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वाराणसी में मां सरस्वती के द्वादश रूपों वाला पूरे उत्तर भारत में इकलौता मंदिर

जिस तरह देश के अलग-अलग हिस्सों में द्वादश ज्योतिर्लिंग विराजमान है और उसमें से एक वाराणसी में काशी विश्वनाथ भी स्थापित है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि धर्म और आध्यात्म की नगरी काशी में एक मां सरस्वती का द्वादश रूपों वाला मंदिर भी है. दावा किया जाता है कि पूरे उत्तर भारत में अपने आप में ऐसा अनोखा मंदिर काशी में ही है. वाराणसी के संपूर्णानंद विवि में स्थित यह मंदिर ढाई दशक पहले स्थापित हुआ था. तभी से मां वाग्देवी के इस मंदिर का काफी महत्व है. 

संपूर्णानंद संस्कृत विवि में निर्मित मंदिर
लगभग ढाई दशक पहले शहर के बीचो-बीच संपूर्णानंद संस्कृत विवि में निर्मित यह मंदिर आस्थावानों को इस कदर भाता है कि वह अक्सर मंदिर में मत्था टेकने आते हैं. खासकर ना केवल इस विवि के छात्र, बल्कि शहर भर से छात्र-छात्रा यह मत्था टेकना नहीं भूलते हैं. छात्रों का दावा है कि यहां मां वाग्देवी के दर्शन मात्र से पढाई में एकाग्रता और स्मरण शक्ति में इजाफा होता है.

27 मई 1998 को मंदिर तैयार हुआ
मां वाग्देवी यानी मां सरस्वती मंदिर के व्यवस्थापक और संपूर्णानंद संस्कृत विवि के वेद विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो महेंद्र पांडेय ने बताया कि 8 अप्रैल 1988 में मंदिर के निर्माण पर लेकर मुहर लगी. मंदिर को लेकर पूर्व प्रति कुलाधिपति डॉ विभूति नारायण सिंह और पूर्व कुलपति वेंकटाचलन ने संकल्पना की थी. जिसके बाद पूर्व कुलपति प्रो मंडल मिश्रा जी के समय बनकर मां वाग्देवी का मंदिर तैयार हुआ. 27 मई 1998 को मंदिर बनकर तैयार हो गया और इसका उद्घाटन हुआ और उसी वक्त विश्वविद्यालय को मंदिर का दायित्व सौंप दिया गया. उस वक्त उत्तर प्रदेश के निर्माण और पर्यटन मंत्री कलराज मिश्रा और शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती और तत्कालीन कुलपति मंडल मिश्रा मौजूद थे. उन्होंने आगे बताया कि ऐसा ही मंदिर मध्य प्रदेश के धार क्षेत्र में राजा भोज के समय स्थापित था, लेकिन खंडित हो जाने के बाद संपूर्णानंद में पूर्व कुलपति वेंकटाचलम जी के प्रयास से इसकी संकल्पना हुई इसके बाद पूर्व कुलपति मंडल मिश्रा जी के प्रयास के बाद यह मंदिर पूर्ण हो सका. इस मंदिर में द्वादश सरस्वती जी के विग्रह हैं जो अपने आप में उत्तर भारत में कहीं अन्य नहीं है. इन द्वादश विग्रहों के अलग-अलग नाम भी हैं. जिसमें सरस्वती देवी, कमलाक्षी देवी, जया देवी, विजया देवी, सारंगी देवी, तुम्बरी देवी, भारती देवी, सुमंगला देवी, विद्याधरी देवी, सर्वविद्या देवी, शारदा देवी और श्रीदेवी है. मां वाग्देवी की मूर्ती के काले वर्ण के बारे में उन्होने बताया कि यह मूर्ति तमिलनाडु से मंगाई गई थी और इस मूर्ति का अर्थ इस तरह से निकाला जा सकता है कि हमारे शास्त्र, वेद और पुराण की रक्षा के लिए मां सरस्वती का यह वर्ण काला है. जिस तरह से माता काली का होता है. इसके अलावा मंदिर की शैली भी दक्षिण भारत की ही तरह है. दक्षिणा शैली में मंदिर बना हुआ है. वहीं मां वाग्देवी मंदिर के सहायक व्यवस्थापक संतोष कुमार दुबे ने बताया कि द्वादश सरस्वती के रूपों का मतलब है कि सभी प्रकार के विद्या की देवी. वाग्देवी मंदिर में दर्शन के बाद ही उनके संपूर्णानंद संस्कृत विवि के छात्र पठन-पाठन में जुटते हैं. ऐसा द्वादश सरस्वती के रूपों वाला मंदिर पूरे उत्तर भारत में कहीं नहीं है. मंदिर के मंडप से लेकर शिखर तक अद्भुत है. उन्होंने बताया कि इस मंदिर से अभिभावक बच्चों को दर्शन कराकर उनका अध्ययन बचपन में शुरु कराते हैं.

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