Become a member

Get the best offers and updates relating to Liberty Case News.

― Advertisement ―

spot_img
Homeअंतर्राष्ट्रीयपौलेंड की घटना से याद आया है क्यूबा मिसाइल संकट

पौलेंड की घटना से याद आया है क्यूबा मिसाइल संकट

दुनिया इस वक्त परमाणु संकट के मुहाने पर बैठी है. कई देशों के पास परमाणु हथियार हैं. ऐसे में थोड़ी सी भी तनातनी होने पर तीसरे विश्व युद्ध की आहट से इंकार नहीं किया जा सकता है. ऐसा ही एक पल इस हफ्ते नवंबर 15 को आया. जब रूस- यूक्रेन की जंग के बीच नेटो देश पौलेंड पर रूस की मिसाइल गिरने की खबर आई. इसके बाद से ही मामला संजीदा हो चला. लोगों को लगने लगा कि रूस- यूक्रेन के बीच अब नेटो देश भी जंग में कूद पड़ेंगे. इन हालातों में तीसरे विश्व युद्ध का होना तय था. केवल दो दिनों की इस घटना ने दुनिया के जेहन में आज से 60 साल पहले क्यूबा मिसाइल संकट की यादें ताजा कर दीं. यहां ये जानना जरूरी है कि आखिर क्यूबा मिसाइल संकट क्या था जिसे याद कर आज भी दुनिया सिहर उठती है. तब भी आज की तरह रूस ही इस मसले के केंद्र में था, लेकिन तब ये रूस नहीं सोवियत संघ था.

पौलेंड ने क्यों दिलाई क्यूबा संकट की याद

एक तरफ जहां इंडोनेशिया के बाली में 15 से 16 नवंबर को जी 20 शिखर सम्मेलन चल रहा था. उसी दौरान रूस की मिसाइल नेटो देश पौलेंड पर गिरने की खबर आई. पौलेंड के विदेश मंत्रालय ने यूक्रेनी सीमा से 6 किलोमीटर दूरी पर बसे प्रजेवोडो गांव में मिसाइल गिरने की पुष्टि की थी इसमें दो लोग मारे गए थे. देश के पीएम माटुस्ज मोराविकी ने तुरंत एक्शन लिया. इसे लेकर पौलेंड की सेना को हाई अलर्ट पर रखने के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा काउंसिल की इमरजेंसी बैठक भी बुलाई गई. पौलेंड ने इसके रूसी मिसाइल होने की बात भी कही. इससे मामला संजीदा हो चला. आनन-फानन में वारसा में रूसी राजदूत को तलब किया गया. हालांकि रूस से इस मिसाइल से साफ इंकार कर दिया था. उधर रूस ने पौलेंड पर उस पर झूठे आरोप लगाने की बात कही. हालात यहां तक पहुंच गए कि जी 20 में पहुंचे वैश्विक नेताओं ने आपातकालीन बैठक कर डाली. इसमें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की अध्यक्षता में शक्तिशाली पश्चिमी देशों ने शिरकत की. अगर इस वक्त अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन समझदारी से काम नहीं लेते तो तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता. बैठक में उन्होंने कहा वो नेटो सहयोगी देशों के साथ इस मामले की जांच कर रहे हैं. उन्होंने ये कहकर बात को संभाला था कि इसकी आसार नहीं है कि मिसाइल को रूस ने दागा हो. उधर यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की कहते रहे कि रूस की तरफ से यूक्रेन की राजधानी यूक्रेन पर दागी मिसाइल है जो पौलेंड पर गिरी है. हालांकि बाद में पौलेंड ने इस मिसाइल के रूस के तरफ से जानबूझ कर दागे जाने के संकेतों से साफ इंकार किया था. अगर वक्त पर बात नहीं संभली होती तो रूस-यूक्रेन संघर्ष के साए में हो रहे जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान ही तीसरे विश्व युद्ध के होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता था. इसी तरह के हालात दुनिया में 1962 में पैदा हुए थे जब परमाणु युद्ध का खतरा पैदा हो गया था, जिसे आज भी क्यूबा मिसाइल संकट के तौर पर जाना जाता है.

जब रूस और अमेरिका आए आमने-सामने

साल 1962 ऐसा जो भुलाए नहीं भूलता. उस वक्त तक सोवियत संघ का विघटन नहीं हुआ था और रूस उससे अलग नहीं था. ये शीत युद्ध का दौर था और उस वक्त सोवियत संघ, क्यूबा और अमेरिका के बीच तनातनी की वजह से क्यूबा मिसाइल संकट पैदा हुआ था. क्यूबा अमेरिका के पास एक छोटा सा द्वीप है. इस कम्युनिस्ट देश का लगाव सोवियत संघ यानी यूएसएसआर (USSR) से रहा और वो इसे वित्तीय मदद भी करता रहा. सोवियत संघ की विचारधारा का होने की वजह से ये देश हमेशा से ही अमेरिका की खिलाफत में रहा. इसकी अमेरिका से भौगोलिक नजदीकी को देखते हुए सोवियत नेता नीकिता ख्रुश्चेव ने इस देश को सैन्य छावनी वेफ बनाने का फैसला लिया. इसके तहत यूएसएसआर ने साल 1962 में यहां परमाणु मिसाइल तैनात की और दुनिया का ताकतवर देश अमेरिका इनकी जद में आ गया. 14 अक्टूबर को अमेरिकी टोही विमान को पड़ोसी देश क्यूबा में तैनात की गई इन मिसाइलों के बारे में जानकारी मिली. फिर क्या था खतरे को भांप कर अमेरिका अलर्ट मोड में आ गया. अमेरिका ने अपने जंगी जहाजों को मैदान में उतार डाला ताकि क्यूबा की और से आ रहे यूएसएसआर के जहाजों पर काबू किया जा सके. इन दोनों ताकतवर देशों की इस टकराव ने पूरी दुनिया में बैचेनी बढ़ा डाली. इन दोनों महाशक्तियों के इस तरह से एक-दूसरे के खिलाफ खड़े होने से दुनिया पर परमाणु जंग का खतरा मंडराने लगा था. ऐसा लग रहा था कि किसी भी पल दुनिया में तीसरे विश्व युद्ध का आगाज हो सकता है. इतिहास इसी बैचेनी और डर के पल को आज क्यूबा मिसाइल संकट का नाम देता है.

यूएसएसआर को उकसाया था यूएस ने

ऐसा नहीं है कि सोवियत संघ ने अमेरिका के खिलाफ ये खतरनाक कदम यूं ही उठा लिया हो. दरअसल इसके लिए अमेरिका ने ही यूएसएसआर को उकसाया था. साल 1962 से पहले अमेरिका ने 1958 में ब्रिटेन के बाद 1961 में तुर्की और इटली में 100 से अधिक मिसाइलों को यूएसएसआर के खिलाफ तैनात किया था. ये ऐसा दौर था जब शीत युद्ध अपने चरम पर था. ऐसे में जब अमेरिका को टोही विमान की खींची गई 9 सौ से अधिक फोटोज में पड़ोसी देश क्यूबा में मिसाइलों की कतार दिखाई दी तो उसने बगैर देरी किए हुए जवाबी कार्रवाई शुरू कर डाली. तब अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी थे. उनके आदेश पर अमेरिकी नौसेना ने क्यूबा को घेर लिया. इससे यूएसएसआर की तरफ से क्यूबा की तरफ आने वाली मिसाइलों का रास्ता बाधित हुआ. नतीजन सोवियत संघ और अमेरिका इस मसले पर बातचीत करने पर राजी हुए.  अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी ने 28 अक्टूबर 1962 को सोवियत संघ को बातचीत का संदेश भेजा और उस दौर के मशहूर निकिता ख्रुश्चेव क्यूबा से मिसाइलें हटाने के लिए राजी हो गए. हालांकि ख्रुश्चेव ने दो शर्तों की एवज में क्यूबा से ये मिसाइलें हटाईं थीं. उन्होंने अमेरिका के सामने क्यूबा पर हमलावार न होने और तुर्की में तैनात अमेरिकी मिसाइलों को हटाने को कहा था.

Share Now...