जौनपुर। पितृ पक्ष शुरू होते ही पितरों को तर्पण करने का सिलसिला शुरू हो गया है। नदी, तालाब, कुए और कुंऐ पर स्नान लोग पितरों को जल देना आरंभ कर दिया है। आदि गंगा गोमती के घाटों पर सोमवार को सवेरे जल देने की लिए लोग एकत्रित हुए। कहा जाता है कि पितृ पक्ष के समय में पितर धरती पर आते हैं। वे अपनी संतान या वंश से तृप्त होने की उम्मीद रखते हैं। उनको तर्पण, दान, श्राद्ध, पिण्डदान, पंचबलि कर्म आदि से तृप्त करके सुख और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। जो लोग ऐसा नहीं करते हैं, उनको पितृ दोष लगता है क्योंकि अतृप्त पितर उनको श्राप देते हैं। पितृ पक्ष की शुरूआत हो चुकी है, जो 21सितंबर तक चलेगा। ज्ञात हो कि पितृ पक्ष के समय में आप स्नान के बाद पितरों के लिए तर्पण दिया जाता हैं। सूर्योदय के बाद स्नान करें, तो उसके बाद कुशा के पोरों की मदद से जल से तर्पण दे सकते हैं। पितृ पक्ष में तिथि के साथ प्रत्येक दिन तर्पण दे सकते हैं। काले तिल, सफेद फूल, जौ और कुश के साथ सबसे पहले देव तर्पण, फिर ऋषि तर्पण, उसके बाद मानव तर्पण और सबसे अंत में पितरों का तर्पण करना है। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस अवधि में पितरों को जल अर्पित करने जैसे प्रमुख्य अनुष्ठान किए जाते हैं, ताकि पितरों का आशीर्वाद मिल सके। ऐसी मान्यता है कि पितृ लोक में पानी की कमी होती है, जिसकी वजह से पितरों को जल की आवश्यकता होती है। पितृ पक्ष के समय में जब हम पितरों को जल से तर्पण देते हैं, तो वे उसे पाकर तृप्त होते हैं और खुश होकर अशीर्वाद देते हैं। पितरों के आशीर्वाद से व्यक्ति को संतान सुख, शांति, समृद्धि, उत्तम सेहत आदि की प्राप्ति होती है। तर्पण के समय में कुश की बनी पवित्री जरूर पहननी चाहिए या कुशा के पोरों से जल गिराकर तर्पण देना चाहिए।
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पंचायत भवन पर वन विभाग द्वारा लगाया गया ग्रीन चौपाल
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पितृ पक्ष में पितरों के तर्पण का शुभारंभ
