ठीक एक साल पहले यानी फरवरी 2022 की बात है. कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने मध्य प्रदेश के सीहोर में शिवपुराण का कार्यक्रम रखा था. प्रशासन ने किसी वजह से इसकी अनुमति नहीं दी. कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा इससे इतने दुखी हुए कि उनकी आंखों में आंसू आ गए. उनके इन आंसुओं ने एमपी की सियासत में उबाल ला दिया. मध्यप्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने वीडियो कॉल कर उनसे बात की. उन्होंने कहा, ”महाराज दंडवत, प्रणाम, आपकी कृपा से ही सरकार चल रही है, सरकार आपकी ही है…”. इसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी प्रदीप मिश्रा को फोन कर उनका हाल जाना. कांग्रेस भी खुलकर बाबा के समर्थन में आ गई. पूर्व सीएम कमलनाथ ने कांग्रेस नेताओं का एक दल बाबा से मिलने भेज दिया.
अब थोड़ा और पीछे चलते हैं. बात साल 2018 की है. मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने थे. इससे पहले शिवराज सिंह चौहान ने पांच संतों को राज्य मंत्री का दर्जा दे दिया. ये थे नर्मदानंद महाराज, हरिहरानंद महाराज, कंप्यूटर बाबा, भैय्यू जी महाराज और पंडित योगेंद्र महंत. चुनाव से पहले कम्प्यूटर बाबा पाला बदलकर कांग्रेस के साथ आ गए. कांग्रेस की सरकार बनी तो कम्प्यूटर बाबा को फिर मंत्री का दर्जा मिल गया.
ये दो घटनाएं बताती हैं कि एमपी की राजनीति में बाबाओं, संतों की कितनी धमक है. उसी एमपी के बुंदेलखंड इलाके के एक संत आजकल देश-दुनिया में चर्चा बटोर रहे हैं. वो हैं देश की राजधानी दिल्ली से करीब 444 किलोमीटर दूर स्थित बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री. बागेश्वर धाम मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में है. उसके पीठाधीश्वर धीरेंद्र शास्त्री को जहां उनके लाखों समर्थक चमत्कारी संत बता रहे हैं तो कुछ ऐसे लोग भी हैं जो उनके चमत्कारों को महज अंधविश्वास फैलाने वाला बताकर उनके दावों पर सवाल खड़े कर रहे हैं. विरोधी इस बात से हैरान हैं कि आखिर बात-बात पर ताली बजाते, सवाल उठाने वालों को कोसते और आम बोलचाल की भाषा में श्रद्धालुओं से मुखातिब होते शास्त्री के सामने क्यों और कैसे हजारों-लाखों की भीड़ नतमस्तक हो जाती है. लेकिन बुंदेलखंड के इस इलाके को करीब से जानने वालों के लिए ये कोई नई बात नहीं है. दरअसल इस इलाके में दशकों से इस तरह के संतों-बाबाओं का जलवा रहा है, जो खुद ही ‘सरकार’ कहे जाते हैं और जिनके सामने बड़े-बड़े सियासी चेहरे नतमस्तक दिखाई देते हैं. (तस्वीर में प्रदीप मिश्रा)

बागेश्वर धाम सरकार
छतरपुर जिले के गढ़ा गांव में ‘बागेश्वर धाम’ मंदिर है. स्थानीय लोग कहते हैं कि बागेश्वर धाम कई तपस्वियों की दिव्य भूमि है. यहां बालाजी महाराज को अर्जी के जरिए फरियाद सुनाई जाती है. लाखों लोग अपनी समस्याएं लेकर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के पास आते हैं. कहा जाता है कि धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को बिना पूछे ही लोगों की समस्या का पता चल जाता है. फिर वे समस्या हल करने के उपाय बताते हैं और बालाजी महाराज से पीड़ित के लिए प्रार्थना करते हैं.
धीरेंद्र 26 साल के हैं. वो बताते हैं कि उनके पिता राम कृपाल गर्ग (ब्राह्मण) हमेशा घर की जिम्मेदारियों से दूर रहे. धीरेंद्र से छोटी एक बहन और भाई है. उनकी माता सरोज देवी ने आर्थिक तंगी के बीच अपने बच्चों का पालन-पोषण किया. धीरेंद्र ने स्नातक तक शिक्षा प्राप्त की. बाद में गांव के ही मंदिर बागेश्वर बालाजी में जाकर पूजा अर्चना शुरू कर दी. यहां उन्होंने साधना की. यहीं पर इनके दादा गुरु और संन्यासी बाबा की समाधि भी है. धीरेंद्र शास्त्री के मुताबिक, दादा गुरु और संन्यासी बाबा की कृपा से ही उन्हें बालाजी की कृपा और सिद्धि प्राप्ति हुई. भक्त के बताने से पहले ही धीरेंद्र उनके मन की बात पर्चे पर लिख देते हैं. इसी चमत्कार को लेकर पूरे देश में वे चर्चा का विषय बने हुए हैं.
हर रोज हजारों भक्त बागेश्वर धाम पहुंचते हैं. मंगलवार और शनिवार को यह संख्या लाखों में पहुंच जाती है. स्थानीय लोगों का कहना है कि जब से धीरेंद्र शास्त्री को लेकर मीडिया में मामला उछला, धाम पर पहुंचने वाले भक्तों की संख्या और ज्यादा बढ़ गई है. धीरेंद्र शास्त्री ने बागेश्वर धाम में 13 से फरवरी तक धार्मिक आयोजन किया था. इसमें पहले दिन कांग्रेस नेता कमलनाथ ने पहुंचकर सभी को चौंका दिया था. इतना ही नहीं एमपी के सीएम शिवराज सिंह चौहान भी धाम में आयोजित सामूहिक विवाह कार्यक्रम में पहुंचे थे.

धाम में अन्नपूर्णा रसोई चलती है
अन्नपूर्णा रसोई की सारी व्यवस्था धाम पर आने वाली चढ़ौती के आधे हिस्से और दान की राशि से की जाती है. धाम में आने वाले दान से हर साल गरीब और बेसहारा बेटियों की शादी कराई जाती है. इस साल 18 फरवरी को 121 लड़कियों की शादी प्रस्तावित है. विवाह में गृहस्थी का सारा सामान भी भेंट दिया जाता है. वैदिक शिक्षा के लिए धाम परिसर में गुरुकुल स्कूल की व्यवस्था की जा रही है. धाम की ओर से 400 बेड का एक कैंसर अस्पताल बनवाने का संकल्प भी लिया गया है.

ऐसे लगती है शास्त्री के दरबार में अर्जी
बागेश्वर धाम के दरबार में लगने वाली अर्जी, धीरेंद्र कृष्ण से मिलना, उनसे परामर्श और मार्गदर्शन लेना निशुल्क है. मंगलवार को दरबार लगता है. पेशी के लिए जिन लोगों की अर्जी लगती है, उन्हें हर मंगलवार को बालाजी महाराज के दरबार में पेशी लगानी होती है. महाआरती में शामिल होकर अपनी पेशी पूरी करनी होती है. इस दिन ही धाम में प्रेत दरबार भी लगाया जाता है.
बागेश्वर धाम में टोकन समय-समय पर वितरित किए जाते हैं. टोकन कब डलेंगे, इसका निर्धारण खुद धीरेंद्र कृष्ण करते हैं. जब तिथि तय हो जाती है तो सोशल मीडिया या फिर धीरेंद्र कृष्ण के दरबार के आखिर में इसकी सूचना दे दी जाती है. इसके लिए बागेश्वर धाम कमेटी से भी संपर्क किया जा सकता है. तिथि से पहले बागेश्वर आने वाले सभी श्रद्धालुओं को सूचित किया जाता है कि इस तारीख को टोकन डाले जाएंगे. तय किए गए दिन परिसर में एक पेटी रखी होती है, जिसमें आपको अपना नाम, पिता का नाम, अपने गांव, जिला, राज्य का नाम पिन कोड के साथ लिखना होता है. साथ ही अपना मोबाइल नंबर लिखकर डालना होता है. टोकन डालने के बाद जिस व्यक्ति का नंबर लगता है, उस व्यक्ति से बागेश्वर धाम कमेटी मोबाइल पर संपर्क करती है और उसे टोकन दे दिया जाता है. इस टोकन में आपको एक तारीख मिलती है और उस दिन ही बागेश्वर बालाजी महाराज के दरबार में आपको हाजिरी लगानी होती है.
बागेश्वर धाम की आधिकारिक वेबसाइट bageshwardham.co.in भी है. अर्जी वालों को लाल कपड़े में एक नारियल बांध कर धाम परिसर में रखना होता है. हालांकि यहां आप लाल, पीले और काले कपड़े में बंधे नारियल देखेंगे. इसके पीछे की वजह ये है कि अगर आपकी अर्जी सामान्य है तो लाल कपड़े में, शादी-विवाह से जुड़ी अर्जी है तो पीले कपड़े में और अगर प्रेत बाधा से जुड़ी अर्जी है तो नारियल को काले कपड़े में बांधकर रखा जाता है. कई कथाओं में धीरेंद्र कृष्ण कहते हैं कि अगर आप धाम आकर ऐसा नहीं कर सकते तो घर में स्थित पूजा स्थल पर ऐसा कर सकते हैं.
जब आपकी अर्जी लग जाती है तो दरबार में धीरेंद्र कृष्ण खुद बता देते हैं कि कितनी पेशी आपको करनी है. अमूमन कम से कम 5 मंगलवार की पेशी हर भक्त को करने का आदेश दिया जाता है. जब तक आपकी पेशी पूरी नहीं हो जाती, तब तक मदिरा, मांस, लहसुन और प्याज का सेवन पूरी तरह से वर्जित होता है.

पंडोखर सरकार के संत गुरुशरण
बागेश्वर धाम के साथ-साथ कुछ सालों से पंडोखर सरकार भी काफी चर्चा में हैं. सोशल मीडिया पर पंडोखर सरकार के संत गुरुशरण महाराज के वीडियो भी खूब नजर आते हैं. इन वीडियो में देखा जा सकता है कि गुरुशरण महाराज लोगों द्वारा समस्या बताने से पहले ही पर्चे पर उसे लिख देते हैं. पंडोखर सरकार में बागेश्वर धाम की तरह हनुमान जी का ही मंदिर है. यहां भी दरबार लगता है. पंडोखर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित है. यहां देश के कोने कोने से लोग आते हैं.
पंडोखर सरकार के नाम से विख्यात गृहस्थ संत गुरुशरण महाराज का जन्म भिंड जिले के बरहा गांव में हुआ था. बागेश्वर धाम की तरह वे भी दरबार लगाते हैं.
गुरुशरण महाराज का दावा है कि वे लोगों के बारे में हृदय चक्र और तराटक के माध्यम से बता देते हैं. इसके अलावा उन्हें छठी इंद्री के जाग्रत करने से जानकारी हासिल हो जाती है. माइंड रीडिंग और चमत्कार के बारे में वे कहते हैं कि ये मिलती-जुलती होती हैं. जो चीजें हम लोग बता देते हैं, वो जादूगर नहीं बता पाते हैं और जो जादूगर बता देते हैं, वो हम नहीं बता पाते हैं.
बागेश्वर और पंडोखर दोनों धामों में दरबार लगते हैं. दोनों के बीच कभी-कभी प्रतिद्वंद्विता भी दिखती है, हालांकि, कभी-कभी दोनों एक-दूसरे की तारीफ भी करते हैं. अलग-अलग इंटरव्यू में गुरुशरण कहते हैं, बागेश्वर सरकार और मैं (पंडोखर सरकार) एक-दूसरे के बारे में जानते हैं और ये भी जानते हैं कि हम लोग कितना बता पाएंगे, कितना नहीं बता पाएंगे.

पिछले साल मध्यप्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने दतिया में धार्मिक कार्यक्रम कराया था. इस कार्यक्रम में गुरुशरण महाराज और धीरेंद्र शास्त्री दोनों पहुंचे थे. इस दौरान धीरेंद्र शास्त्री ने गुरुशरण महाराज को अपना बड़ा भाई बताया था और गुरुशरण ने उन्हें छोटा भाई बताते हुए पंडोखर धाम आने का आमंत्रण दिया था.
गुरुशरण कहते हैं कि भारत ऋषि प्रधान देश है. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री पर ब्रह्म बाबा, ब्रह्म परीत, सेतुलाल महाराज जी समेत अन्य शक्तियों की कृपा है.
पंडोखर सरकार में एक रुपये की पर्ची कटती है. इसमें बाध्यता है कि जिसके पास टोकन होगा, उसी का नंबर आएगा. टोकन आप किसी के नाम से भी कटवाइए. प्रश्न आप किसी का भी पूछिए.
गुरुशरण के कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर हैं, जिनमें वे पुलिस अधिकारियों को केस के बारे में जानकारी देते दिख रहे हैं. इस पर वे कहते हैं कि अगर कोई आता है तो हम गुण सूत्र क्रियाएं बताते हैं. ज्ञान, रास्ता बताते हैं. कानून अपना काम करता है.
पंडोखर में प्रतिदिन सुबह-शाम अन्नपूर्णा भंडारा चलता है. सुबह में दाल भात का प्रसाद तो शाम को पूड़ी-सब्जी का प्रसाद होता है. लगभग 10 हजार लोग प्रतिदिन वहां भोजन करते हैं. 100 लोगों का स्टाफ है. कोरोना से बचाव के लिए लोक कल्याण हेतु वहां 365 दिन का यज्ञ चल रहा है.
गुरुशरण मानते हैं कि बिना पैसों के कुछ नहीं होता है. कोई मांगकर लेता है, कोई घुमाकर लेता है. कोई थाली तो कोई चंदे के माध्यम से लेता है. कोई भूमि, गाय और अस्पताल के नाम पर लेता है. चंदा तो होता ही है. दान और अर्थ के बिना कोई व्यवस्था नहीं होती है.

रावतपुरा सरकार
एमपी के भिंड जिले के लहार में रावतपुरा सरकार मंदिर स्थित है. रावतपुरा में हर रोज हजारों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं. गुरु पूर्णिमा और अन्य अवसरों पर यह संख्या लाखों में पहुंच जाती है. राजनीतिक तौर पर मध्यप्रदेश ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ और यूपी तक में रावतपुरा सरकार का असर है. हर बड़ी पार्टी का छोटा-बड़ा नेता यहां कभी न कभी नतमस्तक होकर गया है.
संत रविशंकर महाराज को बुंदेलखंड में रावतपुरा सरकार के नाम से प्रसिद्धि मिली है. उनका विशाल आश्रम रावतपुरा गांव (लहार, भिंड, एमपी) के पास ही हनुमानजी मंदिर पर स्थित है. रविशंकर महाराज का जन्म बुंदेलखंड के टीकमगढ़ जिले के छिपरी गांव में हुआ था. उनके पिता कृपाशंकर शर्मा और माता रामसखी देवी ने काफी आर्थिक अभाव के बीच उनका पालन पोषण किया. माता-पिता पुरोहित का काम सिखाना चाहते थे. इसके लिए रविशंकर का रामराजा संस्कृत विद्यालय ओरछा में एडमिशन करवाया. हालांकि, उनका यहां मन नहीं लगा और वहां से वे सीधे रावतपुरा गांव पहुंच गए. हनुमान मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना और साधना शुरू कर दी. कहा जाता है कि रावतपुरा के हनुमान मंदिर में रविशंकर महाराज को सिद्धि प्राप्त हुई और उसके बाद देश-दुनिया से हजारों भक्तों की भीड़ उमड़ने लगी.
सन 2000 में महाराज रविशंकर ने रावतपुरा सरकार लोक कल्याण ट्रस्ट बनाया. ट्रस्ट के मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कई स्कूल, अस्पताल भी हैं. छत्तीसगढ़ के बस्तर में रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी भी बनाई गई है. रावतपुरा के कई आश्रम, इंस्टीट्यूट, संस्कृत स्कूल, ब्लड बैंक, नर्सिंग, फार्मेसी कॉलेज, वृद्धा आश्रम आदि हैं.

25 साल पहले डकैतों के कब्जे में था पूरा इलाका
स्थानीय लोग कहते हैं कि 25 साल पहले यहां दोपहर में भी निकलने से लोग डरते थे. भय का माहौल था. हनुमान जी की कृपा से अब जंगल में मंगल हो गया है. यहां का चमत्कार देखने हर कोई आता है. ये डकैत प्रभावित क्षेत्र माना जाता था. लोगों की हत्याएं हो जाती थीं. बीहड़ में धाम बन जाने से लोगों का आवागमन और आस्था बढ़ गई है.
एक इंटरव्यू में कथावाचक रमाकांत व्यास कहते हैं कि यहां एक छोटी-सी नदी है. साल 1990 में उसमें बहुत बाढ़ आई थी. उसी समय रविशंकर महाराज देशभर में भ्रमण के बाद यहां पहुंचे थे. उन्होंने वेद मंत्रों का उच्चारण, यज्ञ और अनुष्ठान करवाए. उसी तपस्या का प्रभाव है कि पहले यहां ऊबड़-खाबड़ जगह थी, लोग खड़े नहीं हो पाते थे, आए दिन गोलियां चलती थीं लेकिन बाद में माहौल पूरी तरह से बदल गया. विकास कार्य शुरू हुए. रोड बनी. पहले बरसात के मौसम में लोग 4 महीने का राशन लेकर घरों में रख लेते थे क्योंकि नदी चढ़ आने से आवागमन बंद रहता था. आज अपराध बंद हो गए. बिजली, पानी और पुलिस व्यवस्था हो गई. लाखों पेड़ मंगवाकर बांटे गए. यहां के संस्कृत विद्यालय में फीस नहीं ली जाती है. यहां के बच्चे विदेश में कर्मकांड का काम कर रहे हैं.

17 साल की उम्र में आश्रम बनाने पहुंचे थे रविशंकर
रावतपुरा सरकार पहूज और सोनमृगा नदियों के बीच स्थित है और दो प्रमुख शहरों ग्वालियर और झांसी से 100 किलोमीटर की दूरी पर है. 1990 में संत रविशंकर महाराज ने 17 साल की आयु में यहां एक मिशन शुरू करने का संकल्प लिया था. 1991 में उन्होंने एक यज्ञ किया. 1991-95 के बीच कई आध्यात्मिक, धार्मिक और मानवीय गतिविधियां शुरू की गईं. 1996 में रविशंकर ने अपने गुरु देवरहा बाबा की स्मृति में विश्व शांति के लिए एक और यज्ञ आयोजित किया. पहले लोगों को लगा कि बीहड़ इलाके में इतने बड़े पैमाने पर धार्मिक आयोजन करना लगभग असंभव है, लेकिन युवा संत ने सभी को गलत साबित कर दिया. इसे एशिया में सबसे बड़े धार्मिक समारोह के रूप में माना गया.
2005 में आश्रम एक धाम के रूप में विकसित हो गया और इसका नाम बदलकर श्री रावतपुरा सरकार धाम कर दिया गया. रविशंकर कहते हैं कि अयोध्या में ज्ञान की खोज की जा सकती है, चित्रकूट में वैराग्य और वृंदावन में भक्ति लेकिन रावतपुरा धाम एक ऐसा स्थान है जहां व्यक्ति इन तीनों गुणों को प्राप्त करने की आकांक्षा कर सकता है. वे कहते हैं कि सत्य की सच्ची खोज, शुद्ध और सरल हृदय के साथ रावतपुरा धाम आने वाले लोगों की इच्छा निःसंदेह पूरी होती है. दिव्य और चमत्कारिक क्रियाओं की वजह से देश और दुनिया से श्रद्धालु दरबार में आते हैं.

दंदरौआ सरकार
मध्य प्रदेश के भिंड जिले के मेहगांव में दंदरौआ धाम मंदिर है. यहां हनुमान जी का मंदिर है. दंदरौआ धाम को डॉक्टर हनुमान के नाम से भी जाना जाता है. यहां हनुमान सखी यानी सहेली रूप में हैं, यानी हनुमान जी का एक हाथ कमर पर और एक हाथ सिर पर है. यह नृत्य मुद्रा है. इतना ही नहीं मूर्ति का मुख बानर के स्थान पर बाला के रूप में है. आमतौर पर हनुमान की मूर्ति में गदा उनके हाथ में होती है, लेकिन यहां ये उनके बगल में रखी है.

क्या है मान्यता?
स्थानीय लोगों का कहना है कि तुलसीदास की रामचरितमानस में एक चौपाई है, ‘एक सखी सिय संग विहाई, गई रही देखन फुलवाई’. यही वजह है कि दंदरौआ धाम के अनुयायी सिर्फ सफेद धोती पहनते हैं और इसी को ओढ़ते हैं. कहा जाता है कि दंदरौआ गांव में सैकड़ों साल पहले नीम के पेड़ से मूर्ति निकली थी. इसके बाद से इसे यहां स्थापित कर दिया गया.
दंदरौआ सरकार में हर रोज हजारों श्रद्धालु आते हैं. मंगलवार और शनिवार को संख्या लाखों में पहुंच जाती है. स्थानीय लोगों का दावा है कि यहां लोगों की असाध्य से असाध्य बीमारी ठीक हो जाती है. यही वजह है कि दंदरौआ धाम को डॉ. हनुमान के नाम से भी जाना जाता है.
संत रामदास दंदरौआ सरकार के प्रमुख हैं. उनके लाखों की संख्या में भक्त हैं. उन्होंने 1985 में संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए दंदरौआ धाम में पुरुषोत्तम संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की. यहां मंदिर परिसर में महाविद्यालय, संस्कृत विद्यालय, हॉस्टल, गौशाला, यज्ञ शाला, भंडार गृह, सत्संग सभागार, उद्यान, तालाब आदि बनाए गए हैं.

बागेश्वर-पंडोखर से अलग पूजा विधि
स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां बागेश्वर-पंडोखर सरकार की तरह कोई दरबार नहीं लगता. न ही संत रामदास किसी का भूत-भविष्य बताते हैं. यहां लोग मुख्यताः मंदिर में दर्शन करने आते हैं. मान्यता है कि जिन लोगों को कोई बीमारी होती है, वो 5 से 7 मंगलवार या शनिवार मंदिर में दर्शन करने आते हैं. यहां मंदिर की परिक्रमा करनी पड़ती है. इसके बाद लोगों को बीमारियों में आराम हो जाता है. इसके अलावा यहां किसी प्रकार की कोई और पूजा नहीं करनी पड़ती. संत रामदास से भी लोग आसानी से मिल सकते हैं. दंदरौआ सरकार मंदिर में यज्ञ और कथाओं का भी आयोजन नियमित समय अंतराल पर होता रहता है. इनमें लाखों लोग इकट्ठा होते हैं.
मध्यप्रदेश के चंबल, दतिया इलाके में दंदरौआ सरकार का काफी महत्व है. यही वजह है कि लाखों की संख्या में धाम के भक्त हैं. इन भक्तों में आमजन से लेकर नेता भी शामिल हैं. आसपास के इलाकों के विधायक, सांसद नियमित तौर पर दर्शन करते नजर आ जाते हैं.

चमत्कारी संतों की बुंदेलखंड की राजनीति में धमक
‘चमत्कारी’ संतों का पूरे बुंदेलखंड और चंबल में प्रभाव माना जाता है. यूपी के झांसी, ललितपुर, जालौन, चित्रकूट, महोबा, बांदा, हमीरपुर से बड़ी संख्या में इन दरबारों में हाजिरी लगाने के लिए लोग पहुंचते हैं. इसी तरह, मध्य प्रदेश के छतरपुर, टीकमगढ़, सागर, रायसेन, पन्ना, सतना, दतिया, भिंड, मुरैना, शिवपुरी, ग्वालियर, श्योपुर, रायसेन, इंदौर, जबलपुर और भोपाल में भी इनके भक्तों की बड़ी संख्या है. इन जिलों के जनप्रतिनिधि भी अक्सर दरबार में हाजिरी लगाते देखे जाते हैं. मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पिछले साल बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री और पंडोखर धाम के गुरुशरण के बीच सुलह करवाई थी. एमपी के परिवहन मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग भी बाबा के दरबार में आशीर्वाद लेते देखे गए हैं. रावतपुरा धाम में पूजा-अर्चना करने के लिए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी पहुंच चुके हैं. मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता कमलनाथ भी पिछले दिनों रावतपुरा सरकार से आशीर्वाद लेने पहुंचे थे.
झांसी के बबीना से बीजेपी के दो बार के विधायक राजीव सिंह पारीछा कहते हैं कि बुंदेलखंड में अब तक जितने बड़े संत हुए हैं, उन्होंने कभी सीधे तौर पर किसी नेता का समर्थन नहीं किया है लेकिन उनके शिष्य किसी दल से चुनाव लड़ते हैं तो स्वाभाविक रूप से जीतकर आते हैं. राजीव कहते हैं कि जब कोई संत धर्म और अध्यात्म की बात करता है तो दूसरे दलों को गलतफहमी हो जाती है. उनको लगता है कि हमारी जमीन खिसक जाएगी.

गरौठा से बीजेपी के दो बार के विधायक जवाहर लाल राजपूत कहते हैं कि बुंदेलखंड में लोगों की श्रद्धा हमेशा साधु-संतों में रही है. बुंदेलखंड के लोगों पर भी इन संतों का आशीर्वाद बरसता है. राजनीति अलग चीज होती है. संत समाज धर्म का प्रचार कर रहा है. इन लोगों के बिना समाज चल नहीं सकता है. जब समाज भटक जाता है तब संत समाज दिशा दिखाता है.
छतरपुर में कांग्रेस विधायक आलोक चतुर्वेदी कहते हैं कि संत किसी पार्टी या दल का नहीं होता. उनके लिए सब समान हैं, संत ना वोट मांगते हैं, न किसी का सर्मथन करते हैं. संतों की बड़ी फॉलोइंग है, इसलिए फॉलोअर्स का इनडाइरेक्ट तौर पर लाभ मिल जाए तो अलग बात है.
महाराजपुर से कांग्रेस विधायक नीरज दीक्षित कहते हैं कि मुझे ऐसा कभी नहीं लगा कि संत समाज का किसी एक दल पर झुकाव है. मैं संत दद्दा जी से भी जुड़ा रहा हूं. बागेश्वर धाम के धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री जी से भी जुड़ा हूं. उनका सबसे मिलना-जुलना रहता है. सबके यहां आते-जाते हैं.