लखनऊ. 6 नये विधान परिषद सदस्यों के साथ ही उत्तर प्रदेश विधान परिषद में भारतीय जनता पार्टी का दबदबा और ज्यादा बढ़ गया है. 100 में 80 सदस्य भाजपा के हो गये हैं. खास बात ये है कि परिषद में सबसे ज्यादा 4 मुसलमान सदस्य बीजेपी के ही हैं, जबकि समाजवादी पार्टी के 9 एमएलसी में से सिर्फ 2 मुस्लिम सदस्य विधान परिषद में हैं. विपक्ष आम तौर पर भारतीय जनता पार्टी को मुस्लिम विरोधी के तौर पर प्रस्तुत करता है लेकिन भाजपा के इस मास्टर स्ट्रोक ने विपक्ष को करीब-करीब चारों खाने चित्त कर दिया है. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति तारिक अनवर, योगी सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री दानिश आजाद अंसारी, मोहसिन रजा और बुक्कल नवाब अब विधान परिषद में बीजेपी के चेहरे हैं. तारिक अनवरी और दानिश आजाद अंसारी दोनों पसमांदा मुस्लिम हैं जबकि मोहसिन रजा और बुक्कल नवाब शिया मुसलमान हैं.
उत्तर प्रदेश विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या 31 है (आजम खान और अब्दुल्ला आजम की सदस्यता रद्द होने के बाद) जबकि प्रदेश में मुस्लिम आबादी करीब-करीब 20 फीसदी है. कहा जाता है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के बुद्धिजीवियों को देश का सामान्य मेहनतकश मुसलमान अगुवा के रूप में देखता, मानता है. ऐसे में तारिख मंसूर को विधान परिषद में भेजना बीजेपी के लिए राजनीतिक तौर पर फायदेमंद हो सकता है क्योंकि तारिख मंसूर पसमांदा मुस्लिम चेहरा हैं और पसमांदा कार्यकर्ताओं और विद्वानों के मुताबिक भारतीय मुसलमानों में करीब-करीब 80-85 प्रतिशत आबादी पसमांदा समुदाय की है. तारिक मंसूर को विधान परिषद भेजने के साथ-साथ चर्चा ये भी है कि बीजेपी स्थानीय निकाय चुनाव में भी कुछ सीटों पर मुस्लिम चेहरों को मैदान में उतार सकती है. सियासत की खबरों के बीच एक खबर ये भी है कि भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों को जोड़ने के लिए रणनीति तैयार की है. 10 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश की लगभग 60 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों की आबादी 30 प्रतिशत से अधिक है. ये 60 सीटें बीजेपी के लिए बेहद अहम हैं. इनमें से उत्तर प्रदेश की बिजनौर (38.33%), अमरोहा (37.5%), कैराना (38.53 %), नगीना (42%), संभल (46%), मुजफ्फरनगर (37 %) और रामपुर (49.14 %) पर बीजेपी का विशेष ध्यान है। दिल्ली में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि – “पसमांदा, बोहरा, मुस्लिम प्रोफेशनल और शिक्षित मुसलमानों तक पहुंच बनाए. जरूरी नहीं कि उनके वोट मिलें ही, लेकिन उनका विश्वास जीतने का प्रयास जरूर करें. साथ ही वंचित, पिछड़े, दलित और आदिवासी मुसलमानों तक पहुंच बढ़ाने की भी कोशिश करें. बीजेपी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजपूत, त्यागी, अशरफ मुसलमानों के तौर पर बंटे समुदायों का समर्थन पाने की भी कोशिश कर रही है. अशरफ समुदाय खुद को अरब, फारस, तुर्की और अफगानिस्तान (सैयद, शेख, मुगल और पठान) से विस्थापित मुस्लिमों का वंशज बताते हैं. इनमें से कुछ ऊंची जाति के हिंदू धर्म (राजपूत, गौर और त्यागी मुस्लिम) से परिवर्तित होने की भी बात कहते हैं. विधान परिषद में 6 नये लोगों के जरिए सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास हासिल करने की एक बानगी भर है, जबकि बीजेपी सरकार में अल्पसंख्यकों की कथित अनदेखी और उपेक्षा की राजनीतिक चर्चाओं के बीच एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आ रहा है. वो ये है कि शहरी क्षेत्रों में अल्पसंख्यक गरीबों को घर उपलब्ध कराने में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है और बीजेपी शासन वाले अन्य राज्यों का प्रदर्शन भी गैरभाजपा शासित राज्यों से बेहतर ही है. प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) को लेकर शहरी कार्य मंत्रालय के डाटा के मुताबिक पिछले पांच सालों में उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों के लिए 3 लाख 48 हजार 884 आवास मंजूर किए गए हैं. ये पांच साल में अल्पसंख्यकों के लिए मंजूर कुल 15 लाख 38 हजार 549 आवासों का लगभग 23 प्रतिशत हिस्सा है. यह आंकड़ा बेहद अहम है, क्योंकि पिछले पांच वर्षों में शहरी क्षेत्रों में पीएम आवास योजना के तहत आवंटित मकानों में अल्पसंख्यकों की हिस्सेदारी लगभग दस प्रतिशत रही है.
यूपी – 3,48,884
आंध्र प्रदेश – 2,08,757
प. बंगाल- 1,32,684
महाराष्ट्र – 1,31,296
म.प्र. – 1,05,354
कर्नाटक – 74,305
तमिलनाडु- 64,324
केरल-55,012
बिहार – 53,222
झारखंड – 43,384
ये आंकड़े विपक्ष के कथित आरोपों को धता बताते हैं. बीजेपी ने अल्पसंख्यकों को जोड़ने के लिए स्नेह मिलन:एक देश, एक डीएनए सम्मेलन कार्यक्रम की रणनीति बनाई है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सभी सीटें जीतने के लिए मुजफ्फरनगर से कार्यक्रम की शुरुआत की जाएगी. 2014 में बीजेपी ने पश्चिमी यूपी की सभी 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी लेकिन 2019 में बसपा-सपा गठबंधन ने 6 सीट जीत लीं. नगीना, अमरोहा, बिजनौर और सहारनपुर सीटें बसपा के खाते में गई थी जबकि मुरादाबाद और संभल से समाजवादी पार्टी ने जीत दर्ज की थी. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 2014 के परिणाम दोहराने के लिए बीजेपी मुजफ्फरनगर के आयोजन में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, केंद्रीय मंत्री और मुजफ्फरनगर के सांसद संजीव बालियान, राज्य मंत्री सोमेंद्र तोमर को विशेष रूप से उतारेगी. बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासित अली ने बताया कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में लगभग हर लोकसभा क्षेत्र में इन समुदायों के औसतन 2.5 से 3 लाख लोग हैं, जिनसे बीजेपी समर्थन मांग रही है. ये लोग मुख्यत: कृषि कार्यों से जुड़े हैं और इन समुदायों के बीच बीजेपी की पकड़ अच्छी नहीं है. बासित अली का कहना है कि सहारनपुर में लगभग 1.8 लाख और मुजफ्फरनगर में 80,000 मुस्लिम राजपूत हैं, वहीं शामली में लगभग एक लाख मुस्लिम गुर्जर और मुजफ्फरनगर में एक लाख मुस्लिम जाट हैं. कुंवर बासित अली ने उम्मीद जताई कि राजपूत मुसलमान राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ को अपने नेता के तौर पर देंखेगे, वहीं जाट मुसलमान संजीव बालियान और भूपेंद्र सिंह चौधरी से प्रभावित होकर पार्टी से जुड़ेंगे. बासित अली ने बताया कि जाट, राजपूत, गुर्जर और त्यागी बिरादरी के हिंदू और मुस्लिम पश्चिमी यूपी में एक साथ रहते हैं. उन्हें समझाने की कोशिश की जाएगी कि हम एक देश के लोग हैं, हमारा डीएनए एक है. हमें मिलकर देश को आगे ले जाना है. बासित अली का मानना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गरीब कल्याण बीजेपी के लिए ट्रंप कार्ड साबित हो सकता है. उन्होंने बताया कि यहां लगभग 4.5 करोड़ आबादी मुस्लिम लाभार्थियों की है जिन्होंने सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया है और हर हाल में बीजेपी का साथ देंगे. साथ ही तीन तलाक और सुरक्षित माहौल ने भी मुस्लिम महिलाओं में पार्टी के प्रति नजरिया बदला है. मुस्लिम महिलाएं बीजेपी से खुश हैं. इसके साथ-साथ सूफी संवाद अभियान के जरिए सूफियों को भी पार्टी से जोड़ने की योजना पर काम चल रहा है. कुंवर बासित अली ने पिछले दिनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात का ऊर्दू अनुवाद प्रकाशित करवाया है. उन्होंने बताया कि इसकी एक लाख प्रतियां प्रकाशित करवाई गई हैं जिसमें प्रदेश के प्रमुख मौलाना और मुस्लिम संस्थाओं के विचार भी समाहित किये गये हैं. लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर राजनीतिक दलों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. सियासी शह मात की बिसात बिछाना शुरू कर दिया है. यूपी की राजनीति के लिहाज से 2019 का लोकसभा चुनाव बेहद अहम था, इस चुनाव में बीजेपी को हराने के लिए यूपी की दो सबसे बड़े विरोधी दलों सपा-बसपा ने गठबंधन कर लिया था. तब बसपा ने 10 और सपा ने 5 सीटों पर जीत हासिल की थी. शायद ही किसी ने सोचा होगा कि मायावती और अखिलेश कभी एक साथ एक मंच पर आएंगे, लेकिन 2019 में ऐसे हुआ.
2019 में बीजेपी की रणनीति के आगे विपक्षी दलों के सारे दांव-पेंच, जातिय समीकरण फेल हो गए. भाजपा ने 78 सीटों पर चुनाव लड़ा और 62 सीटों पर कमल खिलाने में कामयाब हुई. बीजेपी के सहयोगी अपना दल एस ने दो सीटें जीती. कांग्रेस को तगड़ा झटका देते हुए बीजेपी ने राहुल गांधी की पारंपरिक सीट अमेठी भी छीन ली और कांग्रेस महज रायबरेली सीट ही जीत सकी, जहां से सोनिया गांधी ने चुनाव लड़ा था. भारतीय राजनीति में हमेशा कहा जाता रहा है कि केंद्र में सरकार बनाने का रास्ता उत्तर प्रदेश और बिहार से होकर गुजरता है. इसका सामान्य सा अर्थ ये है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में जिस दल ने ज्यादा से ज्यादा सीटें जीती केंद्र में उसकी सरकार बनना तय है. ठीक एक साल बाद देश लोकसभा चुनाव से गुजर रहा होगा. कुछ हिस्सों में वोटिंग भी हो चुकी होगी. कुछ हिस्सों में होने वाली होगी. लोकसभा चुनाव से एक साल पहले जब कांग्रेस अपने नेता राहुल गांधी की सजा रद्द करवाने, उनकी सांसदी बहाल करवाने और घर दिलवाने की जद्दोजहद में जुटी है तब बीजेपी ने उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ से चुनावी बिगुल फूंक दिया है. करीब-करीब 15 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले आजमगढ़ को कभी समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता था, लेकिन उपचुनाव में बीजेपी की जीत ने पार्टी का हौसला बढ़ाया है और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ आजमगढ़ में रैली करके लोकसभा चुनाव का बिगुल फूंक दिया है.