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Homeअपना जौनपुरकागजों पर सिमट कर रह जातें है ग्राम पंचायतों के टेण्डर

कागजों पर सिमट कर रह जातें है ग्राम पंचायतों के टेण्डर

  • सरकारी खजानो को चोट पहुँचाकर मालामाल हो रहें पचांयत सचिव

जौनपुर धारा, जौनपुर। पंचायतीराज विभाग ने मनरेगा समेत अन्य सभी योजनाओं में सामग्री सप्लाई के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर एक लाख रुपए से ज्यादा राशि वाले विकास कार्यों में ई-टेंडर प्रणाली लागू है जिसमें पंचायत स्तर पर विभिन्न योजनाओं में सामग्री सप्लाई ई-टेंडर प्रक्रिया के तहत टेंडर लेने वाली फर्में ही कर सकेंगी। लेकिन वास्तव में धरातल की स्थिति कुछ और ही बयां करती है। सूत्र बतातें हैं कि अधिकतर टेण्डर तो ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत व ग्राम विकास अधिकारी की मिलीभगत से कागजों तक ही सीमित रह जाता है।

सूत्रों की माने तो बहुत से ऐसे मामले भी सामने आतें हैं, जहाँ ग्राम प्रधान को भी नहीं पता रहता कि टेण्डर कराकर ग्रामसभा में कौन का कार्य कराया जा रहा है। प्रति वर्ष ग्राम पंचायतों में सचिवों द्वारा लम्बे पैमाने पर कागजी कोरम पूर्ण करतें हुए, करोड़ों रूपये का बजट बनाकर भुगतान हेतु पेश कर दिया जाता है, और सरकारी खजाने में जमा जनता की गाढ़ी कमाई से उसका भुगतान भी हो जाता है, और वह भुगतान भी फर्म का बिल लगाकर निजी खातों का ब्योरा डोंगल फीड कर सेट कर दिया जाता है। इन मामलों की जिले स्तर पर जाँच की जाये तो पता चलेगा कि यही तीन-पाँच करके ग्राम पंचायत व ग्राम विकास अधिकारियों ने कितना लम्बा घोटाला किया है। हर साल मार्च में पंचायत स्तर पर मनरेगा सहित अन्य योजनाओं के लिए सामग्री सप्लाई के टेंडर जारी होते है। जिसमें टेण्डर कमेटी और अधिकारियों द्वारा चहेतों की फर्मों को मौका दिया जाता है। सचिवों की कमी के कारण एक-एक अधिकारी के १ से १५ गाँवों का प्रभार सम्भाले खुद का भरण-पोषण करतें रहतें है। हालाकि कई मामलों में खुलासे के बाद जिले के उच्चाधिकारियों द्वारा कार्यवाई करतें हुए लगाम भी कसा गया है। लेकिन जिन मामलों में शिकायत होती है। वही प्रकाश में आता है, और मामला वहीं तक सिमट कर रह जाता है। जबकि जिले में प्रत्येक गाँवों की उच्च स्तरीय जाँच कराई जाये तो झोल-झाल करने वालें अधिकारी जेल की हवा खातें नजर आयेंगे। सूत्रों की मानें तो सेक्रेटरी व ग्राम प्रधानों की मनमानी ने शासनादेश को ताक पर रख कर टेंडर प्रक्रिया में खेल शुरू कर दिया है। ग्राम पंचायतों में पहले तो बिना टेंडर जारी किए ही कार्य कराए जाते थे, ग्राम पंचायतों में विभिन्न योजनाओं, राज्यवित्त, तेरहवां, चौदहवां व पंद्रहवां वित्त, पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि और मनरेगा के अन्तर्गत आवंटित की जाने वाली धनराशि से कराए जाने वाले कार्यों में प्रथम श्रेणी ईट, इंटरलाकिंग ईट, बालू, सीमेंट, मोरंग, सरिया, पेंट, वायिंरग, पत्थर, ईट का टुकड़ा, बोल्डर, सीसीटीवी, सेनेटाइजर सहित आदि सामग्री की आपूर्ति के लिए निविदा का आमंत्रण जरुरी है। लेकिन सेक्रेटरी ने इन टेण्डरों में भी अपना धनोपार्जन का रास्ता साफ कर लिया है। कागजों पर टेण्डर तो होता है लेकिन जितना दिखाया जाता है, उसका आधा कार्य भी धरातल पर नहीं हो पाता है। जानकारों का कहना है कि पर्दे के पीछे इसमें ऐसा खेल चल रहा है कि औपचारिकता भी पूरी हो जाये और अधिक लोगों को टेंडर की जानकारी भी न हो सके।

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