कानपुर.अपने चमड़े के कारोबार से कानपुर का नाम पूरी दुनिया में मशहूर है. लेकिन आज कानपुर का चमड़ा उद्योग अपनी पहचान को खोने पर मजबूर है.इसका एक बड़ा कारण सरकार द्वारा गंगा नदी के प्रदूषण का हवाला देते हुए कारखानों को बंद करने या उत्पादन सीमित करने का निर्णय है. पहले नोटबंदी की मार फिर स्लॉटर हाउसेस पर मंदी का असर और अब मवेशियों के लिए एक नया कानून, कुल मिलाकर कानपुर का चमड़ा उद्योग धीरे धीरे ख़त्म हो रहा हैं. कुछ वर्षों पहले तक कानपुर में विदेशी खरीददारों की आमद होती रहती थी. यहां से रेड टेप, बाटा, हश पप्पिज, गुच्ची, लुइस वितों जैसे लगभग हर बड़े ब्रांड को चमड़े की सप्लाई कानपुर से होती थी. लेकिन अब चमड़ा फैक्टरियों को माल नहीं मिल पा रहा है. यही वजह है कि अब कानपुर चमड़ा उद्योग को बंदी की ओर है. मौजूदा समय मे फैक्ट्रियों में सिर्फ 2 से 3 महीने का स्टॉक बचा है.कानपुर के पेच बाग,नई सड़क इलाका सूबे की सबसे बड़ी चमड़ा मंडी है.यहां पर साल 2014 से पहले प्रतिदिन 20-25 ट्रक खाल आया करती थी.यहा पर करीब 12 सौ मजदूर काम करते थे.इस इलाके ने करीब 500 रजिस्टर्ड कारोबारी हुआ करते थे,जो मौजूदा समय 10 फीसदी भी नहीं बचे हैं.एक ट्रक खाल का माल पहले 15-16लाख तक आता था. पेच बाग में खाल को नमक लगा कर रखा जाता था और फिर टेनरी भेजा जाता था. वहां उसको फिनिश करके फैक्ट्री में भेजा जाता था. जिससे जूते, घोड़े की काठी, बेल्ट, पर्स और अन्य आइटम बनते थे. यहां पर कुल 6000 करोड़ का टर्नओवर हुआ करता था. जो भारत में तमिलनाडु के बाद दूसरे नंबर पर था. चमड़ा उद्योग से सीधे तौर पर 2 लाख और अप्रत्यक्ष रूप में 20 लाख लोगों को रोजगार मिला करता था.लेकिन सरकार की सख्ती होने के बाद अब इन व्यापारियों को खाल नही मिल पाती है. जिसके कारण इन्होंने चमड़ा उद्योग को बंद कर दिया है और अब यह सब रेडीमेड का व्यापार कर रहे हैं. कानपुर के चमड़ा चमड़ा देश-विदेशों में मशहूर है. यहा पर जाजमऊ में लेदर की फेमस मार्केट है.इस बाजार में न केवल नेशनल बल्कि बड़े बड़े इंटनेशनल ब्रांड भी मिलते हैं.खास बात ये है कि सभी जगहों से सस्ते ब्रांडेड वस्तुएं यहा पर मिलती है. यहां का लेदर इतना मशहूर है कि जब भी कोई क्रिकेटर और बॉलीवुड की हस्ती शहर आती है तो बिना यहां खरीदारी के नहीं जाती है.
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कानपुर का चमड़ा उद्योग खो रहा अपनी पहचान

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