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Jaunpur Dhara News : मां के जयकारे से गूंजा पण्डाल, लगा दर्शनार्थियों का कतार

जौनपुर धारा, जौनपुर। नवरात्रि के दूसरे दिन भी नगर के शीतला चौकिया धाम व परमानतपुर स्थित मैहर देवी मंदिर समेत जिले की तमाम देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह से लेकर देर शाम तक लगी रही। लोग माता रानी के दर्शन कर निहाल हो गये। पूजा पण्डाल माँ दुर्गा के जयकारों से गूंज रहा है। मां अंबे सेवा समिति रोडवेज तिराहा, जय मां शेरावाली बाल संस्था लाइन बाजार से कचहरी रोड ने प्रतिमा स्थापित की। जिसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु उमड़ रहे हैं, वहीं अष्टभुजी संस्था द्वारा कन्हईपुर में राम दरबार का भव्य प्रवेश द्वार बनाया गया है। जो आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। शुक्रवार को नवरात्रि का दूसरा था। नवरात्रि एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘नौ रातें’। इन नौ रातों और दस दिन के दौरान देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है और दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है। माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरुप देवी ब्रह्मचारिणी का हैं। यहां ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या है। ब्रह्मचारिणी अर्थात तप की चारिणी-तप का आचरण करने वाली। कहा भी हैं ‘वेदस्तत्वं तपो ब्रह्म-वेद, तत्व और तप ब्रह्म शब्द के अर्थ हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य हैं। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएं हाथ में कमंडल रहता है। अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर में पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं तब नारद के उपदेश से इन्होने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए अत्यंत कठिन तपस्या की थी। इस दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपस्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष उन्होंने केवल फल, मूल खाकर व्यतीत किए और सौ वर्षों तक केवल शाक पर निर्वाह किया था। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखते हुए देवी ने खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के भयानक कष्ट सहे। इस कठिन तपस्या के पश्चात तीन हजार वर्षों तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर वे भगवान शिव की आराधना करती रहीं। इसके बाद उन्होंने सूखे बेलपत्रों को भी खाना छोड़ दिया और कई हजार वर्षों तक वे निर्जल और निराहार तपस्या करती रहीं। पत्तों को भी खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम ‘अर्पणा’ भी पड़ गया।

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