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Homeअपना जौनपुरशहरी क्षेत्र से विलुप्त हो रहा है गोबर से उपले बनाने दौर

शहरी क्षेत्र से विलुप्त हो रहा है गोबर से उपले बनाने दौर

जौनपुर धारा, जौनपुर। जनपद के ग्रामीण इलाकों में गाय और भैंस के गोबर से उपले बनाने का कार्य जारी है। ग्रामीण इलाकों में औरतें गोबर से ऊपले बनाने का कार्य शुरू कर देती हैं। उपले बनाने के साथ ही उनका उपयोग ईंधन के रूप में चलता रहता है। अतिरिक्त उपलों का उपडउर बनाकर ऊपर से गोबर का लेप करके या घर या छप्पर के नीचे भविष्य में उपयोग करने के लिए संरक्षित कर दिया जाता था। पशु पालकों को गाय भैंस पालने के कई फायदे मिलतें थे। लेकिन आज यह व्यवस्था शहरी क्षेत्र से नदारत सी हो गई है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पशु पालन के साथ जुड़ी कई प्रकार के व्यापार का प्रचलन जारी है। जो शहरी लोगों के भी काम में आती है, फर्क बस इतना रह गया कि पहले उपले आसानी से मिल जातें थें लेकिन अब जरूरत पड़ने शहर के लोगों को गांव के तरफ रूख करना पड़ता है। अभी कुछ वर्षों पहले तक उपले शहरों में भी आसानी से मिल जाया करतें थें। क्योंकि शहर के अधिकांश लोग पशु पालन करतें थे। कहीं-कहीं तो लोग एकाक गाय अपने घरों में भी रखते थे।

ग्रामीण इलाकों में भोजन बनाने के काम के साथ ही उपले के ढेर सारे ऐसे प्रयोग हैं कि गोबर से उपले बनाने का कार्य अभी भी ग्रामीण इलाकों में बदस्तूर जारी है। इसकी जरूरत सबसे ज्यादा दूध से घी बनाने के लिए दूध को लम्बे समय तक धीमी आंच पर गर्म करना पड़ता है। जिसके लिए गोबर के उपले एक अच्छा विकल्प हैं। सर्दियों में बिजली की निर्बाध उपलब्धता न होने के कारण गांवों में हीटर और ब्लोअर का प्रयोग ग्रामीण इलाकों में बमुश्किल से पांच फीसद तक ही लोग इनका इस्तेमाल करते हैं। ज्यादातर लोग भीषण ठंड से बचने के लिए करीब तीन महीने तक लकड़ी के साथ अलाव में उपले का उपयोग अवश्य करते हैं। बरसात के समय में मच्छरों और खून पीने वाली मक्खियों से अपने गाय भैंसों को बचाने के लिए गोबर के उपले का धुआं करते हैं। यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि आज भी भूने आलू, बैगन, टमाटर का चोखा लीटी लगाने के लिए उपले का प्रयोग ग्रामीण इलाकों के साथ-साथ शहरी इलाकों में भी साधन सम्पन्न लोग भी करते हैं। बदले समय में गोमूत्र और गोबर से कई मूल्यवर्धित वस्तुएं जैसे गोबर का गमला, मूर्तियां, कमल दान, कूडादान, मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती, जैव रसायनों का निर्माण आदि में उपयोग किया जा रहा है। किन्तु इन्हें बनाने के प्रशिक्षण के अभाव और इन्हें बेचने के बाजार तक इन गरीब ग्रामीण इलाकों की महिलाओं पहुंच न होने के कारण जनपद के ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में गोबर से उपले बनाने का परम्परागत कार्य ही किया जा रहा है। कुछ लोग अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए गाय, बैल, भैंस के गोबर से बने उपलों को ऑनलाइन बेचना भी शुरू कर दिये है आज शॉपिंग वेबसाइटों पर भी इसकी ब्रिकी की जा रही है। इसका इस्तेमाल कई पूजा-पाठ, अनुष्ठान, हवन और यज्ञ आदि के दौरान किया जाता है। कई पूजा-पाठ तो ऐसे भी होते हैं जो गोबर के कंडे के बिना अधूरे माने जाते हैं।

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