भारत में करीब 15 फीसदी लोग किडनी की किसी न किसी बीमारी से पीड़ित हैं. देश में हर साल 1 लाख लोगों में से तकरीबन 10 लोगों की किडनी फेल हो जाती है. सालभर में पूरे देश में 8 से 10 हजार लोगों की किडनी ट्रांसप्लांट की जाती है. इनमें से बहुत से लोग ऐसे हैं जिनको सही इलाज ना मिलने से मौत का सामना करना पड़ता है.
यहां नई दिल्ली स्थित, सर गंगाराम अस्पताल के यूरोलॉजी डिपार्टमेंट से सीनियर कंसल्टेंट डॉ. सुधीर चड्ढा बता रहे हैं कि किडनी फेलियर किस स्थिति को कहा जाता है. और क्या कोई व्यक्ति दोनों किडनी फेल होने के बाद भी जीवित रह सकता है? किडनी हमारे शरीर में मौजूद बीन्स की आकृति का अंग होती हैं. ये पसलियों के अंदर पीठ की तरफ स्थित होती हैं. आमतौर पर किसी भी व्यक्ति के शरीर में दोनों किडनियां काम करती हैं लेकिन अगर किसी कारणवश किसी व्यक्ति की एक किडनी खराब हो जाती है तो वह सिर्फ एक किडनी से भी जिंदा रह सकता है लेकिन इस स्थिति में बची हुई दूसरी किडनी को सही से काम करना चाहिए. किडनी का मुख्य काम खून को साफ करना और शरीर के अपशिष्ट पदार्थों को यूरिन के रास्ते बाहर निकालना होता है. किडनी ब्लड प्रेशर को रेगुलेट करने और लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण करने के साथ ही शरीर का पीएच लेवल कंट्रोल करने में मदद करती है. जब आपकी किडनी सही तरीके से काम नहीं करती है, तो आपके शरीर में अपशिष्ट पदार्थ जमा होने लगते हैं. अगर ऐसा होता है तो शरीर में कई प्रकार की बीमारियां पैदा होने लगती हैं और सही समय पर इलाज ना करवाने से आपकी जान भी जा सकती है. किडनी फेलियर एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी व्यक्ति की एक या दोनों ही किडनी काम करना बंद कर देती हैं. कई बार किडनी फेलियर की समस्या कुछ समय के लिए ही रहती है लेकिन अधिकांश मामलों में यह लंबे समय तक चलने वाली समस्या है जो समय के साथ और भी बदतर हो जाती है. किडनी की बीमारी जब काफी ज्यादा बढ़ जाती है तो किडनी फेलियर की समस्या का सामना करना पड़ता है. किडनी फेलियर के ऐसे बहुत से मामले हैं जहां लोगों को सही समय पर इलाज ना मिलने और जागरूकता की कमी के कारण असमय मृत्यु का सामना करना पड़ा है. डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, हार्ट डिजीज के मरीजों को किडनी फेलियर की समस्या का सामना ज्यादा करना पड़ता है. शरीर में ब्लड शुगर का लेवल बढ़ने से डायबिटीज की समस्या कंट्रोल से बाहर हो जाती है जिससे किडनी के साथ ही शरीर के बाकी अंग भी डैमेज होने लगते हैं. वहीं, हाई ब्लड प्रेशर में खून रक्त कोशिकाओं में काफी तेजी से बहता है. तेजी से खून बहने से किडनी के ऊतक डैमेज हो जाते हैं जिससे भी किडनी फेलियर की समस्या का सामना करना पड़ता है. इसके साथ ही किडनी फेलियर की फैमिली हिस्ट्री वालों और 60 साल से अधिक उम्र के लोगों में भी किडनी फेल होने की आशंका काफी ज्यादा होती है. जो लोग डॉक्टर के परामर्श के बिना देसी दवाइयों का सेवन करते हैं उन लोगों में किडनी फेल होने का खतरा काफी ज्यादा पाया जाता है. जो लोग हाइपर टेंशन, स्ट्रोक आदि समस्याओं से जूझ रहे हैं उनमें भी किडनी फेलियर का खतरा काफी ज्यादा पाया जाता है. इसके अलावा अधिक मात्रा में शराब का सेवन करने और स्मोकिंग करने से भी किडनी फेलियर का खतरा बढ़ जाता है.
जैसे-जैसे किडनी डैमेज होने लगती है इसके लक्षण भी दिखाई देने शुरू हो जाते हैं. ये हैः-
-उल्टी
-थकान
-भूख ना लगना
-कमजोरी
-नींद में दिक्कत
-यूरिन बहुत ज्यादा या काफी कम आना
-पैर और टखनों में सूजन
-ड्राई और खुजलीदार त्वचा
दोनों किडनी फेल होने के बाद भी बच सकती है जान?
ब्रेन फेलियर, हार्ट फेलियर या लीवर फेलियर की तुलना में किडनी फेलियर के मरीजों की जान को काफी आसानी से बचाया जा सकता है. इसके लिए डायलिसिस या ट्रांसप्लांट का सहारा लिया जाता है. अगर मरीज जवान है तो किडनी ट्रांसप्लांट किया जाता है लेकिन अगर मरीज की उम्र ज्यादा है तो डायलिसिस के जरिए उसकी जान को बचाया जा सकता है. डायलिसिस के जरिए व्यक्ति 30 से 40 साल तक बिना किसी बड़ी दिक्कत के आराम से जी सकता है.
किडनी ट्रांसप्लांट के लिए जरूरी चीजें
किडनी ट्रांसप्लांट के लिए सबसे जरूरी चीज है कि डोनर फैमिली का ही कोई सदस्य होना चाहिए. किडनी ट्रांसप्लांट दो तरह के होते हैं. एक तो वो जिनका ब्लड ग्रुप मैच करता है और दूसरा वो जिनका ब्लड ग्रुप मैच नहीं करता. जिन लोगों का ब्लड ग्रुप मैच करता है उनमें किडनी ट्रांसप्लांट का खर्चा 10 से 12 लाख के बीच आता है. वहीं, जिन लोगों का ब्लड ग्रुप मैच नहीं करता उनका खर्चा 15 लाख के करीब आता है.
आजकल बिना ब्लड ग्रुप मिले भी आसानी से किडनी डोनेट की जा सकती है. इसके लिए जरूरी है कि किडनी डोनेट करने वाले के पास दो किडनी हों और दोनों नॉर्मल काम करती हों.
किडनी फेलियर से कैसे बचा जाए?
किडनी फेलियर से बचने के लिए जरूरी है कि आप अपनी सेहत का खास ख्याल रखें और ब्लड शुगर लेवल और ब्लड प्रेशर के लेवल को कंट्रोल करें. इसके साथ ही जरूरी है कि बिना डॉक्टर के परामर्श के अपने आप किसी भी तरह की दवाई का सेवन ना करें.