देश में पिछले कुछ महीनों से ओबीसी के लिए जाति आधारित जनगणना पर खूब राजनीति हो रही है. अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुका है. सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिंह की पीठ ने केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय और अन्य को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है. शीर्ष अदालत में अधिवक्ता कृष्ण कन्हैया पाल की ओर से इस मामले में एक याचिका दायर की गई है. अदालत इसी याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में जाति आधारित सर्वे और जाति आधारित जनगणना को बेहद जरूरी बताया गया है. OBC समाज के विकास के लिए जाति आधारित जनगणना कराने की मांग की गई है.
याचिका में कही गई ये बातें
याचिका में कहा गया है कि ठोस आंकड़ों के बिना ठोस नीतियां नहीं बनाई जा सकतीं, इसलिए ओबीसी के लिए जाति आधारित जनगणना बेहद जरूरी है. याचिका में कहा गया, “जाति आधारित सर्वे और जाति आधारित जनगणना की कमी के कारण, सरकारें पिछड़े वर्गों के सभी तबकों के लिए कल्याणकारी योजनाओं के लाभों को साझा करने में असमर्थ हैं. ठोस आंकड़ों के बिना उस समाज के लिए योजनाएं नहीं बनाई जा सकती हैं.”
‘अपनी बात से पलट गई सरकार’
याचिका में कहा गया, “2018 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की तरफ से इसे लेकर घोषणा की गई थी. उस वक्त सरकार ने कहा गया था कि केंद्र सरकार जनगणना 2021 में पहली बार अन्य पिछड़ा वर्ग को लेकर अलग से आंकड़े जुटाएगी. बावजूद इसके केंद्र सरकार ने 2017 में बनाए गए रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को पेश नहीं किया. सरकार अब इससे परहेज कर रही है.”
लोकसभा में सरकार ने क्या कहा?
संसद के शीतकालीन सत्र में जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया गया. इस पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने जवाब भी दिया. नित्यानंद राय ने सदन को बताया कि केंद्र सरकार ने आजादी के बाद से जनगणना में एससी और एसटी के अलावा अन्य जातियों की जनसंख्या की गणना नहीं की है. वहीं, इससे पहले देश में जनगणना को कोरोना के प्रकोप के कारण रोक दिया गया था.
कौन सी जातियां गिनी जाती हैं?
केंद्रीय मंत्री राय ने कहा, “जनगणना में जनसंख्या और शिक्षा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, धर्म, भाषा, विवाह, प्रजनन क्षमता, अक्षमता, पेशा और व्यक्तियों के प्रवास जैसे विभिन्न सामाजिक आर्थिक मापदंडों पर डेटा एकत्र किया जाता है.” उन्होंने कहा, “जनगणना में हमेशा उन जातियों और जनजातियों की गिनती की जाती है, जिन्हें संविधान में आदेश 1950 के अनुसार विशेष रूप से अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में अधिसूचित किया गया है.