Become a member

Get the best offers and updates relating to Liberty Case News.

― Advertisement ―

spot_img

Jaunpur News : नहीं मिला आवास तो शौचालय बना सहारा

खुले आसमान के नीचे रहने को विवश है विधवा महिलापरिवार को जरूरत है अंत्योदय कार्ड की, बना है पात्र गृहस्थी कार्डजौनपुर धारा, केराकत। देश...
Homeविविधनहीं पता TV क्या है, युद्ध की भी खबर नहीं...

नहीं पता TV क्या है, युद्ध की भी खबर नहीं…

ये कहानी एक ऐसे परिवार की है, जो दुनिया से एकदम कटकर रह रहा था. उसे नहीं पता कि दुनिया में क्या कुछ चल रहा है. जब दूसरे विश्व युद्ध को लेकर दुनिया में कोहराम मचा हुआ था, तब भी इस परिवार को इसकी भनक नहीं लगी. ये लोग साइबेरिया की एक सुनसान जगह में झोपड़ी बनाकर रह रहे थे. इन्हें वैज्ञानिकों के एक ग्रुप ने पहली बार देखा. ये मामला साल 1978 का है. 

डेली स्टार की रिपोर्ट के अनुसार, तब भूवैज्ञानिकों का एक ग्रुप हेलीकॉप्टर से साइबेरिया के घने जंगलों में गया था. इनका उद्देश्य यहां मौजूद खनिज संपदा का पता लगाना था. संयोग से हेलीकॉप्टर के पायलट ने किसी भी शहर या गांव से 155 मील दूर एक साफ जगह देखी. वो दिखने में इंसानी बस्ती जैसी थी.जब पूरी टीम वहां पहुंची तो उन्हें लायकोव परिवार मिला. यहां कार्प नाम का एक बूढ़ा शख्स और उसके चार बच्चे थे. उसकी पत्नी अकुलिना की 1961 में ठंड और भूख के कारण मौत हो गई थी. वो ऐसी स्थिति में 40 साल से अधिक समय तक जीवित रही. ठंड से परेशान होकर उसने अपने जूते का लैदर तक खा लिया था.ये परिवार घने जंगल में 6000 फीट की ऊंचाई पर एक पहाड़ पर मिला. जहां आमतौर पर केवल भालू, भेड़िये और दूसरे जंगली जानवर ही जीवित रह पाते हैं. इन्होंने दुनिया से अपना रिश्ता तोड़ लिया था. इन्हें दूसरे विश्व युद्ध, मून लैंडिंग्स, टीवी और मॉडर्न मेडिसिन के बारे में कुछ नहीं पता था. भूविज्ञानी गैलिना पिस्मेंस्काया यहां लौह अयस्क की खोज करने आई थीं. उन्होंने उस वक्त के बारे में बताया, जब वो इस परिवार से मिलीं.उन्होंने कहा, ‘वो (कार्प) डरा हुआ लगा रहा था और बहुत चौकस था. हमें ही कुछ कहना था. तो मैंने शुरुआत की और कहा कि प्रणाम दादा जी, हम आपसे मिलने आए हैं. लेकिन उस बूढ़े शख्स ने इसका तुरंत कोई जवाब नहीं दिया. फिर बाद में हमने उसकी आवाज सुनी, उसने कहा- “अब चूंकी तुम लोग इतना दूर आए हो, तो तुम्हारा स्वागत है.”‘ ये लोग रूस की क्रांति के बाद यहां आ गए थे. बुजुर्ग ने कहा कि स्टालिन के वक्त चीजें खराब होने लगी थीं और 1936 में कम्युनिस्टों ने उसके छोटे भाई को गोली मार दी थी. जिसके बाद कार्प लायकोव फ्लाइट से अपनी पत्नी, 9 साल के बेटे साविन और दो साल की बेटी नतालिया के साथ यहां आ गया. यहां अपने लिए कच्चे घर बनाए. इन्हें दो और बच्चे पैदा हुए. इनमें दमित्री का जन्म 1940 में हुआ और अगाफिया का 1943 में. बच्चों को पता था कि रूस से बाहर भी दूसरे शहर और देश हैं. लेकिन उन्हें इसकी ठीक से समझ नहीं थी.वैज्ञानिक इन्हें अपने कैंप में ले गए, जहां ये आधुनिक चीजों को देखकर हैरान दिखाई दिए. 1981 में साविन और नतालिया की अपनी डाइट के कारण किडनी फेल हो गईं. दमित्री की निमोनिया से मौत हो गई. उसे इन्फेक्शन हो गया था. इन तीनों की मौत के बाद वैज्ञानिकों ने कार्प और उसकी बेटी अगाफिया से जंगल छोड़ने को कहा लेकिन इन्होंने किसी की बात नहीं सुनी. कार्प लायकोव की 16 फरवरी, 1988 को नींद में मौत हो गई थी. वहीं इस साल के मार्च तक ये अपडेट मिला कि अगाफिया अब भी यहां रह रही है.

Share Now...