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यूपी के इस शहर में शान से निकली रावण की बारात, जानकर बजे ढोल नगाड़े

यूपी का प्रयागराज देश में एक ऐसा शहर है जहां रावण की बारात निकाले जाने की परम्परा है. मंगलवार की रात जब रावण की शोभा यात्रा संगम नगरी की सड़कों पर निकली तो उसे देखने के लिये लोगों का भारी हुजूम उमड़ पड़ा. प्रयागराज की सैकड़ों वर्ष पुरानी कटरा रामलीला कमेटी की ओर से पूरे वैभव के साथ रावण के कुनबे की शोभा यात्रा निकाली गई. कटरा रामलीला की ओर से निकाली गई रावण की इस शोभायात्रा में रावण के पूरे कुनबे की चौकी निकाली गई. इस शोभायात्रा में कई शहरों से आये बैंड भी लाइटिंग के साथ बारात की शोभा को बढ़ा रहे थे.

जी हां, यह कोई आम बारात नहीं है, बल्कि यह बारात है परम ज्ञानी और विद्वान लंकापति रावण की. रावण की यह बारात अपने आप में विश्व की एक अनोखी बारात है. जिसमें रावण रथ पर सवार होकर अपनी बारात में शामिल होता है. इस बारात में ढोल नगाडे़ के साथ राक्षसों का वेष धारण करके उसके गण और परिवार के लोग बाराती बनते हैं. साथ ही इस बारात मे बैंड-बाजा, हाथी, घोडे़ और हजारों की संख्या में रावण के भक्त भी शामिल होते हैं. यह बारात भव्य श्रृंगार के बाद भारद्वाज मुनि के मंदिर से उठती और पूरे शहर का भ्रमण करती है. देश के दूसरे हिस्सों में भले ही दशहरा उत्सव की शुरुआत भगवान राम की आराधना के साथ होती हो, लेकिन धर्म की नगरी प्रयागराज में इसकी शुरुआत रावण पूजा और रावण की बारात से ही होती है. शारदीय नवरात्र से शुरू होने वाले प्रयागराज के दशहरा उत्सव में सबसे पहले मुनि भारद्वाज के आश्रम में लंकाधिपति रावण की पूजा-अर्चना और आरती की जाती है. इसके बाद निकलती है महाराजा रावण की ऐसी भव्य व अनूठी बारात जो दुनिया में दूसरे किसी जगह देखने को नहीं मिलती. करीब एक किलोमीटर लम्बी इस अनूठी और भव्य बारात में महाराजा रावण शोभायात्रा में सिंहासन पर सवार होकर लोगों को दर्शन देते हैं. प्रयागराज की श्री कटरा रामलीला कमेटी उत्तर भारत की इकलौती ऐसी संस्था है, जहां दशहरा उत्सव की शुरुआत भगवान राम के बजाय महाराजा रावण की पूजा के साथ होती है. महाराजा रावण को यहां उनकी विद्वता के कारण पूजे जाने की परम्परा सालों से चली आ रही है. श्री कटरा रामलीला कमेटी के महामंत्री गोपाल बाबू जायसवाल के मुताबिक यह परंपरा सैकड़ो वर्षों से चली आ रही है. तीर्थ नगरी में रावण बारात निकाले जाने के पीछे एक पुरानी मान्यता भी है. कहते हैं कि जब भगवान राम रावण वध कर के अयोध्या लौट रहे थे तो उनका पुष्पक विमान यहीं प्रयागराज में भारद्वाज मुनि के आश्रम मे रुका था. लेकिन भगवान राम ने जब माता सीता के साथ भारद्वाज मुनि से मिलने का प्रयास किया तो ऋषिवर ने उनसे मिलने से मना कर दिया था, क्योंकि भगवान राम से एक ब्राह्मण यानी रावण की हत्या हो गई थी और उनके ऊपर एक ब्रह्म हत्या का पाप था. इस पर भगवान राम ने भारद्वाज ऋषि से क्षमा मांगी और प्रायश्चित स्वरुप प्रयागराज के शिव कुटी घाट पर एक लाख बालू के शिव लिंगों की स्थापना की. साथ ही भगवान राम ने इसी जगह पर रावण से हत्या की क्षमा भी मांगी थी और रावण को यह वरदान दिया की प्रयागराज मे रावण की पूजा होगी और उसकी बारात और शोभा यात्रा भी निकाली जायगी. तब से इस तरह धूम धाम से यह बारात निकाली जाती है. रावण बारात निकाले जाने की परम्परा सैकड़ों वर्षों से इसी तरह से चली आ रही है. लंकापति रावण की भव्य व अनूठी बारात में शामिल होने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. बारात में महाराजा रावण चांदी के सिंहासन पर सवार होकर लोगों को दर्शन देते हैं. खास बात ये है कि दर्शक भी इस बारात को एक परंपरा के तौर पर ही मानते हैं और इसी के साथ दशहरे के पर्व का प्रयागराज में आगाज़ भी हो जाता है. लोगों को भी रावण बारात निकलने का साल भर इंतजार रहता है.

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