Tulsi Vivah Puja 2024: देवउठनी एकादशी पर विधि से हुआ तुलसी विवाह

0
189

जौनपुर धारा, जौनपुर। हिन्दू धर्म में देवउठनी एकादशी एक विशेष दिन है, कार्तिक माह में आने वाली पूर्णिमा तिथि और भी विशेष मानी जाती है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु चार महीने बाद अपनी योग निद्रा से जागते हैं। इसी वजह से इसे देवउठनी एकादशी भी कहा जाता है। एकादशी के अवसर पर श्रद्धालुओं ने विधि विधान से तुलसी का विवाह किया। सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो घर के उस स्थान पर जहां तुलसी लगाया है, उस मंदिर में दीप प्रज्वलित कर भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करने के बाद भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित किया गया। प्रसाद के रूप में आंवला, सेब, केला आदि चढ़ाया गया। मान्यता है कि देवउठनी एकादशी पर तुलसी माता को लाल रंग की चुनरी अर्पित करनी चाहिए। ऐसा करने से साधक के जीवन में धन-वैभव बना रहता है। साथ ही इस उपाय करने से शादी-विवाह में आ रही है अड़चनें भी दूर होती हैं।

तुलसी विवाह का पर्व देवउठनी एकादशी मंगलवार को पूरे उल्लास के साथ धूमधाम से मनाया गया। गन्ने के मंडप तले शालिग्राम-तुलसी की पूजा अर्चना के साथ विधि-विधान से विवाह हुआ। देवउठनी पर्व के बाद वैवाहिक आयोजन सहित अन्य मांगलिक अनुष्ठान पूजा की शुरुआत हो गई है। धार्मिक परंपरा के साथ तुलसी व शालिग्राम विवाह देवउठनी में कराया गया। लोगो ने अपने घरों के द्वार पर रंगोली की कलाकृति भी बनाई। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु चार माह के लिए सो जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जगते हैं। चार माह की इस अवधि को चतुर्मास कहते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है और शादी-विवाह शुरू हो जाते हैं। हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत बड़ा महत्व है। हिंदी चंद्र पंचांग के अनुसार पूरे वर्ष में चौबीस एकादशी पड़ती हैं, लेकिन यदि किसी वर्ष में मलमास आता है, तो उनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। इनमें से एक देव उथानी एकादशी है। देवउठनी एकादशी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को होती है। कहा जाता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देव-शयन हो जाता है और फिर कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन, चातुर्मास का समापन होता है, देव चौदस त्योहार शुरू होता है। इस एकादशी को देवउठनी कहा जाता है।

Share Now...

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here