराबरी वाली परंपराओं को तोड़ना होता है, उतना ही मुश्किल पुरुष के लिए भी तमाम तय ढर्रों से अलग चलना होता है. मैंने ये गुस्ताखी कर दी है और आम चलन की तरह नौकरी की जगह हाउस हसबैंड की भूमिका चुनी है. मेरी पत्नी एक कॉलेज प्रोफेसर है और मैं गृह पति यानी कि हाउस हसबैंड हूं. अपनी इस भूमिका को मैंने खुद चुना है और मैं इससे बहुत खुश भी हूं. पति होम मेकर होना कैसा होता है. क्यों मैंने इसे चुना और क्या था इसे लेकर मेरे परिवार, दोस्तों और समाज का रिएक्शन…जानने के लिए पढ़िए मेरी ये कहानीः-

मैं होम मेकर हूं… मैं खुश हूं…

एक दिन परिवार के व्हाट्सऐप ग्रुप पर मैंने अपनी बर्तन मांजते हुए फोटो डाल दी. उस पर ऐसा बवाल मचा कि पूछिए मत…इसी तरह लोग मुझसे पूछते हैं कि दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़-लिखकर तुम घर संभालना चाहते हो, पत्नी की कमाई खाना चाहते हो, मजाक कर रहे हो?

अब मैं उन्हें कैसे समझाऊं कि मैं मजाक नहीं कर रहा. मैंने जॉब करके भी देखा है, लेकिन हाउस हसबैंड और होम मेकर की भूमिका में ही खुद को पूर्ण मानता हूं. मेरे भीतर कोई कुंठा नहीं है. मेरी कोई महत्वाकांक्षा अधूरी नहीं है. मुझे घर संभालना इतना पसंद आता है कि मैं इसमें खुद को परफेक्ट मानता हूं. मुझे समझ नहीं आता कि जमाना किसी लड़की का जॉब छोड़कर घर की जिम्मेदारी लेने का फैसला इतनी आसानी से स्वीकार कर लेता है तो फिर मुझसे क्या दिक्कत है. मुझे ये कहते कभी शर्म नहीं आई कि मैं हाउस हसबैंड हूं, मैं होम मेकर हूं. मैं खुश हूं.

हाउस हसबैंड बनूंगा, कभी नहीं सोचा था

मेरी कहानी मैं अपनी लव स्टोरी या हाउस स्टोरी से शुरू न करके अपने बचपन से शुरू करता हूं. मैं समस्तीपुर बिहार की एक मिडिल क्लास फैमिली का हूं. मेरा परिवार मूल रूप से खेती-गृहस्थी वाला है, खेती के साथ पापा विनय कुमार प्रसाद वकालत करते हैं और मां वीना प्रसाद होममेकर हैं. तीन भाई-बहन में मैं सबसे छोटा हूं. सबसे बड़े भैया आदित्य विनय भी वकालत करते हैं और भाभी किरण होम मेकर हैं. दीदी वत्सला विक्रम एजुकेशनल ट्रस्ट चलाती हैं, वो सहरसा और आसपास काम करती हैं. वहीं मेरे जीजा गुरुग्राम में एक नामी कंपनी में काम करते हैं. इस परिचय के साथ ही दूसरा परिचय ये है कि घर में मुझे भी आम पुरुषों की ही तरह पाला गया. मैंने हमेशा घर में मां को काम करते और पिता को कमाते देखा. अपने आसपास भी मैंने यही माहौल देखा.

बचपन में प्राइमरी क्लासेज से ही मैं पटना के एक हास्टल में रहा. आठवीं तक वहां पढ़ने के बाद नौवीं में छह माह पढ़कर केंद्रीय विद्यालय समस्तीपुर में दाखिला लेकर दसवीं पास की. इसके बाद होली मिशन स्कूल समस्तीपुर से 12वीं किया. ये उम्र होती है जब बच्चे बहुत बड़े बड़े सपने देखते हैं. मैं भी देखता था. जैसे फिल्में देखी तो लगा हीरो बन जाएं, फिर क्रिकेट देखा तो लगा सौरव गांगुली बन जाएं, कभी एसपी डीएम को देखा तो लगा कि ये बन जाएं. कहने का मतलब है कि मेरा ऐसा कोई तय नहीं था कि मुझे ये ही बनना है.

हां, समाज में कोई कुरीति या बुराई दिखती थी तो ये जरूर लगता था कि इसको ठीक करेंगे. लेकिन, कभी हाउस हसबैंड बनेंगे ये नहीं सोचा था. शादी को लेकर ये जरूर सोचा था कि मेरे परिवार में हम पति-पत्नी दोनों में काम के बंटवारे को लेकर कभी कोई अंतर नहीं होगा.

खैर, ये हुई सोच की बात. ये सोच कैसे जिंदगी में आगे बढ़ी, इसके लिए आपको आगे की कहानी जाननी होगी. तो हुआ यूं कि 12वीं पास करके मैं अपने थायरायड का चेकअप कराने पापा के साथ दिल्ली आया था. यहां पापा ने दिल्ली विश्वविद्यालय का फॉर्म भरा दिया. मुझे लगा कि शायद साल में दो चार बार ही आना पड़ेगा, कर लूंगा मैनेज. लेकिन बिहार वापसी का सिर्फ एक टिकट देखकर समझ आ गया कि पापा वापस लौट रहे, मुझे अब यहां ही रहना होगा.

यहां मैं किरोड़ी मल कॉलेज में आवेदन करने गया तो नहीं हुआ. मैंने दयाल सिंह मॉर्निंग कॉलेज में ट्राई किया तो यहां दाखिला हो गया. यहां से मेरे हॉस्टल का जीवन शुरू हो गया. अब पहले साल में मैंने यहां टॉप करके सेकेंड इयर में केएमसी में दाखिला ले लिया. इस तरह मैंने बीए ऑनर्स हिंदी में ग्रेजुएशन कंपलीट किया, फिर पीजी भी यहीं से कंपलीट किया.

ऐसे हुई दीपा से मुलाकात

इसी जर्नी के दौरान जब मैं एमए लास्ट ईयर में था. तभी एक दिन दीपा से मिला. मैं यहां बस स्टॉप पर अपने दोस्त के साथ फोटोकॉपी के लिए खड़ा था. तभी दीपा यहां आई, उसके साथ कोई सहेली थी. मेरा दोस्त उसकी सहेली इत्तेफाक से कॉमन फ्रेंड थे. दोनों ने बातचीत शुरू कर दी तो मैं और दीपा भी बात करने लगे. इस तरह हमने अपने नंबर शेयर किए और बातचीत होने लगी. कुछ ही दिन में हम एक दूसरे के अच्छे दोस्त बन गए. एक दिन मैंने दीपा से पूछ दिया कि व्हाई यू लाइक मी? दीपा हंसने लगी और इस तरह हम दोनों ने एक दूसरे से इजहार कर दिया. बाद में मुलाकातें होने लगीं. इस तरह फिर कमिटेड रिलेशन में आ गए. हमने घर पर बात की तो दोनों की फैमिली राजी हो गई. उनका मानना था कि बच्चे ग्रो कर रहे हैं, साथ-साथ आगे बढ़ जाएंगे. इस तरह 8 दिसंबर 2018 को हमारी शादी हो गई. अब करियर की बात करें तो मैंने 2012-13 में एक न्यूज चैनल में काम किया और इसी दौरान दीपा ने एक अखबार ज्वाइन किया. फिर हम लोग गेस्ट टीचिंग में भी गए. शादी के दौरान लोगों ने कहा कि आप लोग गेस्ट टीचर्स हैं और शादी कर रहे हैं. तब मैं कहता था कि हमें साथ रहने में अच्छा महसूस होता है. मैं हमेशा महसूस करता था कि दीपा के भीतर करियर बनाने की इच्छा मुझसे कहीं ज्यादा थी. खैर हम शादी करके साथ रहने लगे. दोनों जॉब करते थे और घर की जिम्मेदारी दीपा ज्यादा निभाती थी. एक बात और कि शादी से कुछ समय पहले ही दीपा ने 2016-17 में लोक सेवा आयोग के लिए एग्जाम दिया था. इसका साल 2018 में रिजल्ट आया जिसमें उन्होंने मेंस पास किया था. फिर साल 2020 में इंटरव्यू कॉल आया. हमारी एनिवर्सिरी वाले दिन ही दीपा का इंटरव्यू था. वो तैयारी में लगी थीं, हम एक होटल में ठहरे थे, उस दिन बहुत कॉल्स आ रही थीं. मैंने दीपा को कमरे में छोड़कर दिन भर फोन अटेंड किया. उस दिन मुझे दीपा की जिम्मेदारी निभाकर बहुत अच्छा लग रहा था. खैर वो दिन बीता और आखिर में हमें वो खबर भी मिली जिसका इंतजार था. दीपा अब कॉलेज की प्रोफेसर बन गई थीं. उनकी ज्वाइनिंग के लिए हम लोग 3 मार्च 2021 को चमोली आ गए. फिर धीरे-धीरे हम यहां सेटल हो गए. मैंने गेस्ट टीचर का जॉब छोड़ दिया.

कुछ ऐसा था रूटीन

यहां आकर मैंने देखा कि दीपा का संघर्ष अब और बढ़ गया था. कॉलेज जाने से पहले सुबह उठकर नाश्ता-खाना बनातीं, फिर शाम साढ़े तीन बजे वापस आकर बाजार से सब्जी लाना, कभी कुछ सामान लाना फिर रात में खाना बनाने में लग जाना. मेरी पीएचडी की पढ़ाई चल रही थी तो मैं सिर्फ बैठकर पढ़ाई करता रहता. लेकिन भीतर से मुझे लग रहा था कि ये सही नहीं है. मैंने एक दिन दीपा से कहा कि इतना काम मत कीजिए. कुछ मुझ पर भी छोड़ दीजिए.

बस, यहीं से ये शुरुआत हुई जब मैंने कहा कि मैं घर देखूंगा, तुम आराम से अपना काम करो. अब जब मैंने घर संभालना शुरू किया तो सच ये है कि मुझे कोई भी काम सलीके से करना नहीं आता था. लेकिन मैंने यूट्यूब, दोस्त या दीपा की मदद से खाना बनाना सीखा. झाड़ू-पोछा, कपड़े धोना, घर सजाना, घर का रखरखाव करना सीखा. मुझे ये काम बहुत क्रिदएटिव और अच्छा लगने लगा. मुझे पढ़ने का समय भी मिलने लगा था.

अब लेकिन प्रॉब्लम यहां आती है कि जब आप किसी तय ढर्रे से अलग चलते हैं तो लोगों के हजार सवालों का सामना करना पड़ता है. कई बार कानाफूसी तो कई बार तानेबाजी, मुझे ये सब अक्सर सुनने को मिलता है, लेकिन अब मुझे ये असर होना बंद हो गया है. मैं और मेरी पत्नी अक्सर इस पर बात करते हैं कि क्यों पुरुष ऐसे जोन में नहीं रह सकते, जहां स्त्री को रखा जाता है. मुझे जब अपना काम पसंद है तो मैं उसमें खुद को फिट करना चाहता हूं.

मैंने हाउस हसबैंड की पूरी जिम्मेदारी लेने के बाद ही समझा है कि मेरा काम इतना आसान नहीं है. मुझे हर दिन इस बात की चिंता करनी पड़ती है कि शाम को सब्जी क्या बनेगी. राशन में फलां चीज खत्म हो रही है. हम लोग अगर कहीं बाजार घूमने जाते हैं और बादल गहराने लगते हैं तो मुझे बाहर सूख रहे कपड़ों की चिंता होती है. तेज धूप हुई तो मन में रहता है कि क्लॉथ होल्डिंनग क्लिप धूप में खराब न हो जाएं. रोज खाना पकाते मन में रहता है कि सब्जी टेस्टी बने, वरना मेहनत बेकार हो जाएगी. घर में कोई आ रहा हो तो पूरा पूरा दिन तैयारी में लग जाता है. हालांकि दीपा कई कामों में मेरा हाथ बंटा देती हैं, लेकिन फिर भी मेरे घर संभालने में मैं सारी चीजों को अपने ही कमांड में रखता हूं. लोग मुझसे कहते हैं कि घर का काम कितनी देर का होता है, अगर तुम इस काम में लग जाओगे तो तुम्हारा सोशल सर्किकल क्या होगा. महिलाएं तो किटी पार्टी कर लेती हैं या आपस में साथ बैठकर बातें कर लेती हैं. या कहीं साथ में घूमने चली जाती हैं लेकिन तुम क्या अकेलेपन का शिकार नहीं होगे. इस पर मेरा यही जवाब होता है कि मैंने अपने टाइम को बेहतर तरीके से मैनेज किया है. मेरे भी दोस्त हैं जिनके साथ मैं अक्सर शाम का वक्त बिताता हूं. मुझे खाली वक्त में पढ़ना भी अच्छा लगता है. मैं इस काम में किसी तरह के तनाव में नहीं रहता. फिर अपने खर्चे के लिए क्या पत्नी के सामने हाथ फैलाते हो, ऐसे सवाल पर मैं कहता हूं कि नहीं मैं हाथ नहीं फैलाता. ये हमारा घर है, जहां एक कमाता है, एक घर संभालता है. घर के खर्चे चलाने के लिए मैं बजट बनाकर काम करता हूं, मेरे भी खर्च होते हैं. इसके लिए अपना इतना ईगो क्यों लगाना. पति कमाता है और पत्नी अगर घर संभालती है तो वो भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रही होती है. इसमें उसके कमाने पर तो सवाल नहीं उठाते आप लोग, फिर मैं कमाकर खाता हूं या अपना घर संवारकर, इससे किसी को क्यों कोई सरोकार होना चाहिए. कभी तो जॉब करना चाहेंगे? लोग मुझसे ये भी पूछते हैं. इसका जवाब यही है कि मैं बाहर जाकर कोई नौकरी करने के पक्ष में नहीं हूं. कल को हम फैमिली प्लान करेंगे तो मुझे बच्चे को भी देखना होगा. हालांकि अगर वर्क फ्रॉम होम मिला तो जरूर पार्ट टाइम में करना चाहूंगा.

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