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वट सावित्री व्रत के दिन ही है एक और अमावस्या, जानें चित्रकूट के महंत से इसका महत्त्व

चित्रकूट.हिंदू धर्म में अमावस्या का काफी बड़ा महत्त्व माना जाता है. इस बार मई महीने में दो अमावस्या एक साथ पड़ रही है. इन अमावस्याओं का महत्त्व भी अलग-अलग माना जाता है, क्योंकि एक अमावस्या ‘वट सावित्री अमावस्या’ है जबकि दूसरी ‘स्नान दान अमावस्या’.

चित्रकूट के साधु-संतों की मान्यता है कि इस बार का संयोग काफी अच्छा है, जो एक साथ अमावस्या पड़ रही है. स्नान दान की अमावस्या में चित्रकूट की मंदाकिनी के तट पर लाखों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचकर स्नान दान करते हैं. चित्रकूट में महिलाएं भी वट सावित्री का व्रत रखकर अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूजा पाठ करती हैं. ये दोनों अमावस्या 19 मई को पड़ रही हैं. चित्रकूट के भरत मंदिर के मंहत दिव्य जीवन दास जी के मुताबिक, मान्यता है कि देवी सावित्री ने अपने पति सत्यवान के लिए वटवृक्ष के नीचे बैठकर यमराज से उनके प्राण की रक्षा की थी. इसलिए इसे वट सावित्री भी कहते हैं. बरगद के पेड़ में देवताओं का वास होता है. इसलिए इसकी पूजा करने से सुख-शांति की प्राप्ति होती है. हिन्दू धर्म में बरगद का पेड़ काफ़ी महत्त्व रखता है. मंहत दिव्य जीवन दास जी बताते हैं कि स्नान दान अमावस्या में चित्रकूट की मंदाकनी में स्नान करके सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और उसके बाद पितरों का तर्पण होता है. इसलिए खास माना जाता स्नान दान अमावस्या. चित्रकूट धर्मस्थली होने के साथ-साथ भगवान राम की तपोस्थली भी है. चित्रकूट में साधु संत आज भी तपस्या में लीन हैं. इसीलिए चित्रकूट पावन धरती कहलाती है. इस चित्रकूट में जो भी सच्चे मन से अपनी मुराद लेकर आता है, उसकी मुराद भी अवश्य पूरी होती है. अमावस्या में यदि कोई मंदाकिनी में स्नान करता है और सूर्य को जल अर्पित करता है. उसके मन की शांति तो बनी ही रहती है, उसके परिवार के बुजुर्गों तक यहां से जल समर्पित हो जाता है. ऐसा चित्रकूट में साधु-संतों की मान्यता है. इसीलिए खास चित्रकूट अपने आप में महत्त्व आज भी रखता है.

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