जौनपुर धारा,सोनभद्र। डाला नगर में स्थित शहीद स्मारक आज खामोश सिसकियों के साथ खड़ा है, जहाँ हर कण में बलिदान की गूंज है। मुख्यालय से केवल 30 किलोमीटर दूर, यह पवित्र स्थल 2जून 1991 के उस काले दिन की दर्दनाक याद दिलाता है, जब नौ श्रमिकों ने अपने खून से इस मिट्टी को सींचा था। उनके बलिदान की स्मृति में बना यह स्मारक अब उपेक्षा की धूल में लिपटा हुआ है। यहाँ की हवा में अभी भी उन शहीदों के बलिदान की कहानी गूंजती हैं, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दी। यदि नजर दौड़ाई जाये तो डाला में बड़े कल कारखाने के साथ, बड़े खनन व्यवसाय व वर्तमान में नवसृजित नगर पंचायत भी हैं। लेकिन शहीद स्थल के सही से देखभाल व सुंदरीकरण के लिए कोई ठोस कदम किसी के द्वारा अभी तक उठाया नहीं गया हैं। वर्ष 2024 में शहीद स्थल पर नगर पंचायत द्वारा फूल पौधे लगाये गये थे जो सुख गये। स्थानीय लोग कहते हैं कि यह स्मारक सिर्फ पत्थर का ढांचा नहीं, हमारे शहीदों की धड़कन है। डाला का गौरवशाली इतिहास रहा है बड़े-बड़े नेता, मंत्री और कैबिनेट मंत्री यहाँ शहीदों को श्रद्धांजलि देने आते हैं, मगर उनके जाने के बाद यह स्थल फिर से खामोशी और उपेक्षा का शिकार हो जाता है।नगर पंचायत बनने के बाद हम लोगों को उम्मीद है कि जल्द ही शहीद स्थल पर जो सम्भव हो सकेगा वैसा सुंदरीकरण होगा। युवा नेता अहमद हुसैन ने कहा कि यह स्मारक हमारी शान है, हमारे शहीदों का गर्व है। डाला में इतना बड़ा सीमेंट फैक्ट्री हैं,खनन क्षेत्र हैं, तथा इसके साथ ही अब नगर पंचायत भी हैं। एक सार्थक प्रयास करके इसे फूल-पौधों और प्यार से संवारना चाहिए। वार्ड-2 के सभासद अवनीश पांडेय ने कहा कि डाला गोली कांड के शहीदों की याद में बना यह स्मारक हमारा इतिहास है, हमारी आत्मा है। इसे संजोना हम सबकी जिम्मेदारी है। सुंदरीकरण के लिए हर संभव प्रयास निरंतर जारी है। जल्द ही शहीद स्थल को निखारने का कार्य सभी के सहयोग से किया जाएगा। डाला का शहीद स्मारक आज भी उन 9 वीरों की वीरता का गवाह है। यह धरती, यह स्मारक, बस थोड़े से प्यार और सम्मान की प्रतीक्षा में है, ताकि शहीदों की कुर्बानी की गाथा हर आने वाली पीढ़ी के दिल में गूंजे।
― Advertisement ―
विषैले जंतु के काटने से युवती की मौत
खुटहन। बीरी समसुद्दीनपुर गांव में शनिवार की रात छत से उतरते समय सीढ़ी पर बैठा बिषधर युवती के पैर में काट लिया। उपचार के...
डाला गोली कांड के शहीद श्रमिकों की स्मृति में बने स्मारक को संजोने की जरूरत
