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Homeउत्तर प्रदेशकिसी के लिए डकैत तो किसी के लिए था रॉबिनहुड

किसी के लिए डकैत तो किसी के लिए था रॉबिनहुड

चित्रकूट: बुंदेलखंड की दहशत का वो नाम जिस का खात्मा भले हो गया हो, लेकिन उसका नाम आज भी लोगो के दिलो-दिमाग में जिंदा है. जी हां हम बात कर रहे हैं बुंदेलखंड के सबसे खूंखार डकैत और हनुमानभक्त दस्यु सम्राट ददुआ की, जो आज ही के दिन तक़रीबन 17 साल पहले एसटीएफ मुठभेड़ में ढेर कर दिया गया था.

ददुआ! एक ऐसा डाकू, जिसकी हनक सत्ता के गलियारों तक थी. उसकी अपनी भी एक समानांतर सत्ता थी. बीहड़ में काम सरकारी हो या गैर-सरकारी, 10 पर्सेंट ददुआ टैक्स फिक्स था. उसका दबदबा इतना बढ़ गया था कि वह पाठा के जंगलों में बैठकर सूबे की सरकारें तय करने लगा था. चुनाव आते ही सियासी दलों के नेता रात के अंधेरे में उसके सामने हाथ बांधे खड़े रहते और उसकी खुशामद करते. उन दिनों बुंदेलखंड में नारे चलते थे- ‘न जात पर, न पात पर, मुहर लगेगी ददुआ की बात पर…मुहर लगेगी हाथी पर, वरना गोली पड़ेगी छाती पर. दरअसल ददुआ के इशारे पर टिकट मिलने और कटने लगे. पाठा के जंगलों में बैठकर यह बागी तीन दशक तक बीहड़ में राज करता रहा. शायद वह सबसे ज़्यादा वक़्त तक बीहड़ में राज करने वाला बागी था. पुलिस ने उसका आतंक मिटाने के लिए 100 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए थे, जिसको मारने के लिए नागालैण्ड तक की पुलिस जंगलों पर उतरी लेकिन हाथ खाली रहे और आखिर में एसटीएफ के तत्कालीन एसएसपी अमिताभ यश ने ददुआ को 22 जुलाई 2007 को मुठभेड़ में ढेर कर दिया था. दस्यु सम्राट ददुआ एक वर्ग के लिए खूंखार चेहरा था तो दूसरे वर्ग के लिए दस्यु सम्राट नहीं बल्कि रॉबिनहुड की छवि रखता था. यही वजह रही कि एक वर्ग डकैत तो दूसरा ददुआ को रॉबिनहुड मानते हुए उसको भगवान की नजर से देखता और पूजता था. यही वजह है कि ददुआ का फतेहपुर में विशाल मंदिर बनाया गया और ददुआ की मूर्ति लगाकर उसकी पूजा पाठ की जाने लगी. ऐसे धीरे-धीरे ददुआ बागी से भगवान बन गया और आज ददुआ के चाहने वाले डकैत ददुआ की पुण्यतिथि पर सोशल मीडिया से लेकर वर्ग विशेष तक ददुआ की पुण्यतिथि मनाकर श्रद्धांजलि मना रहे हैं. बुंदेलखंड के वीरप्पन के खिताब से पाठा के बीहड़ों में पहचान बनाने वाले बागी ददुआ के खात्मे के पहले भी तमाम गैंग रहीं लेकिन पुलिस किसी भी डकैत को नहीं मार पाई लेकिन डकैत ददुआ के खात्मे के बाद कई नए पुराने चेहरे जंगलों में सिर उठाते ही ढेर कर दिए गए और आज चित्रकूट का जंगल डकैतो से मुक्त राहत की सांस ले रहा है. फिलहाल डकैत ददुआ का दाहिना हाथ राधे जंगल से जेल और जेल से घर वापसी के बाद अब गैंग के किस्से सुनाकर उस वक़्त दहशत की दास्तान बताकर जरायम से दूर रहने को ताक़ीद कर रहा है.

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