जौनपुर धारा, जौनपुर। जिले के गांव-गांव में शहर के चैराहों पर होलिका दहन करने से पूर्व उस जगह पर रेड़ का पेड़ व डाली जमीन में गाड़ने की परंपरा विधि विधान से पूरी की गयी। सदियों से इस परम्परा का पालन विधिवत पूजा-अर्चना के साथ बसंत पंचमी के दिन किया जाता है। जिन जगहों पर किसी कारणवश बसंत पंचमी के दिन यह परंपरा पूरी नहीं हो पाती वहां पर होलिका दहन से एक दिन पहले अवश्य अरंड पेड़ गाड़कर वहीं पर लकड़ियां एकत्रित की जाती है। बताया गया कि अरंड पेड़ को गाड़कर पेड़ की भी पूजा करने की परंपरा निभाई गयी। 40 दिनों तक इसी जगह पर मोहल्ले के बच्चे, युवा लकड़ियां एकत्रित करके रखते हैं और होली के एक दिन पूर्व होलिका दहन किया जाता है। कहा जाता है कि अरंड नाम के पेड़ की ऊंचाई ज्यादा नहीं होती। यह हर गांव, शहर में आसानी से उपलब्ध हो जाता है। आयुर्वेद में इस पौधे को शेर की उपाधि दी गई है क्योंकि अरंड के पौधे का हर एक हिस्सा रोगनाशक होता है। जड़ से लेकर पत्ता, तना, फल सभी का इस्तेमाल विभिन्न रोगों के उपचार में किया जाता है। शिशिर ऋतु के बाद वसंत ऋतु का आगमन होने के समय संधिकाल में कई प्रकार के जीवाणु, कीटाणु एवं रोगाणु पनपने लगते हैं। इसीलिये अरंडी के पेड़ की पूजा करके वहीं पर होलिका के लिये लकड़ी, कंडे आदि एकत्रित करने की शुरुआत की जाती है।
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विधि विधान से स्थापित की गयी होलिका

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