मई के महीने में ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने तालिबान को चेतावनी देते हुए कहा था कि वो ईरान-अफगानिस्तान के जल समझौते का सम्मान करें या इसका नतीजा भुगतने के लिए तैयार रहें. जवाब में एक जाने-माने तालिबानी नेता ने ईरानी नेता की खिल्ली उड़ाते हुए उन्हें 20 लीटर पानी का एक कंटेनर बतौर गिफ्ट भेजा था. तालिबान नेता ने कहा था कि ईरान इस तरह के अल्टीमेटम देना बंद करे.
इसके लगभग एक सप्ताह बाद, दोनों देशों के बीच तनाव इस कदर बढ़ गया कि दोनों के सुरक्षा बल सीमा पर भिड़ गए. इस झड़प में दो ईरानी गार्ड और एक तालिबान लड़ाके की मौत हो गई. ब्लूमबर्ग को मामले से परिचित एक सूत्र ने बताया कि इसके बाद तालिबान ने सीमा क्षेत्र में हजारों सैनिक और आत्मघाती हमलावर भेज दिए हैं. सूत्र का कहना है कि तालिबान ईरान के साथ युद्ध के लिए तैयार है. तालिबान ने दो दशक तक अमेरिका और नेटो सैनिकों से युद्ध किया. 15 अगस्त 2021 को तालिबान ने अफगानिस्तान की सत्ता पर कब्जा कर लिया था. अब वो अपने पड़ोसियों से ही लड़ता दिख रहा है. ग्लोबल वार्मिंग की मार झेलते अफगानिस्तान में जल संसाधन तेजी से घट रहे हैं. इसी कारण ईरान के साथ उसका विवाद तेज हो रहा है जिसने पहले से ही अस्थिर अफगानिस्तान को और अस्थिर कर दिया है.
क्या है हेलमंद नदी का विवाद?
अफगानिस्तान और ईरान के बीच हेलमंद नदी के पानी को लेकर हमेशा से विवाद होता रहा है. हेलमंद अफगानिस्तान की नदी है जो एक हजार किलोमीटर लंबी है. यह अफगानिस्तान से पूर्व की दिशा में बहते हुए ईरान जाती है. 1950 के दशक में अफगानिस्तान ने हेलमंद नदी पर दो बड़े बांध बना दिए जिससे ईरान को हेलमंद से मिलने वाले पानी की मात्रा सीमित हो गई. इससे नाराज ईरान ने अफगानिस्तान को रिश्ते खत्म करने की धमकी दी. दोनों के बीच विवाद के बाद साल 1973 में एक समझौता हुआ जिसके तहत यह तय हुआ कि अफगानिस्तान हर साल ईरान को हेलमंद नदी का 85 करोड़ क्यूबिक टन पानी देगा. लेकिन यह समझौता कभी ठीक से लागू नहीं हुआ और इसे लेकर ही दोनों देशों के बीच लगातार तनाव रहता है. हेलमंद अफगानिस्तान की सबसे लंबी नदी है जिसका पानी खेती के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. नदी के दोनों किनारों पर रहने वाले लाखों लोग इस पर आश्रित हैं. ईरान का कहना है कि तालिबान ने सत्ता में आने के बाद से ही उसे पानी की आपूर्ति कम कर दी है. अंतरराष्ट्रीय एनजीओ इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप में अफगानिस्तान मामलों के वरिष्ठ सलाहकार ग्रीम स्मिथ कहते हैं, ‘जलवायु परिवर्तन के कारण हेलमंद नदी के पानी की कमी आई है क्योंकि देश में गर्मी बढ़ रही है और भारी बारिश के बाद भयानक सूखा पड़ रहा है. 1950 के बाद से अफगानिस्तान में तापमान 1.8 सेल्सियस बढ़ गया है. पिछले हफ्ते ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनानी ने कहा हेलमंद के पानी पर ईरान के अधिकारों को लेकर तालिबान की सरकार के साथ शुरुआती समझौते हो चुके हैं. हालांकि, उन्होंने अधिक जानकारी नहीं दी.
ईरान के राष्ट्रपति की तालिबान को चेतावनी
ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने साल 2021 में देश के सबसे गरीब प्रांत सिस्तान और बलूचिस्तान में तालिबान को पानी के लिए चेतावनी दी थी. पानी की भारी कमी से जूझते इस प्रांत में रईसी ने कहा था, ‘मेरी बातों को गंभीरता से लें. मैं अफगानिस्तान के अधिकारियों और शासकों को चेतावनी देता हूं, उन्हें सिस्तान के लोगों के पानी के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए. तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद ने मई में कहा था कि रईसी की ये टिप्पणी अनुचित थी और संबंधों को नुकसान पहुंचा सकती हैं. वहीं, तालिबान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी का तर्क है कि अफगानिस्तान ईरान के साथ जल समझौते का सम्मान करता है और ईरान को पानी आपूर्ति में कमी का कारण सूखा है. ईरान-अफगानिस्तान के बीच हुए पानी के समझौते में भी यह बात कही गई है कि सूखे के समय पानी की आपूर्ति को कम किया जा सकता है. समझौते में कहा गया है कि ऐसी स्थिति में दोनों देशों को किसी भी मुद्दे को हल करने के लिए राजनयिक स्तर पर बातचीत करनी चाहिए. लेकिन पानी को लेकर उपजे विवाद को कूटनीति के जरिए सुलझाने के बजाए तालिबान युद्ध के लिए तैयार हो गया है. एक सूत्र ने बताया कि तालिबान से सीमा क्षेत्र में सैनिकों और आत्मघाती हमलावरों के साथ-साथ, अमेरिकी सैनिकों के छोड़े गए आधुनिक और घातक हथियारों की भी तैनाती कर रखी है. वाशिंगटन स्थित थिंक-टैंक अटलांटिक काउंसिल के एक सीनियर फेलो और कनाडा, फ्रांस में अफगानिस्तान के पूर्व राजदूत उमर समद ने कहा, ‘दोनों पक्ष खुद को सही ठहराने के लिए कुछ भी कर सकते हैं. अगर कोई भी पक्ष कूटनीति के जरिए इस मुद्दे को सुलझाने पर सहमत नहीं होता है तो यह राजनीतिक रूप से अतार्किक होगा. इससे क्षेत्र में अस्थिरता आएगी और दोनों ही देश किसी नए संघर्ष के लिए तैयार नहीं है.’
एक-दूसरे को दोष देते ईरान-अफगानिस्तान
एक तरफ जहां ईरान कहता रहा है कि तालिबान ने सत्ता में आने के बाद से उसे पानी की आपूर्ति कम कर दी है वहीं, तालिबान की सरकार का तर्क है कि सूखे की स्थिति के कारण पानी की कमी हो रही है और वो समझौते में तय पानी ईरान को नहीं दे पा रहा है. वाशिंगटन स्थित थिंक-टैंक मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट के सीनियर फेलो फतेमेह अमान का कहना है कि दोनों पक्षों के दावों की सच्चाई का पता लगाना एक मुश्किल काम है क्योंकि जल आपूर्ति को लेकर कोई ठोस डेटा नहीं है. उनका कहना है ईरान में पानी की किल्लत के लिए केवल और केवल ईरान जिम्मेदार है. उन्होंने कहा, ‘ईरानी अधिकारियों के पास जल प्रबंधन करने, निवेश करने और क्षेत्र को सूखे की आपदा का मुकाबला करने के लिए 40 साल से अधिक का समय था लेकिन वो इसमें विफल रहे हैं. ईरान की स्थानीय मीडिया के मुताबिक, ईरानी सांसदों ने जून में कहा था कि सिस्तान और बलूचिस्तान में स्थिति इतनी गंभीर है कि अगर लोगों को पानी नहीं मिला तो ‘मानवीय आपदा’ आ जाएगी. एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल 10,000 से अधिक परिवार प्रांत की राजधानी छोड़कर दूसरे शहरों में जा बसे थे. ग्लोबल वार्मिंग के कारण ईरान के कम से कम 300 कस्बों और शहरों को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ रहा है. एक अनुमान के मुताबिक, ईरान के बांध सूख रहे हैं और देश का 97% से अधिक हिस्सा सूखे से प्रभावित है. लगभग दो करोड़ लोग ग्रामीण इलाकों को छोड़कर शहरी इलाके में चले गए हैं क्योंकि गांवों में खेती के लिए पानी नहीं बचा है. अफगानिस्तान में जब युद्ध चल रहा था तब वहां से 30 लाख लोग भागकर ईरान चले गए थे. अब वो वहां पानी की किल्लत का सामना कर रहे हैं. सरदार अली भी उन्हीं लोगों में से एक हैं जो इसी साल सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत से वापस अपने देश अफगानिस्तान लौटे हैं. वो कहते हैं, ‘हमें पानी लेने के लिए दूसरे गांव जाना पड़ता था. हम 30 लीटर के पानी की बोतल के लिए घंटों यात्रा करते थे. गर्मी और पानी की कमी से वहां कई लोग और मवेशी मर गए. इसी कारण वहां से कई लोग भागने पर मजबूर हैं.’