Holi 2023: ब्रज में 8 साल से खेली जा रही एक खास होली, विधवाओं के जीवन को दे रही नया रंग

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Holi 2023: ब्रज की होली सबसे निराली होती है. और हो भी क्यों ना. यहां की होली में भेदभाव जो नहीं है. इसका जीता जागता उदाहरण वृंदावन में देखने को मिला. जहां बांके बिहारी के धाम वृन्दावन में होली पर सैकड़ों साल पुरानी परंपरा की दीवार गिराकर 8 साल पहले एक नई परंपरा की बुनियाद रखी गई. यहां आश्रय सदनों में रहने वाली विधवाओं ने राधा-कृष्ण के साथ होली खेली. इस नई परंपरा ने उनके जीवन में एक नया रंग और एक नई ऊर्जा भरने का काम किया.

श्रीधाम वृंदावन में करीब 2000 विधवा महिलाएं रहती हैं. इनके जीवन दुख का सागर बन गया है. ऐसे में इन्हें सुख की अनुभूति कराने के लिए सुलभ इंटरनेशनल ने आठ वर्ष पहले एक नई पहल की. संगठन की ओर से गोपीनाथ बाजार स्थित गोपीनाथ मंदिर में फूलों और गुलाल की होली का आयोजन किया गया. इस आयोजन में लगभग हर विधवा महिला ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. उन्होंने होली के दौरान एक दूसरे पर पर रंग-बिरंगे फूल बरसाकर त्योहार को और भी आनंदमयी कर दिया. सुलभ इंटरनेशनल संस्था के इस कदम से विधवा महिलाएं बेहद खुश हैं. आखिरकार सदियों पुरानी प्रथा को दरकिनार कर वे पिछले 8 साल से होली खेल रही हैं. दरअसल इन विधवाओं ने होली खेलने की इच्छा को सुलभ इंटरनेशनल संस्था के सामने रखा था. जिस पर इसके संस्थापक डॉ. बिंदेश्वरी पाठक ने सहमति जताई. परंपरागत रासलीला कार्यक्रम के लिए संस्था की ओर से व्यापक तैयारियां की गईं. सुलभ इंटरेशनल की ओर से विनीता वर्मा ने कहा कि विधवा महिलाओं को हमेशा से अछूत समझा जाता रहा है. परिवार और समाज के लोग लोग इन्हें घर से बेदखल कर देते हैं. इन्हें मुख्य धारा में जोड़ना तो दूर की बात है, दो वक्त का खाना तक बड़ी मुश्किल से मयस्सर होता है. इन्हें मजबूरन एक सफेद पोशाक में लिपटकर रहना पड़ता है. किसी शुभ कार्य में इन्हें हिस्सेदार नहीं बनाया जाता है. इस प्रथा को बिंदेश्वरी पाठक ने तोड़ा है. वृन्दावन में पिछले 8 साल से विधवा महिलाएं होली मना रही हैं. ये रंगों से होली खेल रही हैं जो अपने आप में  बहुत बड़े आनंद की अनुभूति है. पिछले एक दशक से सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सुलभ इंटरनेशनल नामक संस्था आश्रय सदनों की विधवा-वृद्धाओं को बेहतर जिंदगी व्यतीत करने के लिए सुविधाएं प्रदान कर रही हैं. उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास कर रही है. ये विधवाएं मंदिरों में जाकर भीख न मांगें, इसके लिए कड़े प्रयास किए जा रहे है. यह कदम कई वर्षों से अपनों का तिरस्कार और समाज की बेरुखी झेल रहीं इन महिलाओं के जख्म बेशक न भर पाएं, लेकिन इनके जीवन में नई ऊर्जा जरूर भर देगी.

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