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ग्लेडियोलस फूलों की खेती कर किसान कमा रहे लाखों रुपये

बाराबंकी. यहां के प्रगतिशील किसान अनिल वर्मा ने फूलों की खेती में महारत हासिल की है. वैसे तो हमारे देश में फूलों की खेती हमेशा से ही होती आ रही है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से फूलों की नई-नई किस्मों और तकनीकों से की जा रही खेती ने किसानों के लिए समृद्धि के द्वार खोल दिये हैं. आज फूलों की खेती किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है. बाराबंकी के देवां ब्लॉक के बिशुनपुर के रहने वाले किसान अनिल वर्मा बाराबंकी में ग्लेडियोलस की खेती कर रहे हैं. तकरीबन डेढ़ दशक पहले धान और गेहूं जैसी परम्परागत खेती में हो रहे नुकसान के चलते इन्होंने आधुनिक और नकदी खेती का मन बनाया और फूलों की खेती शुरू की. 15 वर्ष पहले महज दस बिस्वा रकबे में इन्होंने ग्लेडियोलस की खेती की. मुनाफा हुआ तो हौसला बढ़ा और तब से ये लगातार ग्लेडियोलस लगा रहे हैं.

कम समय मे हो रहा ज्यादा मुनाफा
अनिल आज एक एकड़ में ग्लैडियोलस की खेती कर हर वर्ष महज चार महीने में ही दो से ढाई लाख रुपये कमा ले रहे हैं. ये उन किसानों के लिए प्रेरणास्रोत हैं, जो खेती को घाटे का सौदा मानते हैं. ग्लेडियोलस की खेती सितम्बर में की जाती है और फरवरी तक खत्म हो जाती है. सबसे पहले खेत को तैयार कर उसमें आलू की खेती जैसी नालियां बनाते हैं. फिर उस नाली पर 4 इंच की दूरी पर ग्लेडियोलस के बल्ब बो देते हैं. उसके बाद मिट्टी चढ़ाते हैं.

नमी के लिए दिया जाता है पानी
खेत में नमी बनाए रखने के लिए इसमें समय-समय पर पानी देते हैं. नालियों से मिट्टी गिरने न पाए लिहाजा उस पर मिट्टी चढ़ाते रहते हैं. वही अनिल वर्मा ने बताया पन्द्रह दिन बाद बोए गए बल्ब से स्टिक निकलनी शुरू हो जाती हैं और डेढ़ महीने बाद इन स्टिक में फूल आ जाते हैं. अनिल के मुताबिक फूलों की खेती का बड़ा स्कोप है. हर जगह इसकी खपत है. इसका बाजार भी अच्छा है.

किसानों के लिए बेहतरीन फसल
मेहनत भले ही इसमें ज्यादा हो लेकिन ये कम लागत में दोहरा मुनाफा देती है. ग्लेडियोलस की खेती करने वाले किसानों का कहना है कि छोटी जोत वाले किसानों के लिए ये एक बेहतरीन फसल है. ग्लेडियोलस फूल की खेती करने में पहले वर्ष इसके बीज यानी बल्ब खरीदने पड़ते हैं. फसल काटने के बाद इसके बल्ब निकाल कर उनका शोधन कर उन्हें कोल्ड स्टोर या ठंडे स्थान पर रख दिया जाता है. फिर अगली फसल के लिए इन्ही बल्बों का प्रयोग किया जाता है. इससे अगले वर्षों में किसान का बीज का खर्च बच जाता है. किसानों का कहना है कि इसकी फसल आलू से अधिक मुनाफा देती है.

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