इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 13 वर्ष के कुंवर भारत की बम मारकर आधी रात हत्या करने के आरोपितों को संदेह का लाभ देते हुए उम्रकैद की सजा रद्द कर दी है। साथ ही सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। कोर्ट ने कहा अभियोजन संदेह से परे आरोप सिद्ध करने में विफल रहा है और सत्र अदालत ने साक्ष्यों के समझने में गलती की। यह आदेश न्यायमूर्ति अरविंद कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की खंडपीठ ने भागवत व अन्य की सजा के खिलाफ आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए दिया है।
मामले में फूलचंद ने आजमगढ़ कोतवाली में 28 अक्तूबर 1979 को प्राथमिकी दर्ज कराई। जिसमें कहा गया कि भागवत, साहब, लालू, कामता ने 27 अक्तूबर की रात उनके 13 वर्ष के बेटे कुंवर भारत की बम मारकर हत्या कर दी। 27 अक्तूबर की 12 बजे रात 10-15 लोग टार्च की रोशनी के साथ लाठी, बल्लम, गंडासा, भाला से लैश आए। शिकायतकर्ता बैठका में सो रहा था। उसी दौरान बम की आवाज सुनी और बरामदे की तरफ जहां बेटा सो रहा था, दौड़ा। वहां उसकी पत्नी व भाभी एक अन्य गवाह हरदेव पहले से दहाड़े मारकर रो रही थीं। कहा भागवत ने मार डाला। पुलिस चार्जशीट पर संज्ञान लेकर सत्र अदालत आजमगढ़ ने दोषी करार देते हुए सभी आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई। जिसे अपील में चुनौती दी गई थी। अधिवक्ता ने कहा शिकायतकर्ता फूलचंद चश्मदीद नहीं है। दूसरे गवाह हरदेव ने अभियोजन को समर्थन नहीं किया। कहा कि श्व के पास कोई नहीं था। एक घंटे बाद पता चला कि शव भारत का है। गवाहों व शिकायतकर्ता के बयान विरोधाभासी हैं। अभियोजन संदेह से परे अपराध साबित नहीं कर सका। आरोपी निर्दोष है। सजा रद्द की जाए।