- मूर्ति को फाइनल टच दे रहे मूर्तिकार, खास स्वरूप दिखाने का प्रयास
- अंतिम चरण में हैं दुर्गा पूजा के आयोजन की तैयारियां
जौनपुर धारा, जौनपुर। जिले में शारदीय नवरात्र दुर्गा पूजा को लेकर तैयारी जोरों पर है। जगह-जगह पूजा समिति का गठन कर लिया गया है। तीन अक्टूबर से शुरू होने वाले शारदीय नवरात्रों के लिए तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी है। नवरात्रों को लेकर माता की प्रतिमाएं बनाने वाले कारीगर पूरी तैयारी के साथ काम को अंतिम रूप देने में जुट गए हैं। नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में सैकड़ों पांडालों में माता की प्रतिमा स्थापित की जाएगी और 9 दिनों तक शहर में धूम रहेगी। कई पण्डालों में तो मूर्तियां दो दिन पूर्व ही लाकर रख दी गई है।
शारदीय नवरात्र का रंग अब शहर के बाजारों पर भी चढ़ने लगा है। फूल-फल व पूजा सामग्रियों के बाजार अभी से सजने लगे हैं। इस बाजार में माता की अलग-अलग चुनरी भी मंगायी गई है। इन दुकानों में मां की चुनरी के साथ नारियल व पूजा सामग्री भी जुटाए गये हैं। खास कर शहर का भट्ठा बाजार और खुश्कीबाग हाट रोड की दुकानें दुर्गा पूजा को लेकर सज कर तैयार हो गई हैं। पूजा के लिए कलश, नारियल, चुनरी, रोली, पान, घी, धूप बत्ती, अगरबत्ती, लोंग, सुपारी, कपूर सहित पूजा में इस्तेमाल होने वाली सभी सामग्रियां इन दुकानों में उपलब्ध हैं. चूंकि नौ दिन के व्रत में अन्न से परहेज किया जाता है, इसलिए बाजार में कुट्टू, फल, व्रत के अन्य सामानों की भी दुकानें सज गई हैं। दुकानदार विजय गुप्ता ने बताया कि दुकानों पर नवरात्र को लेकर ग्राहकों की भीड़ बढ़ने लगी है। नवरात्र को लेकर बाजार में रौनक है। शहर के चहारसू चौराहा के निकट ताड़तला की बड़ी महारानी ओलन्दगंज के फलवाली गली की भव्य प्रतिमा बनाई गई हैं तो वहीं बनी हुई प्रतिमाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है। मूर्ति बनाने वाले कलाकार ने बताया कि आगामी नवरात्रों को लेकर वह माता की मूर्तियां लगभग तैयार कर ली गई है। इस बार की मूर्तियां चार फिट से लेकर 20 फीट तक बनाई गई है। शेर पर सवार दुर्गा प्रतिमा, गणेश, लक्ष्मी, कार्तिकेय की प्रतिमा भी बनकर तैयार हो गई है।

इसकी तैयारी के लिए बहुत पहले से ही तैयारी कर दी गई थी। वही पूजा पंडालों में भी बांस-बल्लियां लगनी शुरू हो गई है। इसके लिए भी खास तरीके से सजावट किया जा रहा है। वही दुर्गा पूजा महासमिति के लोग भी अपनी तैयारी पूरी करने में लगे हुए हैं। सुबह-शाम व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए बैठकों का भी दौर तेज हो गया है। जिले में 600 से अधिक पूजा पंडाल है। इस बाबत मूर्तिकार आलोक प्रजापति ने बताया कि इस बार पूजा पंडालों की तरफ से बड़ी मूर्ति के आर्डर नहीं मिल रहे है। अब प्रतिमाओं के श्रृंगार का काम किया जा रहा है। बढ़ती महंगाई का असर दुर्गा प्रतिमाओं पर भी दिख रहा है। रंग पेंट सहित अन्य निर्माण सामग्रियों की कीमत बढ़ने से मूर्तियों की कीमतों में गत वर्ष की अपेक्षा 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। 40 से 50 फीट की प्रतिमाएं ओलन्दगंज, गौशाला, रसूला, कन्हईपुर, उर्दूबाजार आदि क्षेत्रों की है। समितियों की समस्याओं बिजली, पानी, साफ-सफाई को लेकर नगर निकाय व प्रशासन को डिमांड भेजी जा रही है। जिले में 1200 से ऊपर पूजा पंडाल सजाए जाते है। इसमें श्री दुर्गा पूजा महासमिति से पंजीकृत समितियों की संख्या आधी है। कलाकारों की माने तो मूर्ति को बनाने में काफी खर्च आता है और मेहनत भी लगती है। कहीं मां दुर्गा की प्रतिमा को अंतिम रूप दिया जा रहा है तो कहीं अलग-अलग थीम के तहत पंडाल सज रहे हैं। पूजा पंडालों में भी दुर्गा की मूर्ति बनाने का काम अब लगभग अंतिम रुप में आ गया है। जबकि अन्य तैयारियां भी अंतिम चरणों में चल रही है। बंगाल से आए मूर्तिकार मां दुर्गा के साथ-साथ कार्तिकेय, गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती की मूर्ति भी तैयार कर चुके हैं। इस बार भी काफी संख्या में छोटे-बड़े पूजा पंडालों में शक्ति की आराध्य देवी मां दुर्गा की आराधना को लेकर पूजा कमेटियां और कारीगर जी जान से लगे हुए हैं। यहां के पूजन पंडालों में श्रद्धालुओं की सर्वाधिक भीड़ देवी के दर्शन के लिए उमड़ती है। अहम यह है कि यहां के पूजा पंडाल प्रत्येक वर्ष विविधताओं और समसामयिक विषयों पर आधारित होते हैं।

नवरात्र के नौ दिन में छह विशेष योग
शारदीय नवरात्रि को लेकर शहर के दुर्गा मंदिरों में तैयारियां शुरू हो गई हैं। जिसके चलते मंदिरों में साफ-सफाई के साथ रंगाई-पुताई का काम होने लगा है। पितृपक्ष के समाप्त होते ही शारदीय नवरात्रि आरंभ हो जाएंगे। 03 अक्टूबर को आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना की जाएगी। कलश स्थापना के साथ ही नौ दिनों तक देवी दुर्गा की उपासना और पूजा पाठ विधिवत रूप होगी। इस नवरात्रि में देवी मंदिरों में विशेष तैयारी की जाती है। शक्ति की साधना करने बालों के अलावा गृहस्थ साधकों के लिए भी इस बार शारदीय नवरात्रि खास संयोग लेकर आ रही है।
प्रतिमा बनाने वाली मिट्टी हुई महंगी
कारीगरों की माने तो मूर्ति को बनाने में तीन प्रकार की मिट्टी उपयोग की जाती है। पहले खेतों की मिट्टी, फिर कानपुर का बालू और अंत में कोलकाता से लाई गई चिकनी मिट्टी का उपयोग कर मूर्ति को संवारा जाता है। चिकनी मिट्टी बंगाल में सस्ती होने के बाद भी यहां तक आने में खर्चों की वजह से इसकी लागत बढ़ जाती है।