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जलजमाव से बचाने के लिए गांववासियों ने खुद करवाई नाली की खुदाई

जौनपुर। मछलीशहर विकास खण्ड के चितांव गांव के ग्रामीणों ने बिना किसी सरकारी सहायता के गांव के लोगों ने जलजमाव से निजात पाने के...
Homeअपना जौनपुरउच्च न्यायालय की मुकर्रर तिथि नजदीक, चकबंदी प्रक्रिया आधी अधूरी

उच्च न्यायालय की मुकर्रर तिथि नजदीक, चकबंदी प्रक्रिया आधी अधूरी

  • 52 वर्षों से लंबित पड़ी है पिलकिछा की चकबंदी

जौनपुर धारा, खुटहन। विकास खंड का सबसे अधिक क्षेत्रफल व आबादी वाला गांव पिलकिछा की चकबंदी प्रक्रिया 52 वर्षों से लंबित पड़ी हुई है। गांव निवासी व पूर्व जिला पंचायत सदस्य जया दूबे की याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने चकबंदी आयुक्त को सख्त निर्देश देते हुए गांव की चकबंदी प्रक्रिया पांच माह के भीतर कराने का आदेश दिया था। मुकर्रर तिथि चंद दिनों मात्र और शेष है। आज भी प्रक्रिया आधी अधूरी है। डीडीसी सोमनाथ मिश्रा का कहना है कि कर्मचारी युद्ध स्तर पर लगे हुए हैं। बहुत जल्द प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। याची ने शपथ पत्र के साथ दायर याचिका में आरोप लगाया है कि गांव की चकबंदी प्रक्रिया वर्ष 1970 में प्रारंभ की गई। छह साल के भीतर फार्म बितरण और चकों का चिन्हांकन किया गया। उसके बाद प्रक्रिया ठंडे बस्ते में चली गई। गांव का भूचित्र कुल छह सीटों में प्राप्त है जिसमें आकार, गाटा संख्या व चकों की आकृति स्पष्ट नहीं है। नक्शे का कपड़ा भी जीर्ण शीर्ण होकर फैल चुका है। पुराने नक्शे से सही भूचित्र तैयार किया जाना संभव नहीं लग रहा है। वहीं चकबंदी विभाग का दावा है कि किसानों की चकों का आकार पुननिर्मित कर लिया गया है। आगे की प्रक्रिया चल रही है। बता दें की गत मार्च में उच्च न्यायालय ने चकबंदी आयुक्त को शख्त आदेश दिया था कि गांव की चकबंदी पांच माह के भीतर हर हाल में हो जाना चाहिए। आदेश के क्रम में वर्तमान जुलाई माह अंतिम महीना चल रहा है।

  • चकबंदी में विलंब से पीएम सम्मान निधि से वंचित हैं हजारों किसान

पिलकिछा गांव की चकबंदी प्रक्रिया दशकों से पूरी न होने का खामियाजा सीधा किसानों को भुगतना पड़ रहा है। हजारों किसानों के नाम चक नंबरों में शामिल न हो पाने से वे सम्मान नििध से वंचित चल रहे हैं। वर्ष 1970 में 2314 हेक्टेयर भूभाग में कुल 2173 चकदार थे। पचास वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद चकदारों की संख्या दूने से अधिक हो जाना चाहिए। यदि प्रक्रिया पूरी हो गई होती तो उनके नाम जमीन हो जाती। उन्हें भी सम्मान निधि का लाभ मिलने लगता।

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