नोएडा: साल 2013-14 में नोएडा शहर बन रहा था, उस वक्त न तो इतनी आबादी थी और न ही बड़ी इमारतें, जैसे जैसे विकास हुआ आईटी कंपनी और अन्य उद्योगों ने यहां पैर पसारने शुरू किए. तब उन कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारियों को नोएडा में घर की आवश्यकता पड़ी और फिर ठगी का शुरू खेल हुआ. जिसके शिकार आम्रपाली फ्लैट बायर्स (Amrapali flat buyers)के हजारों लोग हुए.
दीपक कुमार नोएडा में एक दशक से रह रहे हैं. वो बताते है कि साल 2015 में मैंने आम्रपाली में फ्लैट बुक किया था, घर खरीदने का सपना सबका होता है. हमारा भी था, हमने जब बुक किया तो उस योजना के तहत 10 प्रतिशत हमें पहले देना था पैसा, बाकी का पैसा लोन मिल जाएगा जो कि, आम्रपाली के पास जाएगा. जबतक की फ्लैट मिल नहीं जाता तब तक जो ईएमआई है वो बिल्डर ही देगा, जिसका नाम सब्वेनशन स्कीम था. लेकिन एग्रीमेंट में जो लिखा था ऐसा कुछ नहीं हुआ. हमारे नाम पर लोन भी ले लिया गया और घर भी नहीं मिला अब बैंक हमें डिफाल्टर कह रहा साथ ही वो इस स्कीम को भी नहीं मान रहा है, मैं इतना कहता हूं कि जो एग्रीमेंट हमसे साइन कराए गए क्या वो बिल्डर के लिए लागू नहीं होते? जिस स्कीम में हमने घर लिया था और एग्रीमेंट हमारा था वो पूरा किया जाए, धोखाधड़ी हमारे साथ न हो. मोहन ने भी साल 2015 में फ्लैट बुक किया था. वो बताते है कि साल 2015 से अब तक आठ साल हो गए, लेकिन घर नहीं मिला. आम्रपाली दिवालिया घोषित हो गया कोर्ट ने अपने अंदर इसे ले लिया और कोर्ट रिसीवर की जिम्मेदारी सौंपी गई थी कि घर सबको मिल जाए, लेकिन उससे भी कुछ नहीं हुआ. अब हम ईएमआई, कोर्ट का पैसा, घर का रेंट सब से रहे, हमारे एग्रीमेंट को बैंक भी मानने को तैयार नहीं है. वो कह रहा है ऐसा कोई स्कीम ही नहीं था. प्रश्न उठता है तो फिर आपने लोन कैसे दे दिया? बिल्डर ने कई लोगों के ईएमआई चुकाए वो कैसे हुआ? इस मामले में कोर्ट रिसीवर आर वेंकटरामनी ने कुछ टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.