जौनपुर धारा,जौनपुर। नगर के सिद्धार्थ उपवन में अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कॉन)जौनपुर द्वारा आयोजित श्रीमद् भागवत कथा का समापन अद्वितीय भक्ति और उत्साह के साथ हुआ। कथा व्यास कमल लोचन प्रभु ने अंतिम दिवस भगवान श्रीकृष्ण की महिमा और भक्ति मार्ग के महत्व पर विचार प्रस्तुत किए। कमल लोचन प्रभु ने कहा वैदिक साहित्य से ऐसा प्रतीत होता है कि जब कोई नाट्य कलाकार अनेक नर्तकियों के बीच नृत्य करता है, तो समूह नृत्य को रास नृत्य कहा जाता है। उन्होंने सोचा कि शरद ऋतु की पूर्णिमा की रात एक अच्छे नृत्य के लिए बिल्कुल उपयुक्त है। इसलिए तब कृष्ण को अपना पति बनाने की उनकी इच्छा पूरी हो जाएगी। श्रीमद्भागवतम् में इस संबंध में प्रयुक्त शब्द हैं भगवान् अपि। इसका अर्थ है कि यद्यपि कृष्ण भगवान् हैं और इसलिए उनकी कोई ऐसी इच्छा नहीं है जिसे पूरा करने की आवश्यकता हो, फिर भी वे रास नृत्य में गोपियों की संगति का आनंद लेना चाहते थे। आगे कहा कि महामाया मंच पर इन्द्रिय-तृप्ति के आधार पर नृत्य होते हैं। किन्तु जब कृष्ण ने अपनी बांसुरी बजाकर गोपियों को बुलाया, तो वे कृष्ण को संतुष्ट करने की दिव्य इच्छा से बहुत जल्दी रास नृत्य स्थल की ओर दौड़ पड़ीं। चैतन्य-चरितामृत के रचयिता कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने समझाया है कि काम का अर्थ इन्द्रिय-तृप्ति है, तथा प्रेम का अर्थ भी इन्द्रिय-तृप्ति है – किन्तु कृष्ण के लिए। दूसरे शब्दों में, जब क्रियाएँ व्याfक्तगत इन्द्रिय-तृप्ति के मंच पर की जाती हैं, तो उन्हें भौतिक क्रियाएँ कहा जाता है, किन्तु जब वे कृष्ण की संतुष्टि के लिए की जाती हैं, तो वे आध्यात्मिक क्रियाएँ होती हैं। संयोजक डॉ.क्षितिज शर्मा ने सभी श्रद्धालुओं और सहयोगियों को धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने बताया कि, शहर से लगभग 24किलोमीटर दूर, भीरा बाज़ार के पास, कुंभ गाँव में 40एकड़ के क्षेत्रफल में ‘गोमती इको विलेज’ विकसित किया जा रहा है, जो जौनपुर को प्रदेश, देश और विदेश में आध्यात्म और पर्यटन के पटल पर एक प्रमुख पहचान देगा।
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भगवान श्रीकृष्ण की महिमा के साथ संपन्न हुआ भक्ति महोत्सव
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