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Homeउत्तर प्रदेश'रामपुर में सपा की हार के पीछे आजम खान ही हैं ?

‘रामपुर में सपा की हार के पीछे आजम खान ही हैं ?

उत्तर प्रदेश की रामपुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के नतीजे बीजेपी के पक्ष में आए हैं. सपा नेता आजम खान के इस गढ़ में पहली बार बीजेपी कमल खिलाने में कामयाब रही है. इस सीट से बीजेपी प्रत्याक्षी आकाश सक्सेना 33,702 वोटों से जीत गए हैं. आकाश सक्सेना ने सपा के आसिम रजा को मात दी है. आसिम रजा को 47,262 वोट मिले हैं, जबकि आकाश सक्सेना को 80,964 वोट हासिल हुए हैं.

रामपुर विधानसभा जिसे आजमखान का गढ़ कहा जाता है यहां ये स्थिति रही है कि चुनाव चाहे कोई भी हो जीत आजम खान की ही होती है. इस सीट पर सालों से समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है. लेकिन बीजेपी ने पहली बार इस सीट पर एतिहासिक जीत हासिल की है.बीजेपी के प्रत्याशी आकाश सक्सेना काफी कम फीसदी वोटिंग होने के बाद भी अच्छे खासे मार्जन से जीते हैं.उन्होंने सपा के उम्मीदवार को करारी हार दी है. मुस्लिम बहुल इलाका होने के बाद भी रामपुर में बीजेपी की जीत चौंकाने वाली है. लेकिन चुनाव विश्लेषक अमिताभ भूषण का कहना है कि बीजेपी की इस जीत को लेकर चौंकने जैसी कोई बात नहीं है क्योंकि बीजेपी की इस जीत के पीछे कहीं ना कहीं आजम खान ही जिम्मेदार हैं. उन्होंने बताया कि आजम खान ने खुद इस सीट पर अपने मतदाताओं से ये अपील की थी कि ‘वो मतदान ना करें. आजम खान ने चुनाव प्रचार के दौरान ये कहा था कि लोग वोट करने के लिए अपने घरों से ना निकले. आजम खान से इस सीट पर मतदान से पहले कई आरोप भी लगाए उन्होंने कहा कि इस सीट पर प्रशासन चुनाव लड़ रहा है ना की कोई राजनीतिक पार्टी, यहां इलेक्शन फेयर नहीं होगा, इसीलिए आप मतदान ना करें. बल्कि इस दिन को छुट्टी की तरह बिताएं कहीं घूमने चले जाएं. जिससे आजम खान का परंपरागत वोटर हतोउत्साहित हो गया और उसने वोट नहीं किया जिसके कारण ही रामपुर में पहली बार इतना कम फीसदी मतदान हुआ. 5 दिसंबर को रामपुर विधानसभा उपचुनाव के दौरान केवल 33.94 फीसदी ही मतदान हुआ, जबकि पिछले कई चुनावों में यहां बढ़-चढ़ कर मतदान होता रहा है.  एक्सपर्ट कहते हैं रामपुर में वोटिंग फीसदी कम रहने का फायदा बीजेपी को हुआ क्योंकि सपा का परंपरागत वोटर वोट देने के लिए घर से बाहर ही नहीं निकला ऐसे में रामपुर विधानसभा में जो हिंदु वोटर है उसने बीजेपी को वोट किया. हिंदू वोटर जिसकी आबादी रामपुर में मुस्लिम आबादी से कम है. मुस्लिस आबादी 55 से 60 फीसदी है. जबकि रामपुर में हिंदु वोटर 45 फीसदी के करीब हिंदू वोटर है. हिंदू वोटर पहले भी रामपुर में बीजेपी को वोट करते आया है लेकिन क्योंकि मुस्लिम वोटरों की संख्या ज्यादा है इस कारण से यहां बीजेपी कभी जितने में कामयाब नहीं हो पाती थी. बीजेपी के प्रत्याशी आकाश सक्सेना जो काफी लंबे समय से यहां जीत की राह ताक रहे थे. लेकिन वो कभी आजम खान तो टक्कर नहीं दे पाते थे. क्योंकि आजम खान को सभी मुस्लिम वोटरों का समर्थन था. इसके साथ ही रामपुर मे सपा के हारने का दूसरा अहम कारण यहां दो मुस्लिम परिवारों में वैमनस्यता रही. जिसमें रामपुर की राजनीति में सबसे पुराने और अहम नवाब परिवार ने आजम खान का विरोध किया.नवाब परिवार ने मुख्य रूप से आजम खान का विरोध किया. ये परिवार शुरुआत से ही सपा के खिलाफ मुखर रहा. जिसका असर मतदान पर देखने को मिला क्योंकि आजम खान ने जहां पहले ही अपने वोटर से मतदान नहीं करने की अपील कर दी थी, जिसके कारण मुस्लिम वोटर मतदान करने के लिए मतदान केंद्रों तक नहीं पहुंचा वहीं दूसरा अहम कारण नवाब परिवार का जो मुस्लिम समर्थक वोटर था वो भी सपा को वोट करने के लिए नहीं पहुंचा. सपा ने इस सीट से बीजेपी के खिलाफ आजम खान के ही शाहगीर्द माने जाने वाले आसिम रजा को चुनाव में खड़ा किया था. लेकिन जो लोग आजम खान के विरोधी हैं चाहे उसनें नवाब परिवार के समर्थक है वो भी आसिम रजा को वोट नहीं देने पहुंचे क्योंकि आसिम रजा आजम खान के ही चेले यानि शाहगीर्द कहे जाते हैं.

इन सभी बातों से साफ है कि रामपुर में मुस्लिम वोटरों की सपा से नाराजगी का सीधा फायदा बीजेपी को हुआ और बीजेपी ने पहली बार आजम के गढ़ को फतह कर लिया.रामपुर में वोटरों के गणित पर नजर डालें तो 4 लाख के करीब कुल वोटर हैं जिसमें मुस्लिम वोटर 2 लाख के करीब हैं जो रामपुर में कुल जनसंख्या का 52 से 55 फीसदी है.इसके अलावा 45 फीसदी यानि करीब 1 लाख 65 हजार के करीब हिंदू वोटर हैं. जिसमें 40 हजार वैश्य समाज के वोटर, 35 हजार लोध वोटर, 20 हजार दलित वोटर,5 हजार कायस्थ वोटर, 10 हजार यादव वोटर, 4 हजार ब्राह्मण वोटर हैं और 3 फीसदी यानि की 10 हजार के करीब सिख वोटर भी इस सीट पर हैं. ऐसे इस उपचुनाव में हिंदु वोटरों के साथ मुस्लिम वोटरों ने भी बीजेपी पर समर्थन जताया. इस पूरे समीकरण के बाद अगर ये समझे कि आखिर आजम खान ने इस चुनाव में अपने वोटर से मतदान ना करने की अपील क्यों कि जबकि इस सीट से उनकी जगह उनके शाहगीर्द आसिम रजा चुनाव लड़ रहे थे. यहां तक कहा जा रहा था कि आजिम रजा भले ही चुनाव में खड़े हैं लेकिन पीछे से आजम खान ही ये चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में क्या आजन खान पहले से ही इस सीट को गवाना चाहते थे, वो ये चुनाव नहीं जीतना चाहते थे? अपने वोटर से चुनाव में ना हिस्सा लेने के पीछे क्या आजन खान की समाजवादी पार्टी को सबक सिखाने की मंशा दी. इसको लेकर चुनाव विशेषज्ञ अमिताभ भूषण कहते हैं कि आजम खान के खिलाफ जो पूरा प्रकरण हुआ, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई, वो जेल में बंद रहे. उस दौरान समाजवादी पार्टी का वो समर्थन उन्हें नहीं मिला जो मिलना चाहिए था, यहां तक की जब आजम खान सीतापुर की जेल में कई महीनों तक बंद रहे, तब वहां सपा मुखिया अखिलेश यादव उनसे मिलने तक नहीं गए जिसको लेकर भी आजम खान की नाराजगी सामने आई थी. आजम खान के खिलाफ हुई कार्रवाई के दौरान समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव मौन रहे. जिसके चलते आजम खान कुछ अलग-थलग होते दिखे थे. जिसके बाद इस सीट से भी आजम खान की सदस्यता रद्द कर दी गई उस दौरान भी उन्हें पार्टी का कुछ खासा समर्थन नहीं मिला. ऐसे में हो सकता है कि आजम खान इस उपचुनाव के जरिए अखिलेश यादव तो एक संदेश देना चाह रहे हों इसी कारण से उन्होंने इस चुनाव में मतदाताओं को वोट नहीं देने की अपील की. वरना शायद ही कोई ऐसा नेता रहा हो जो अपनी परंपरागत सीट से अपनी ही पार्टी को वोट ना देने की अपील करे. इस सीट से सपा के विधायक रहे आजम खान के विवादित भाषण के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उपचुनाव कराए गए.साल 2019 में नफरती भाषण मामले में एक अदालत ने आजम खान को दोषी ठहराया था जिसके बाद इस सीट से आजम खान की सदस्यता को अयोग्य घोषित कर दिया गया था.उनकी विधायकी खारिज करने के बाद इस सीट पर उपचुनाव कराए गए.बता दें इसी साल 14 फरवरी को 2022 को यूपी विधानसभा चुनाव में इस सीट से सपा के आजम खान निर्वाचित हुए थे.

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