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Homeअपना जौनपुरछोटी उम्र में ही मोबाइल और इंटरनेट में लिप्त हो रहा बचपना

छोटी उम्र में ही मोबाइल और इंटरनेट में लिप्त हो रहा बचपना

  • तकनीकी जगत में बच्चों का समाज के सम्बन्ध हो रहा अस्त-व्यस्त
  • खानपान के तौर तरीके और व्यंजनों में हो गया काफी परिवर्तन

जौनपुर धारा, जौनपुर। बचपन जीवन का वह सफर है, जिसमें उल्लास और उत्साह की रश्मिया बरसती रहती हैं। कितने शब्द कितने विशेषण और कितनी उपमाएं मन में उमड़ रही हैं। ये वह लम्हा है जब खुशियां छोटी और आसान होतीं हैं, मां की दुलार पिता का प्यार और दादा-दादी से सुनी कहानियों से संबद्ध संस्कार हमें आत्म निर्भर करता था, लेकिन जिस समय में आज बदलाव की नई देहरी पर खड़े हम यह विचार कर रहे हैं कि आज बचपन बड़प्पन का रूप धारण कर रहा है। आज का बचपन भाव रहित हो रहा है, छोटी उम्र में ही बच्चे मोबाइल और इंटरनेट की लत में लिप्त हैं। तकनीकी जगत ने बच्चों और उनके समाज से संबंधों को अस्त-व्यस्त कर चुका है। खाने-पीने तक के तौर तरीके और व्यंजनों में काफी परिवर्तन हो गया है। वर्तमान परिपेक्ष में बाल मन का कोना-कोना अधीर और अशांत है फिर भी फक्र हमें इस बात की है कि आज बालक समझदार हो गया है। एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए प्रतिदिन नमक 5 ग्राम, वसा 60 ग्राम, ट्रांसफैट 2.2 ग्राम और 300 ग्राम कार्बोहाइड्रेट की मात्रा तय की गई है। यह गणना एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए रोजाना 2,000 कैलोरी की जरूरत के हिसाब से है।

बदलते परिवेश में आज के परिजन भी समय साथ बिताए जाने के बजाय पैसों से बच्चों का खालीपन भर रहें हैं। सहजता से बेखबर बचपन कुछ और ही कहानी रच रहा है। विद्यालय में बच्चों की शरारतों का स्तर शिक्षकों के सामने एक चुनौती खड़ा कर रहा है। जिस गति से बच्चों की दुनिया में बदलाव महसूस किया जा रहा है। इससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि बचपन भाव रहित हो गया है। यह बदलाव ही है जिसने ना सिर्फ आचार विचार व्यवहार और संस्कारों और सामाजिक संबंधों का भी चेहरा बदला है, बल्कि बचपन की तस्वीर को भी संगीन कर गया है। हमें विचारना होगा कि बालक का विकास किसे कहते हैं। विकास कैसा होता है बच्चों के जीवन में आए तूफानी हलचल समझने होंगे और नियंत्रित करने होंगे। हमें अपने घर परिवार से सम्बंधित वातावरण को समझना होगा। सकारात्मक करना होगा अगर ऐसा करना हम सभी शुरू कर दें तो बचपन फिर से संवारने की लहर अल मस्ती के सफर को चरितार्थ करेगा। हमे जरूरत है बच्चों के जीवन में आए खालीपन को पैसे से भरने के बजाय माता-पिता उनके साथ समय बिताएंगे तकनीकी जगत के दुष्प्रभावों से बच्चों को दूर रखने के लिए दादा-दादी की कहानियों से मिलने वाले संस्कारों से बच्चों की फुलवारी को सवारने होंगे। उक्त सुझावों पर अपने विचारों की समिधा डालने की जिम्मेदारी निभानी होगी। आज आम तौर पर छोटे बच्चों को खाना खिलाना चुनौतीपूर्ण मामला होता है। क्योंकि उनकी भूख कम होती है और पसंद-नापसंद बहुत ज्यादा होती है। माता-पिता के लिए यह बहुत निराशाजनक और चिंताजनक होता है। जब बच्चे नए खाद्य पदार्थ खाने या खाने से इनकार करते हैं। बच्चों के पालन पोषण में बच्चों के शुरूआती जीवन से खान-पान का विशेष ध्यान रखना होता है। बच्चों के मानसिक विकास के लिये जरूरी है कि 6 महीने की उम्र में दूध छुड़ाने के लिए आहार देना शुरू कर देना चाहिए। 9 महीने की उम्र के आसपास शिशुओं को अच्छी भूख लगती है, यह ठोस आहार शुरू करने और विभिन्न प्रकार के स्वाद, स्थिरता और बनावट को आजमाने का सही समय है। जैसे-जैसे बच्चा अधिक ठोस भोजन खाने लगता है, स्तनपान की आवृत्ति कम कर दें। लेकिन आज देखा जाता है कि बच्चों के खान-पान से परिजन हर स्तर पर समझौता कर लेंते है। जो बाल जीवन के लिये बहुत ही नुकसान दायक साबित हो रहा है। बच्चें खेलने कूदने के उम्र में गैस आदि कई प्रकार के बिमारी के शिकार हो रहें है। अक्सर यह देखा जा रहा है कि जब नए स्वाद या स्वाद पेश किए जाते हैं तो मां बच्चे की अभिव्यक्ति का गलत मतलब निकालती हैं। किसी विशेष भोजन को इसलिए न रोकें क्योंकि उसे खाते समय बच्चा मुँह बनाता है। एक ही भोजन को कई अलग-अलग मौकों पर दोहराने से बच्चा उसका स्वाद स्वीकार कर लेगा क्योंकि उसे इसकी आदत हो जाएगी। अपने बच्चे के भोजन की विविधता को केवल उन्हीं खाद्य पदार्थों तक सीमित न रखें जिन्हें आप पसंद करते हैं। परिजन छुटकारा पाने के लिये रिश्वत के रूप में मोबाइल, लॉली, चॉकलेट, बिस्कुट, दूध या मिठाई का उपयोग करना भी बच्चों की जीवन शैली में बदलाव ला रहा है। जब वे खाने से इनकार करें तो नाराज़ न हों, धमकी न दें, परेशान न करें या चिल्लाएं नहीं बल्कि भोजन के समय को आनंददायक बनाने पर ध्यान केंद्रित करें। बच्चों के खान-पान, रहन-सहन में बदलाव से उनके स्वास्थ पर गहरा असर पड़ रहा है, जिससे आज छोटे-छोटे बच्चों में भी हार्ट अटैक जैसी बिमारियों ने स्थान बनाना शुरू कर दिया है। बच्चों की खानपान की आदतें कमोबेश हर घर में चिंता का विषय बनती जा रही हैं। बार-बार कहने पर भी फल-सब्जियां ना खाना और जंक फूड खाने की जिद करना आजकल आम है। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, उनव्ाâी यह जिद और खाने की चीजों को लेकर किया जाने वाला चुनाव, ज्यादा अजीबो-गरीब होता जाता है। अभिभावक चिंता तो करते हैं पर एक समय के बाद वे चाहकर भी बच्चों की खानपान की आदतें नहीं सुधार सकते। नतीजा यह होता है कि ये छोटी-छोटी आदतें आगे चलकर बीमारी की बुनियाद बन जाती हैं। इसलिए जरूरी है कि सही समय पर चेता जाए। बचपन से ही खानपान की आदतों पर ध्यान दिया जाए ताकि आगे चलकर बच्चों की सेहत को नुकसान ना पहुंचे।

जिद और खाने की चीजों को लेकर किया जाने वाला चुनाव, ज्यादा अजीबो-गरीब होता जाता है। अभिभावक चिंता तो करते हैं लेकिन एक समय के बाद वे चाहकर भी बच्चों की खानपान की आदतें नहीं सुधार सकते। इसीलिये बच्चों के आकार का भोजन परोसें, वे और अधिक मांग सकते हैं। खाने की नियमित आदतें स्थापित करें, जैसे कि अपने बच्चे को हमेशा ऊँची कुर्सी पर बैठाना या एक ही मेज पर खाना खिलाना।  लाड़-प्यार में बिना सोचे समझे बच्चों को कुछ भी खाने के लिए देना बहुत नुकसानदेह हो साबित सकता है। इसलिए बच्चों के खानपान पर ध्यान देना माता-पिता की बड़ी जिम्मेदारी है। अक्सर देखने में आता है कि बच्चे घर के पौष्टिक खाने के स्थान पर बाहर के जंक फूड को ही तवज्जो देते हैं। ऐसे में यह बेहद आवश्यक है कि बच्चों को जितना हो सके, जंक फूड से दूर ही रखें। बच्चों को सेहतमंद बनाने के लिए उन्हें सही पोषण वाले खानपान की जानकारी दें। जरूरत है कि अभिभावक के साथ-साथ शिक्षक बच्चों को जंक फूड के नुकसान से अवगत कराएं और उन्हें पौष्टिक भोजन करने के लिए प्रेरित करें। जंक फूड की आदत दूर करने और उसकी लालसा को शांत करने के लिए किसी स्वस्थ विकल्प को देने की कोशिश करें। उदाहरण के लिए, अगर आपके बच्चे को मीठे खाद्य पदार्थ की इच्छा है तो ताजे फल या छोटी सी मात्रा में ड्राई फ्रूट दे सकते हैं और अगर उसे नमकीन स्नैक्स खाने की आदत है तो आप मुट्ठी भर नट्स दे सकते हैं।

डॉ.संदीप सिंह, बाल रोग विशेषज्ञ

बचपन से ही खानपान की आदतों पर ध्यान दिया जाए, ताकि आगे चलकर बच्चों की सेहत को नुकसान ना पहुंचे। बच्चे जंक फूड खाने की जिद करें तो उन्हें बाजार की जगह घर पर ही कुछ टेस्टी व हेल्दी व्यंजन बनाकर दें। घर का खाना साफ तो होता है ही, साथ ही आप उसे अधिक पौष्टिक ढंग से भी बनाया जा सकता है। यह प्रयास करें कि आपका बच्चा ब्रेकफास्ट न सिर्फ अच्छे से खत्म करे, बल्कि आप नाश्ते में उसे कुछ ऐसी चीजें दें जो हेल्दी हों और उसे फिर दिन भर ज्यादा भूख न लगे। दिन की शुरुआत में अगर उनके पसंद के ब्रेकफास्ट से होगी तो वे आपसे जंक फूड की डिमांड करना भूल जाएंगे। अक्सर महिलाएं समय बचाने के चक्कर में जंक फूड को अपनी रसोई में रखती हैं और फिर बच्चे उन्हें देखकर बार-बार खाने की जिद करते हैं। बच्चों की जंक फूड से दूरी बनाने के लिये सबसे पहले ऐसे खाद्य पदार्थ अपने रसोई से बाहर करें। अपने घर के फ्रीज में ताजे फल जरूर रखें। उन्हें आप काटकर रेडी टू इट कर फ्रीज में रखें, ताकि उन्हें निकाल कर खाने में आसानी हो।

डॉ.तेज सिंह, बाल रोग विशेषज्ञ

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