- खेतों से लेकर शादी विवाह के अवसरों पर दरवाजे की शोभा बढ़ातीं थी बैलों की जोड़ी
जौनपुर धारा, जौनपुर। आधुनिक युग में किसानों का सबसे अहम साधन बैलगाड़ी विलुप्त होता नजर आ रहा है। सालों पहले तक बैलगाड़ी खेतों की जुताई, मिट्टी ढुलाई का साधन होने के साथ-साथ घरेलू कामकाज जैसे दुल्हन की विदाई कराने में भी उपयोगी साबित होता था। लेकिन विकास के दौर में इन दिनों विभिन््ना उद्देश्यों के लिए प्रयोग किए जाने वाले बैलगाड़ियों का अस्तित्व ख़त्म हो रहा है। कभी किसानों का गौरव समझे जाने वाले बैलों का प्रयोग बैलगाड़ियों में तो कभी खेतों की जुताई के लिये होता था। कुछ वर्ष पूर्व ग्रामीण अंचलो के कुछ परिवारों में रिश्ता भी बैल और द्वार पर जुताई के लिये लटक रहे हल व जूवाठ और गोशाला को देख कर तय किया जाता था। एक समय था जब बैलों से किसान खेतों की जुताई करता था तो वहीं खाली समय में बैलों का प्रयोग बैलगाड़ी के लिये भी किया जाता था, जिससे मिट्टी ढुलाई, खाद, बीज, आदि के साथ-साथ बारात की वापसी पर दुल्हन लाने के अतिरिक्त कुछ किसान गांव से भूंसा खरीद कर मंडियों में बेचकर उससे अपना जीवन यापन करते थे। शाम होते ही मण्डिया बैलगा़डियों से सज जाती थी। तो वहीं बैलों की खूबसूरती दिखाई देने के लिये विभिन््ना प्रकार की घण्टी व अन्य वस्तुओं से सजा कर रखने के साथ ही किसानों द्वारा कहीं स्वयं तो कहीं नौकरों से सेवा की जाती थी। लेकिन महंगाई की मार ने किसानों की शान समझे जाने वाले बैलों को अतीत का हिस्सा बना दिया। बैलगाड़ी तीन प्रकार की होती थी एक बैल, दो बैल और तीन बैल की बैलगाड़ियाँ हुआ करती थी, पहले बैलगाड़ी का पहिया लकड़ी का होता था, जिससे बैलगाड़ी को और चालक को काफी समस्या होती थी लेकिन बाद में विकास हुआ तो बैल गाड़ी में टायर, ट्यूब का उपयोग होने लगा उस समय खेती करना और बैलगाड़ी चलाना ही जीविका का स्रोत होता था। बैलगाड़ी से खेती के अतरिक्त ईंट भट्ठा से ईंट, मिट्टी ढोने के अलावा गाँव से भूसा आदि खरीद कर मंडी में ले जाकर बेचा जाता था। लेकिन समय बीतने के साथ बैलगाड़ी के बजाय अन्य साधनों का प्रयोग होने लगा। जिससे बैलगाड़ी चालकों के समक्ष बैलों का खर्चा पूरा करना मुश्किल हो गया है। ये बात सच है कि बैलों के द्वारा की गई जुताई अच्छी होती है, लेकिन इसमें लागत अधिक होती है। जिससे लोगों ने बैलों को पालने से मुहं मोड़ लिया है। अब बैलगाड़ी की जगह लोग अन्य वाहनों का उपयोग करते है। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान समय में एक जोड़ी बैल पांच किलो चुनी और दस किलो भूंसा खा जाता है, जिसकी लागत लगभग 500 रुपया प्रतिदिन होता है। अगर प्रतिदिन कार्य मिलता तो घाटे का सौदा नहीं है, लेकिन आज आधुनिक युग में बैलगाड़ियों आवश्यकता किसी को नहीं पड़ती। विकास के इस युग में बैलगाड़ी और खेतों में बैलों की जुताई अपना अस्तित्व खो रहे है। आने वाली पीढियां बैलों से खेती करने और आवश्यकता पूरा करने को अचरज मानेगी।